Tuesday, August 31, 2010

बादल फटा नहीं तो बच्चे मरे कैसे


शमशेर सिंह बिष्ट
बागेश्वर। उतराखंड के बागेश्वर जनपद के कपकोट तहसील में सौंग-समुगढ़, सरयू व रेवती नदियों के घाटियों में 18 अगस्त को जो तबाही मची जिसमें सुमगढ़ में स्थित सरस्वती शिशु मन्दिर के 18 बच्चे जिंदा दफन हो गये पूरे देश में मीडियाने यह प्रचारित किया की बादल फटने से यह हादसा हुआ आज बिल्कुल झूठा साबित हो गया है।
मारे गये बच्चों के अभिभावकों ने जिलाधिकारी बागेश्वर को ज्ञापन दिया है, कि इस हादसे की पूरी मजिस्ट्रेटी जॉच की जाए । हादसे में मारी गई खूशबु के दादा जगदीश चन्द्र जोशी ने कहा है कि 18 अगस्त की सुबह इस स्कूल के 140 बच्चों में से सिर्फ 39 बच्चे ही आये थे। बच्चों ने जब कक्षा में पानी आने की शिकायत अपने आचार्यों (अध्यापकों) से की तो आचार्यों ने बच्चों को डांट दिया तथा बाहर से कक्षायें बंद कर दी अन्दर से बच्चें कक्षाओं में ही थे ।लगभग 100 मीटर दूरी पर सरयू नदी जर्बदस्त उफान मे थी। अध्यापकों को यह डर भी हो रहा था कि नदी में बने पुल से ही बच्चों को आना जाना था। कोई बच्चा नदी में हादसे का शिकार न हो जाए । इसीलिये अध्यापकों ने बच्चों को कक्षा में बंद कर दिया। इसी समय समुगढ़ के ठीक सामने वाले पहाड़ में जिसमें सिलिंग उडियार सप्तकुंड बसे है जर्बदस्त धमाके की आवाज हुई। सारे अध्यापक दूसरी तरफ क्या हुआ यह देखने में लग गये, क्योंकि उस तरफ इतना जर्बदस्त नाला आ गया, जिसने खड़क सिंह के पूरे मकान व दुकानों को ही नष्ट नहीं कर दिया, वरन वहॉं खड़ी, कार, आदि वाहनों को अपनी चपेट में ले लिया। इस तरफ जान माल को कोई नुकसान इसलिये नहीं हुआ क्योंकि सभी लोग पहले से ही सर्तक हो गये थे। इसीलिये दयाल सिंह दियारकोटी जिसकी सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान सहित चार दुकाने पूरी नष्ट हो गई, इनका कहना है, की लगभग छह लाख की हानि हुई है, फिर भी कहीं चोट तक नहीं आई। जिस समय सरस्वती शिशु मन्दिर के अध्यापक सिलिंग उडियारी तप्तकुड की तबाही का नजारा देख रहे थे। उसी समय उनके स्कूल क ऊपर भूस्खलन होने से स्कूल की कमजोर दीवार को तोड़कर मलवा कक्षाओं में भर गया तथा 18 बच्चे दबकर मर गये, ये बच्चे सभी 7,8 वर्ष से कम उम्र के थे, इस सुमगढ़ गॉव में इस स्कूल के अलावा कोई हानी नहीं हुई। यह स्कूल अवश्य नदी के समीप है, जबकी गॉव की आबादी नदी से दूर है। अध्यापको के लिये नदी के पार, सिलिंग उडियार तप्तकुड समीप पढ़ता है। लेकिन सरयू नदी के तेज उफान के कारण पुल का एक हिस्सा टूट गया था जिस कारण मदद देर से मिली। यह बात सच है यह क्षेत्र भूकंप के सबसे खतरनाक पाचवें जोन में बसा है, इसी स्कूल के कुछ दूरी पर उत्तर भारत हाइड्रों पावर कारपोरेशन द्वारा पहाड़ को खोदकर सुरंग भी बनाई जा रही है। इसलिये यह कहना गलत नहीं होगा की पहाड़ को खोदकर जो सुरंग बनाई जा रही है, उसका प्रभाव भी स्कूल के उपर आए भूस्खलन का कारण हो सकता है। स्कूल की लापरवाही तो मुख्य कारण है ही। सरस्वती शीशु मन्दिर का यह स्कूल था, इसलिये इस स्कूल की दीवार सिर्फ सिंगल ईट पर खडी होना निर्माण कार्य को घटिया साबित करना तो है ही ।
