Monday, March 21, 2011

राख में बदल गया बारूद


अंबरीश कुमार
लोधी रोड के शमशान घाट में आलोक तोमर को अंतिम विदाई के लिए पहुंचा तो जाम के चलते कुछ देर हो गई थी . उनकी चिता से लपटे निकल रही थी .वही खड़ा रह गया .करीब बीस साल का गुजरा वक्त याद आ गया .जनसत्ता में प्रभाष जोशी के बाद अगर कोई दूसरा नाम सबसे ज्यादा चर्चित रहा तो वह आलोक तोमर का था .जनसत्ता ने उन्हें बनाया तो जनसत्ता को भी आलोक तोमर ने शीर्ष पर पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई .वे जनसत्ता रूपी तोप के बारूद थे.वह भी आज वाला जनसत्ता नही दो दशक पहले का जिसकी धमक और चमक के आगे अंग्रेजी मीडिया बौना पड़ गया था .शाम को देव श्रीमाली बोले - अब न तो वैसी हेडिंग आती है न भाषा में आक्रामकता है कुछ अपवाद छोड़कर .लगता है .मेरा जवाब था -यह समय का फेर है ,प्रभाष जोशी के समय की तुलना नही की जा सकती है .उन्होंने आलोक तोमर को तलाशा और तराशा भी .प्रभाष जोशी के बाद अब आलोक तोमर भी चले गए . बीस दिन पहले ही बात हुई तो उनकी तकलीफ को देखते हुए आगे बात करने से मना किया और कहा , सुप्रिया जी को सब बता दूंगा जो आपको समझा देंगी आपको बात करने के लिए काफी जोर डालना पड़ रहा है .वे कालाहांडी की मौजूदा हालत के बारें में मेरी जानकारी पर सवाल खड़ा कर बहस कर रहे थे .अंतत मैंने हथियार डाल दिए और उन्होंने चार पांच दिन में लिखने का वादा किया . फिर आलोक से बात नही हो पाई जो कहना होता था सुप्रिया से कहा जाता और उन्ही के जरिए जवाब मिल जाता .राख में बदलते आलोक तोमर को हाथ जोड़ पीछे लौटा तो सुप्रिया देखते ही फफक कर बोली -अब हम कभी रामगढ नही जा पाएंगे .हमारा घर नही बन पाएगा .देखिए आलोक चले गए .सुनता रहा बोलने को कुछ था ही नही .शमशान घाट से घर पहुंचे तो सुप्रिया का हाल और बुरा था .आलोक की फोटों को देख बार बार उन्हें आवाज दे रही थी .कुछ देर बैठा फिर बाहर निकल आया .छतीसगढ़ के वरिष्ठ अफसर आलोक अवस्थी ,हरीश पाठक ,देव श्रीमाली ,आलोक कुमार ,मयंक सक्सेना और राहुल देव आदि थे .करीब दो घंटे बाद कृष्ण मोहन सिंह के साथ दोबारा पहुंचा तो पद्मा सचदेव ,प्रणव मुखर्जी की पुत्री शर्मिष्ठा और टीवी के कुछ पत्रकार मौजूद थे .दो अप्रैल के कार्यक्रम पर बात हो रही थी .आलोक तोमर के वेब साईट डेटलाइन इंडिया को जल्द अपडेट करने पर पर भी चर्चा हुई .आलोक तोमर का मोबाइल फोन पहले से ही बंद कर दिया गया है और सुप्रिया का फोन फिलहाल अनिल गुप्ता के पास है और वही बात भी करेंगे क्योकि सुप्रिया सभी से बात कर सके यह संभव भी नही है .कुछ कानूनी और तकनीकी पहलुओं पर बात होते होते अचानक सुप्रिया का ध्यान आलोक तोमर की फोटो पर जाता और वे फिर उन्हें पुकारने लगती .पद्मा सचदेव के सुप्रिया को गले से लगाकर कहा -आलोक कही नही गया है वह हम सबके साथ है .फिर उन्होंने आलोक तोमर के कई संस्मरण सुनाए और कहा -शादी के दौरान मैंने मजाक में कहा था मुझे बंगाली बहू नही चाहिए तो आलोक का जवाब था अब आपकी बहू तो यही बनेगी .
सुप्रिया बोली -ज्योतिष के जानकारों को आलोक झूटा साबित कर चले गए .आखिरी तक उनकी कलम चलती रही .१७ मार्च को उन्होंने जो लेख लिखा उसी के बाद बत्रा गए और फिर हमेशा के लिए चले गए . चितरंजन खेतान पिछले महीने जब विदेश जाने से पहले मिलने आए तो एक कविता लिखी जो अंतिम कविता बन गई .इस कविता की फोटो कापी अनिल गुप्ता ने कराकर सभी को दी .रात आठ बजे जब चलने को उठा तो सुप्रिया की आँखे फिर भर आई और बोली -दो अप्रैल को आ रहे है ना , मैंने इशारे से कहा हाँ .कुछ बोला नही गया .सामने बैठे आलोक तोमर के पिताजी को नमस्कार किया और फिर कमरे से बाहर आ गया .कृष्ण मोहन सिंह और विजय शुक्ल साथ थे . कुछ समझ में नही आ रहा था .समय ही हर घाव को भरता है और यहाँ भी यही होगा यह सोचकर दिलासा दे रहा हूँ .

Sunday, March 20, 2011

आलोक तोमर चले गए



एक और साथी अपना और सबका साथ छोड़ गए .आलोक तोमर अब नही रहे .यकीन नही हुआ .कल रात ही सुप्रिया से सारे परिवार ने बात की थी .वे आत्मविश्वाश से लबरेज थी और हम सब आशंकित .रात ही विजय शुक्ल से कहा कि होली के दिन बत्रा अस्पताल में दोपहर तक उन्हें रुकना चाहिए क्योकि अन्य लोग दोपहर बाद पहुंचेगे . पता चला अनिल गुप्ता दस बजे तक पहुँच जाएंगे और फिर कोई न कोई परिवार के साथ रहेगा .सुबह करीब साढ़े दस बजे विजय शुक्ल का फोन आया कि दोबारा अटैक आया है और वे निकल रहे है .मैंने फोन रख दिया और कुछ देर में कई फोन जिन्हें उठाने की हिम्मत नहीं पड़ी .मयंक सक्सेना ,नीरज मेहरे और वीरेंदर नाथ भट्ट से बात की .मन खराब हो गया है .
आलोक तोमर से करीब २३ साल पुराना संबंध रहा है .आलोक और सुप्रिया के विवाह में भी शामिल हुआ था जिसमे दिल्ली का समूचा मीडिया उमड़ पड़ा था.वह दौर आलोक तोमर के क्षितिज पर चमकने का दौर था .समूची हिंदी पट्टी में उनका नाम एक ब्रांड बन चुका था . वर्ष १९८४ के सिख दंगों की जो मानवीय कवरेज आलोक तोमर ने की उसने उन्हें शीर्ष पर पहुंचा दिया .अपराध और राजनैतिक रिपोर्टिंग में आलोक ने भाषा का जो प्रयोग किया उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता .पर उनके जीने का अराजक अंदाज सभी को खलता था और उसका नुकसान भी उठाना पड़ा .जिस जनसत्ता ने उन्हें बुलंदियों पर पहुँचाया उसका साथ बहुत दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से छूटा.अपने संपादक प्रभाष जोशी का समूचे अखबार में कोई सबसे प्रिय पात्र था तो वे आलोक तोमर थे .पर प्रभाष जी को ही आलोक तोमर से एक लेख में एक शब्द के बदलाव के आरोप में इस्तीफा लेना पड़ा .यह ऐसा अपराध नहीं था कि उन जैसे पत्रकार से इस्तीफा लिया जाए पर अखबार में आलोक तोमर के खिलाफ जो खेमा था उसका दबाव भारी पड़ा .फिर आलोक तोमर ने कभी बहादुर शाह जफ़र मार्ग स्थित इंडियन एक्सप्रेस बिल्डिंग की सीढियों पर कदम नहीं रखा .
जनसत्ता छोड़ने के बाद कई अखबार और कई चैनल वे छोड़ते गए . शब्दार्थ शुरू किया तो बाद में डेटलाइन इंडिया डट काम वेबसाइट भी .राजनीतिकों से लेकर सांस्कृतिक क्षेत्रों के आलावा मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में उनके निजी मित्रों की संख्या कम नही थी .महेश भट्ट से लेकर ओमपुरी से पारिवारिक रिश्ते रहे . लिखना भी लगातार जारी रहा .उनके लिखे से असहमत हुआ जा सकता है पर आलोक तोमर को खरिज करना आसान नहीं था .लिखना भी अंत तक जारी रहा चार दिन पहले जब वे बत्रा अस्पताल गए थे तो उससे पहले भी एक लेख तैयार करवा रहे थे .बीते चार मार्च को आलोक ने वादा किया था की मेरी पुस्तक के लिए वे कालाहांडी पर एक अध्याय लिखेंगे .आखिरी शब्द आज भी कान में गूंज रहा है - काम हो जाएगा यार चिंता मत करों .
इसके बाद मैंने उनका कोई शब्द नही सुना और न ही अब सुन सकूँगा .फरवरी के दूसरे हफ्ते में जब वे बोल रहे थे और मै लिख रहा था तो सुप्रिया रो रही थी .वे उस सिगरेट के बारें में ,धुवें के बारे में जो कह रहे थे जो उन्हें हम सब से छीन ले गया .अगर वे साल भर पहले मान जाते तो संभवतः यह दिन नहीं आता .खैर एक इच्छा थी हिमालय के बर्फ से घिरे रामगढ़ में सेव के बगीचे में बैठकर लिखने की .उन्होंने जमीन भी खरीद ली और घर बनाने की योजना भी बन गई .जब भी आते अपने रायटर्स काटेज में रुकते और कही जाने की बजाय कमरे से हिमालय को निहारते रहते . उन्ही के कहने पर अर्जुन सिंह भी रामगढ़ आए और अपनी आत्मकथा का पहला अध्याय भी वही लिख गए .पर आलोक तोमर की यह इच्छा नही पूरी हो पाई .लिखने को बहुत कुछ है पर न मन है और ना दिमाग काम कर रहा है .
अंबरीश कुमार