इस सरयू घाटी के लगभग 10 किमी0 क्षेत्र के अन्तर्गत पहाड़ो को छेदकर तीन बड़ी-बड़ी सुरंगे बनाई जा रही हैं। देश के जाने माने वैज्ञानिक क डा. खड़क सिंह वल्दिया इस क्षेत्र को संवेदनशील घोषित कर चुके है। लेकिन उत्तराखंड व भारत सरकार इस क्षेत्र के प्रति संवेदनशील नही है। जिसके कारण, उत्तराखंड के पहाड़ खतरनाक बनते जा रहे हैं। उत्तर भारत हाइड्रों पावर कारपोरेशन का कार्य इस क्षेत्र में तीन चरणें में होना है, द्वितीय व तृतीय चरण में तो कार्य चल रहा है, परन्तु प्रथम चरण का कार्य जनता के प्रतिरोध के कारण आरम्भ नहीं हो पाया है। सरयू हक-हकूक बचाओ संघर्ष समिति के नेतृत्व मे यह आन्दोलन नौ माह तक चला। कई प्रलोभनों, दमन के बाद भी यह आन्दोंलन टूट नहीं पाया। सरकार व कंपनी मिलकर भी विद्युत परियोजना का प्रथम चरण का कार्य आरम्भ नहीं कर पाये। पूर्व मुख्यमंत्री इसी क्षेत्र से विधानसभा सदस्य रहे हैं उन्होने इस आन्दोलन को तोड़ने का पूरा प्रयास किया। वे हमेशा कंपनी के पक्ष में खड़े रहे उनके लिए बिजली परियोजना का बनना ही विकास का मापदण्ड है, चाहे पहाड़ पूरे नष्ट हो जाए । इस क्षेत्र में हर वर्षा में जर्बदस्त तबाही होती है। इसी क्षेत्र सुडिंग में सन् 1957 में, मई 1991 में कमी में, सन् 1983-84 में रिखोड़ी-मोनांर तथा 2004 में पुनः सुड़िग में भारी जन धन की हानी हुई थी। लेकिन इन सबको भूलकर जनता के विरोध के बावजूद बॉध बनाने में सरकार अड़ी है। इसका पुरजोर समर्थन स्थानीय जन प्रतिनीधि भी करते है, क्योंकि चुनाव के लिये चन्दा इन्ही से मिलता है।
इस समय स्थानीय विधायक शेर सिंह गड़िया भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल अन्य नेता बिना पूछे ही यह कह रहे है कि इस हादसे में विद्युत परियोजना की कोई गलती नहीं हैं इनसे जब यह पूछा गया की सुमागढ़ में तो बादल फटा ही नहीं, 18 बच्चे कैसे मारे गये थें, तो बस इतना ही कहते हैं की कंपनी की गलती नहीं है।
सौंग बांध विरोधी नेता मोहन सिंह ताकुली कहते है की सुमगढ़ की घटना सुरंग बनाने से हुई। सौंग का क्षेत्र इसलिये बच गया, क्योंकि यहॉ हमने सुरंग बनने हीं नहीं दी आन्दोलन के ही एक नेता खड़क सिंद कुमल्टा कहते है की अब लोग समझ रहे हैं बॉध बनाना कितना खतरनाक है। 18 बच्चों के लिये देश की संसद ने श्रद्वान्जली अर्पित की लेकिन संसद को यह भी समझना होगा की कथित विकास व भ्रष्टाचार भी इन बच्चों की जान लेने में सहायक रहे है, प्राकृतिक नहीं, मानवी कृत्य इनके लिए अधिक घातक साबित हुआ है, लेकन दुखः यह है इनकी मौत का कउरण बादल फटना मान लिया गया। जबकि इनके स्कूल के ऊपर बादल फटा ही नही मंत्रियों के समझदारी का यह हाल है प्रभारी मंत्री व उत्तराखण्ड सरकार में राजस्व व आपूर्ति मंत्री दिवाकर भट्ट ने कहा है कि लोहारी नागपाल जल विद्युत परियोजना का जो विरोध कर रहे हैं वे सब सीआईए के एजेन्ट है। मंत्री जी को शायद यह मालूम नही कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री निशंक ने ही केन्द्र सरकार से लोहारी नागपाल परियोजना बंद करने की मांग की थी।
इस समय कपकोट के विधायक शेर सिंह गड़िया ने सरकार को प्रस्ताव भेजा है कि एक अरब की हानि हुई है, तत्काल राहत देकर निर्माण कार्य कराया जाए । पहाड़ में आई विपदा ने ठेकेदारों व अधिकारियों की मौज कर दी है। अधिकांश ठेकेदार दलों के ही नेता हैं इसलिये जनता के नाम से लूटने का मौका मिल गया। इस क्षेत्र में भ्रमण करने के बाद यह मालूम हुआ कि रिखाड़ी की गंगा देवी को 10 किलों आटा, 5 किलो चावल, 6 मुठ्ठी दाल व एक चाय की पुड़िया के अलावा कुछ नही मिला। खड़क सिंह व जसमल सिंह का पूरा कारोबार समाप्त हो गया है। सुरंग के ऊपर का गॉव कफलानी में लोग इतने डरे है कि लोग रात में स्कूल में जाकर सोते है। सूमागढ़ का सभापति हरिचन्द्र सत्तारूढ़ दल का नेता है, पिता कानूनगो है। सरकारी सहायता इनसे आगे बढ़ नही पा रही है। विचला, मल्ला दानपुर क्षेत्र में जर्बदस्त हानी हुई है। लेकिन नेता, मंत्री दौरा कर कच्ची सुविधायें की घोषणा कर रहे है लेकिन नीति में बदलाव की बात नहीं कर रहे है। इसलिये हादसे होते रहेगें, नेता आते रहेगें, लोग मरते रहेगे, लाशों के नाम से ठेके लेते रहेगें।

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