फोटो -रामगढ़ के राइटर्स काटेज में खड़े आलोक तोमर

Saturday, March 19, 2011

मेजबान सतीश शर्मा, मेहमान नचिकेता !


मयंक सक्सेना
नई दिल्ली ,मार्च । केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री घोटालों से उपजे सरदर्द से अभी उबर पाते इससे पहले ही विकीलीक्स से लीक हुई जानकारियां कोढ़ में खाज का काम करने लगी हैं। विकीलीक्स के वोट फॉर कैश मामले पर लीक किए गए एक अमेरिकी केबल को एक अंग्रेज़ी अख़बार ने छापा तो संसद एक बार फिर सर्कस बनती नज़र आई, बवाल हुआ, प्रधानमंत्री से इस्तीफ़ा तक मांग डाला गया और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो इस बार बाक़ायदा तन कर और तुनक कर बोले कि जनता इन आरोपों को खारिज कर चुकी है कि विश्वास मत के दौरान किसी तरह से वोट खरीदे गए। उधर लीक हुए केबल्स में जिस नचिकेता कपूर का नाम लिया गया, उसको लेकर कैप्टन सतीश शर्मा ने सफाई दे डाली कि इस नाम का कोई शख्स कभी उनका सहयोगी नहीं रहा पर हमारे हाथ लगी कुछ पुरानी पेज थ्री ख़बरों को सच मानें तो नचिकेता कपूर सतीश शर्मा को और सतीश शर्मा नचिकेता को अच्छी तरह जानते हैं क्योंकि कपूर साहब, शर्मा जी के बेटे की शादी में मेहमान थे और खास मेहमान थे।
वैसे याद दिलाना ज़रूरी होगा कि ये वही नचिकेता कपूर हैं जिन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स में भी इनकी योग्यता से बड़ा एक पद बंदरबांट में मिला था लेकिन बाद में विवादों के चलते इनको वह पद छोड़ना पड़ा था तो कम से कम पक्के न सही पर सुरेश कलमाड़ी बल्कि कांग्रेस से तो इनके सम्बंधो के बारे में कयास लगने स्वाभाविक हैं। लेकिन जिस तरह प्रधानमंत्री दहाड़ कर कह रहे हैं कि ऐसा कोई मामला अस्तित्व में ही नहीं है तो ज़रा जान लेते हैं कि सतीश शर्मा जो कह रहे हैं वो कितना सच है। दरअसल विकीलीक्स पर सार्वजनिक की गई सूचनाएं एक अमेरिकी राजनयिक के संदेश पर आधारित है। इस संदेश में कहा गया कि अमरीकी दूतावास के एक सलाहकार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सतीश शर्मा के एक सहायक (नचिकेता कपूर) ने रुपयों से भरी दो तिजोरियाँ दिखाईं थीं और कहा था कि विश्वास मत के दौरान समर्थन जुटाने के लिए 50 से 60 करोड़ रुपए का इंतज़ाम किया गया है। इसके बाद भाजपा के सांसदों ने सदन के पटल पर नोटों के बंडल रख दिए थे और हंगामा बरपा था। पर आज सतीश शर्मा नचिकेता कपूर को जानने से ही इनकार करते हैं तो चलिए आपको बताते हैं कि सतीश शर्मा के इस दावे में कितना दम है। दरअसल नवम्बर 2008 में मुम्बई पर हुए आतंकी हमले के कुछ ही दिन बाद कैप्टेन सतीश शर्मा के बेटे समीर शर्मा के विवाह का कार्यक्रम था, जिसमें राहुल गांधी समेता कई वरिष्ठ राजनेता और कई सेलेब्रिटी शामिल थे। अखबार उस वक़्त के अखबारों के तीसरे पन्ने को सच मानें तो उस वैवाहिक कार्यक्रम में नचिकेता कपूर की भी सक्रिय मौजूदगी थी।
ज़रा एक बानगी देखिए कि एक ब्लॉग कैसे नचिकेता कपूर की उस शादी में उपस्थिति को ख़बर बनाकर छापता है, जिसमें और भी कई बड़ी हस्तियां शामिल थी।

Nachiketa Kapur atteded the wedding

Nachiketa Kapur atteded the wedding
The three-day-long festivities for the wedding of Samir Sharma and Taruna concluded with a grand reception. The function was attended by Delhi's who's who.
potted: Rahul Gandhi, Priyanka and Robert Vadra, Nachiketa Kapur, Renu and Sunil Tandon, Sunaina and Rajeev Chibba, Dilip and Devi Cherian, Rohit Rajpal, Rahul and Isha Rajpal, Ramola Bachchan, Sanjay and Shalini Passi, Chetan Seth, Kamal Nath, Satish Sharma, Sonali and Peter Punj, Rahul Bhat, Ritu Beri and Bobby, Sunil and Nyna Mittal, Rajan Mittal, Farooq Abdullah, Salman Khurshid, Jiten Prasad, Priya Jain, Harvir Kahtri, Jiten Khatri, Sonali and Peter Punj, Ritu and Rajan Nanda, Natasha Nanda, Priya Chatwal, Harry, Charu Sachdev, Sharika, Bhim Bachchan, Namrita Bachchan
(स्रोत: http://wwwsunitakapoor.blogspot.com/2010/09/nachiketa-kapur-atteded-wedding.html)
यही नहीं एक समाचार एजेंसी द्वारा प्रकाशिक एक ख़बर में भी इस बात की तस्दीक की गई है कि उस शादी में नचिकेता कपूर मौजूद थे। INNCNEWS.COM पर प्रकाशित ख़बर में भी नचिकेता कपूर का नाम सतीश शर्मा के बेटे के विवाह के मेहमानों की सूची में है। संदर्भ के लिए http://www.inncnews.com/view.php?id=27 पर जाया जा सकता है।
यही नहीं इस तस्वीर (Picture attached) में भी नचिकेता कपूर समीर शर्मा की शादी के मौके पर नेस वाडिया और हरीश खत्री के साथ खड़े दिखते हैं। अब सवाल ये उठता है कि ये कैसे सम्भव है कि एक व्यक्ति जो समीर शर्मा के विवाह में आमंत्रित है, पूरे कार्यक्रम में उपस्थित है और तमाम हस्तियों के साथ तस्वीरें खिंचवा रहा है जो नामांकित हो कर अखबारों के तीसरे पन्नों पर छप रही हैं, उसे कैप्टेन साहब जानते ही न हों।
ज़ाहिर है कि सतीश शर्मा कुछ न कुछ तो छुपा रहे हैं और अब जब कि हमारी रिपोर्ट के बाद ये तथ्य सामने आएंगे तो सतीश शर्मा से उम्मीद की जा सकती है कि कम से कम वो ये तो स्वीकारेंगे ही कि वो नचिकेता कपूर को जानते हैं।

Tuesday, March 8, 2011

विदर्भ से लौट कर




चार दिन के विदर्भ दौरे के बाद कल शाम लौटा .अमरावती ,अकोला , वर्धा और नागपुर के करीब ढाई दर्जन गांवों का दौरा करने के बाद थकावट हो गई थी . दौरे में कई साथी भी शामिल थे . किसान नेता प्रताप गोस्वामी से लेकर पीजीवीएस के डाक्टर भानु और एपी सिंह भी .कल सुबह नागपुर में सुबह करीब छह बजे होटल छोड़ एयरपोर्ट रवाना हुआ था .नहाने के बावजूद आँखों में नीद भरी थी .वजह देर रात तक नागपुर के जिमखाना क्लब में बैठना था . हिन्दुस्तान टाइम्स के पत्रकार प्रदीप मैत्रा हर बार घर बुलाकर हिलसा मछली की दावत देते थे पर इस बार हमने उनसे महाराष्ट्र की मशहूर मछली मारन खाने की इच्छा जताई तो वे जिमखाना क्लब ले आए क्योकि वे इस क्लब के इकलोते पत्रकार सदस्य है .करीब सवा सौ साल पुराने इस क्लब का खाना दिव्य है .साथ आए मित्रों को भी यह जगह और यहाँ की डिसेज काफी पसंद आई . मारन मछली का स्वाद रोहू से अलग था . टीचर्स का दौर चला तो उठते उठते साढ़े बारह बज चुके थे .प्रदीप मैत्रा विदर्भ के किसानो पर जितना लिख चुके है उतना किसी ने भी नही लिखा है .इंडियन एक्सप्रेस के समय से वे किसानो पर लिख रहे है और खुदकुशी करने वाले एक किसान के परिवार का वे पूरा खर्चा उठाने के साथ उसकी दो बेटियों को पढ़ा रहे है. ऐसे पत्रकार कितने मिलेंगे .किसानों पर उनसे करीब दो घंटे बात हुई .डाक्टर भानु उनसे लिखवाना चाहते थे उसी सिलसिले में बात हो रही थी .
पिछले. तीन दिन से पुरी दिनचर्या बदली हुई थी .सुबह पांच बजे उठकर नहाना और फिर तैयार होकर विदर्भ के गांवों की तरफ चल देना .रात का खाना एक बजे तक हो पाता था . कई बार रात में घने जंगलों से गुजरे तो सड़क नदारत थी . दो वहां थे जिसमे एक में कैमरा टीम थी .बड़े वाहनों को ख़राब सड़क पर चलाना बहुत कठिन था .दिन भर गाँव गाँव जाना और गाँव वालों से बात करने के साथ विदरभ के किसानो और महिलाओं पर एक डाक्यूमेंट्री पर काम कर रहा था .लगातार काम के बाद लखनऊ लौटने की योजना में बदलाव हो गया .अब नागपुर से मुम्बई जाना था और फिर मुम्बई करीब तीन घंटे रुकने के बाद दिल्ली पहुंचना था .
दिल्ली में फिर कुछ समय समय बाद लखनऊ रवाना होना था . मुम्बई पहुंचे तो वडा पाँव खाने विले पार्ले के एक मशहूर दूकान पर पहुँच गए . मुम्बई का तापमान ३८ डिग्री पार कर चूका था जबकि सुबह नागपुर में कुछ सर्दी महसूस हो रही थी .तापमान यह बदलाव लखनऊ पहुँचते पहुँचते बुखार में बदल चूका था .
वैसे भी दूर दराज के इलाकों में जो पानी मिला उससे लग रहा था कि यह नुकसान पहुंचा सकता है .महाराष्ट्र के किसान नेता प्रताप गोस्वामी हर बार नास्ते और भोजन का इंतजाम किसानो खासकर जो कार्यकर्त्ता थे उनके घर ही रखते है . रविवार को सुबह उन्होंने अरुणा चापले के घर पोहा नास्ता करवाया तो दोपहर की बजाय शाम को एक दूसरे किसान विनोद भाई के घर दाल भात और भजिया का भोजन हुआ .घर से लगा संतरे का बाग़ था इसलिए कैमरामैन शाकिर ने सूर्यास्त का सीन यही फिल्माने का मन बनाया .हम लोग बगल में उस परिवार के घर चले गए जिसके मुखिया ने घर के बगल में पेड़ से लटक कर खुदकुशी कर ली थी .दो दीन से ऐसे ही परिवारों के बीच थे ..एपी सिंह , डाक्टर भानु ,विनोद सिंह और प्रताप गोस्वामी लगातार साथ रहे .सर्वेक्षण का काम भी पूरा हो चूका था अब लिखना और फिल्म का संपादन बाकी है जिसमे रायपुर के पुराने साथी और तहलका के पत्रकार राज कुमार सोनी मदद करेंगे .
अंबरीश कुमार

विदर्भ में किसानो का चूल्हा बंदी आंदोलन



अंबरीश कुमार
अमरावती, मार्च। विदर्भ के किसानों ने अब चूल बंद आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है। यह फैसला रविवार को यहां से 75 किलोमीटर दूर कारंजा तहसील के तरोड़ा गांव में किसानों की एक बैठक में किया गया। इस बैठक में करीब दर्जन भर गांव के किसान शामिल हुए थे। बैठक में इसके साथ ही खुदकुशी करने वाले किसानों की विधवा औरतों को एकजुट करने का भी फैसला किया गया। यह बैठक पूर्वांचल ग्रामीण विकास संस्थान (पीजीवीएस) और किसान मंच के साझा तौर पर बुलाी गई थी। गौरतलब है कि इन दोनों संगठनों ने विदर्भ के आधा दर्जन गांव में किसानों के हालात का सर्वे करने के बाद एक अध्ययन दल इन गांवों का मुआयना करने के लिए भेज रखा है। इस सर्वे के दायरे में विदर्भ के करीब आधा दर्जन जिले शामिल किए गए हैं। इन जिलों में अमरावती, अकोला, वासिम, वुलढ़ाना, वर्धा और यवतमाल शामिल है। किसानों की बैठक में बोलते हुए किसान मंच की महिला शाखा की संयोजक अरुना चापले ने कहा, ‘खुदकुशी से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। एक किसान खुदकुशी करता है तो पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ जाता है। जिसकी आमदनी का अंतिम जरिया भी खत्म हो जाता है। ऐसे में परिवार दर-दर की ठोकरें खाता है। विदर्भ के ग्यारह जिलों में हर साल करीब तीन हजार किसान खुदकुशी कर रहे हैं। जनवरी 2011 से अब तक करीब सात सौ किसान खुदकुशी कर चुके हैं। खुदकुशी करने वाले किसानों का सवाल उठ भी जाए पर उन विधवा औरतों का सवाल कोई नहीं उठाता जो बदहाली का शिकार हो अभिशप्त जीवन जी रही हैं। हम लोगों ने इन विधवा महिलाओं को संगठित कर विदर्भ के गांव में चूल बंद यानी चूल्हा बंदी आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है। जिसके तहत गांव में हफ्ते में एक बार चूल्हा नहीं जलेगा। इस चूल बंद आंदोलन की शुरुआत कारंजा तहसील के ग्यारह गांव से हो रही है।’
बैठक में कई किसानों ने अपनी बात रखी। वहीं तरोड़ा गांव के किसान विनायक विश्वनाथ मोहाड ने अपनी समस्या को लेकर चार दिन के भीतर खुदकुशी करने एलान कर सभी को हिला दिया। विनायक विश्वनाथ ने बताया कि उसके खेत के बीच से कच्ची नहर निकाल दी गई है जिसके चलते उसकी संतरे की खेती पूरी तरह चौपट हो गई है। इसको लेकर वह सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटता रहा ताकि नहर पक्की बन जाए तो खेत बच जाए। लेकिन उसकी नहीं सुनी गई और अब उसके सामने खुदकुशी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। इसके बाद बैठक में आए किसानों ने उसे समझाने की कोशिश की। इस बैठक में वे महिलाएं भी आई थीं जिनके पति या बेटे ने खुदकुशी कर ली थी। ऐसी ही एक पचास साल की महिला मुक्ता प्रभाकर ने आचल से आंसू पोछते हुए कहा, ‘मेरे बेटे विलास प्रभाकर ने दो साल पहले ही अपनी शादी के ठीक चार दिन पहले खुदकुशी कर ली थी। वह कर्ज में डूबा हुआ था। जिसके चलते उसने अपनी जान दे दी पर हमारी परेशानियों का कोई अंत नहीं हो रहा, कहां जाएं यह समझ नहीं आता।’ इस मौके पर किसान मंच के महासचिव प्रताप गोस्वामी ने कहा, ‘विदर्भ में किसानों की समस्याओं को सुलझो के लिए हमें संगठित होकर प्रयास करना होगा। आज त्रासदी यह है कि किसानों की बात न तो सरकार सुनती है और न कोई राजनैतिक दल इनकी सुध लेने आता है। विदर्भ में सिर्फ कपास किसान ही खुदकुशी नहीं कर रहे हैं, बल्कि अब सोयाबीन से लेकर संतरे के बागान लगाने वाले किसान भी खुदकुशी करने लगे हैं। यहां के किसान कर्ज में डूबे हैं और उन्हें केंद्र या राज्य सरकार की किसी भी कर्ज माफी योजना का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। प्रधानमंत्री का राहत पैकेज भी विदर्भ में नाकाम साबित हुआ है। उसकी मुख्य वजह यह है कि राहत का ज्यादातर पैसा नेताओ और सूदखोर महाजनों की जेब में जा रहा है। शर्मनाक घटना तो यह है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख को एक विधायक दिलीप सानंदा को बचाने का दोषी माना। ये वही सानंदा हैं जो किसानों को भारी ब्याज पर कर्ज देते रहे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में देशमुख पर दस लाख रुपए का जुर्माना लगाया जिसे महाराष्ट्र सरकार ने भरा भी। इस मामले से विदर्भ के हालात साफ हो जाते हैं। जिसमें नेता, सूदखोर महाजन और अफसरशाही का खेल सामने आ जाता है।’
उन्होंने आगे कहा कि पीजीवीएस की तरफ से जो सर्वेक्षण कराया गया है। उसका विश्लेषण किया जा रहा है। पर इसके फौरी नतीजे चौंकाने वाले हैं। जिससे पता चल रहा है कि दस हजार से लेकर पचास हजार रुपए तक के कर्ज में डूबा किसान भी खुदकुशी कर ले रहा है। अब इस सवाल को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने के लिए इस क्षेत्र के ग्यारह गांवों में हम आंदोलन छेड़ने जा रहे हैं। यह चूल बंद आंदोलन आगामी चौदह अप्रैल से जिन गांव में शुरू किया जाएगा उनके नाम हैं- बोरी, कन्नमवार, सारथखांडा, हेटीकुंडी, मूसी, जामिनी, सावड़ी खुर्द, तरोड़ा, थाणेगांव, सेल गांव और कारंजा शामिल है। इस मौके पर पीजीवीएस के निदेशक डाक्टर भानु ने बताया, ‘हमारे सर्वे से पता चला है कि विदर्भ के हालात काफी गंभीर हैं। सर्वे के साथ-साथ हमने दर्जन भर गांव का दौरा भी किया। हम कन्नमवार गांव भी गए जिसमें हफ्ते भर पहले एक किसान ने खुदकुशी कर ली थी। यह गांव महाराष्ट्र के दूसरे मुख्यमंत्री दादा साहब मारोत राव कन्नमवार के नाम पर बसाया गय था। तब यह हालत है कि सरकार ऐसे गांव के किसानों की भी सुध नहीं ली रही है। मरने वाले किसान रमेश राव सोनकुटार पर पचास हजार रुपए का कुल कर्ज था जिसमें बीस हजार रुपए को-आपरेटिव बैंक और तीस हजरा रुपए निजी महाजन का। आज हालत यह है कि खुदकुशी के बावजूद उस किसान को कोई मुआवजा इसलिए नहीं दिया जा रहा है क्योंकि उसके नाम कोई खेत नहीं था जो खेती-बारी वह करता वह उसके पिता के नाम पर है। ऐसे में प्रशासन उसे किसान मानने को भी तैयार नहीं है। यह एक उदाहरण है। जिससे विदर्भ के हालात का अंदाज लगाया जा सकता है। इस बारे में ब्योरेवार एक रिपोर्ट जल्द जारी की जाएगी।’
विदर्भ में किसानों की खुदकुशी का सिलसिला जारी है। कल यवतमाल जिले में खुदकुशी का प्रयास करने वाले एक किसान से जब इस संवाददाता ने यवतमाल जिले के संजीवन मल्टी स्पेशलिटी हास्पिटल में मिलने की कोशिश की तो उसके प्रबंध निदेशक सुनील अग्रवाल ने इजाजत देने से मना कर दिया। बाद में पता चला कि खुदकुशी की कोशिश करने के बावजूद प्रशासन ने इस मेडिको लीगल केस को एक निजी अस्पताल को रेफर कर दिया गया था ताकि यह मामला तूल न पकड़ पाए। शनिवार को राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण भी यवतमाल जिले में ही थे। जिसके चलते प्रशासन ने मामला दबाने के लिए यह काम किया।

जहरीला हो गया है बनारस के घाट का पानी

अंबरीश कुमार
वाराणसी मार्च। बनारस के घाट पर अब गंगा स्नान करना महंगा पड़ सकता है । शिव की इस नगरी में पहुंचते पहुंचते गंगा गटर के पानी से भी ज्यादा खतरनाक हो चुकी है । यह बात अब खुद प्रदेश सरकार के संबंधित अफसर और विभाग कहने लगे है । साल की शुरुआत यानी जनवरी में लगातार पांच दिन तक गंगा के पानी का सैम्पल लेकर जब उसकी जांच कराई गई तो पता चला कि गंगा का पानी पीने लायक तो पहले ही नही था अब नहाने लायक भी नही बचा है । जो काशी में गंगा स्नान का पुन्य लेना चाहते है उन्हें जरुर सावधान रहना चाहिए क्योकि यहाँ का गंगा जल कई बीमारियों को न्योता दे सकता है । गंगा के पानी को खतरनाक स्तर तक प्रदूषित होने की जानकारी लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश राज्य स्वास्थ्य विभाग की प्रयोगशाला ने सबसे पहले दी और विभाग के अपर निदेशक ने २५ अक्तूबर २०१० को वाराणसी के जल संस्थान को पूरी रिपोर्ट दी । इस रपट में वाराणसी में गंगा के पानी की जांच पड़ताल कर बुरी तरह प्रदूषित बताया गया । इसके बाद जल संस्थान ने इस साल जनवरी में १४ जनवरी से २० जनवरी तक गंगा के पानी की जांच कराई जिसमे पानी काफी खराब पाया गया । फिर इसकी जानकारी प्रदूषण नियंत्रण विभाग को दी गई । इस बारें में वाराणसी स्थित उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड असिस्टेंट केमिस्ट फ्रैंकलिन ने जनसत्ता से कहा - बनारस के घाट पर गंगा का पानी नहाने लायक भी नही है । यह बात अलग है कि गटर में बदलती गंगा के पानी को लेकर सबसे ज्यादा आपराधिक भूमिका भी इसी विभाग की मानी जा रही है जिसका आला अफसर न तो फोन रखता है और न ही गंगा के पानी के बढ़ते प्रदूषण पर संबंधित विभागों की सुनता है ।यह जवाब विभाग के ही अधीनस्थ कर्मचारी का है ।
गंगा बनारस पहुँचने से पहले ही काफी प्रदूषित हो जाती है और जो रही सही कसर बचती है उसे काशी का कचरा पूरा कर देता है ।सुनारों के मोहल्ले से चांदी साफ़ करने के बाद बचा तेज़ाब सीधे नाले में बहाया जाता है तो जुलाहों के इलाके में धागे से निकला कचरा भी सीवर में जाता है जो अकसर नालों को बंद कर देता है । बूचड़खानों के कचरे के साथ अस्पतालों का कचरा भी पवित्र गंगा में जा रहा है । और गंगा का यही पानी बनारस के बासिंदों को कुछ हद तक साफ़ कर पिलाया जाता है । अब खुद जल संस्थान गंगा के प्रदूषित पानी को को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से गुहार लगा रहा है ताकि बनारस के लोगों को साफ़ पानी मिल सके ।
इस साल जनवरी के तीसरे हफ्ते में वाराणसी के जल संस्थान ने लगातार पांच दिन तक गंगा के पानी का सैम्पल लेकर उसकी प्रयोगशाला में जांच कराई । रुटीन जांच के आलावा यह जांच इसलिए कराई गई क्योकि कई दिनों से गंगा नदी का जल का रंग मटमैला पीला होता जा रहा था । साथ ही उसमें चमड़े की झिल्ली भी देखने को मिल रही थी । जिसकी वजह से पीने के पानी के फिल्ट्रेशन व शोधन में कठिनाई होने लगी थी । गंगा के पानी की जांच फिर लखनऊ स्थित स्वास्थ्य विभाग की प्रयोगशाला में कराई गई । लखनऊ में स्वास्थ्य विभाग के एक अफसर ने कहा - बनारस में गंगा के पानी की जो रिपोर्ट आई है वह एक चेतावनी है । इसकी सीधी जिम्मेदारी वाराणसी के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की है जो लोगों के जीवन से खेल रहा है । ये लोग तो गंगा के बीच का सैम्पल लेकर झांसा देने की कोशिश करते है जबकि सबको पता है कि नाले किनारे पर गिरते है और वहां का पानी ज्यादा प्रदूषित होता है । इस रिपोर्ट से साफ़ है कि किसी फैक्ट्री के जरिए अनुपयोगी पदार्थ को गंगा नदी में छोड़ा जा रहा है। इसकी वजह से कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ रहा है।
जलकल विभाग ने गंगा के जल में प्रदूषण की मात्रा के परीक्षण के लिए 14 से 17 जनवरी के बीच जो जांच कराई उस सैंपल में टरवीडिटी ( गंदगी ) की मात्रा 40 एनटीयू पाई गई थी । पानी का रंग मटमैला पीला था और उसमे एमपीएन की मात्रा 1800 प्राप्त हुई व 18 से 20 जनवरी के मध्य लिए गए जल के सैंपल में जल की टरवीडिटी 45, जल का रंग मटमैला पीला रंग व उसमे एमपीएन की मात्रा 1800 मिली । विशेषज्ञों के मुताबिक यह मात्रा काफी ज्यादा है । वैज्ञानिक एएन सिंह ने कहा - गंगा के पानी का इस कदर प्रदूषित होना खतरनाक है । गंगा सिर्फ एक नदी नही है बल्कि लोगों की आस्था इससे जुड़ी है जिसके साथ खिलवाड़ किया जा रहा है । सरकार को अगर लोगों के स्वास्थ्य की रत्ती भर भी चिंता है तो सबसे पहले उन अफसरों को दण्डित किया जाना चाहिए जिनपर प्रदूषण नियंत्रण की निगरानी का जिम्मा है । इसके लिए असली जिम्मेदार वही है । प्रदूषण नियंत्रण की जिम्मेदारी निभाने वाले कुछ अफसर पैसा लेकर नदी नालों में कचरा बहाने की छूट दे देते है । इसी के चलते नदियाँ प्रदूषित हो रही है ।