Sunday, August 22, 2010

खामोश हो गई आंदोलनों की आवाज ,नही रहे गिरदा’


उत्तराखंड के क्रांतिकारी जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ नही रहे। नागार्जुन और त्रिलोचन की परंपरा के इस जनकवि का पूरा जीवन संघर्ष भरा रहा। उतराखंड आंदोलनों को क्रांतिकारी आवाज देने वाली यह आवाज आज खामोश हो गई । ' आज हिमाल तुमुं कै धत्युं छः जागो जागो ओ मेरे लाल , गीत की यह पंक्तिया महाप्रयाण से पहले गिरदा ने अंतिम बार गुनगुनाई थी ।
रविवार की सुबह हल्द्वानी में गिरदा का निधन हो गया। वे 68 वर्ष के थे। उनके परिवार में पत्नी और एक पुत्र है। गिरदा ने हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में रविवार की सुबह करीब सवा ग्यारह बजे अंतिम सांस ली। वे पेट का अल्सर फटने के बाद पिछले 20 अगस्त को अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनका 21 अगस्त को आपरेशन किया गया मगर आंत फटने के बाद हुए संक्रमण के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका। उनकी अंत्येष्टि सोमवार की सुबह नैनीताल में होगी।
‘गिरदा’ के नाम से मशहूर गिरीश तिवाड़ी के गीतों ने चिपको आंदोलन से लेकर, नशा नहीं रोजगार दो, अगल राज्य के आंदोलन और नदी बचाओ आंदोलन सहित राज्य के चार बड़े जनांदोलनों में अलख जगाई। हुड़के की थाप पर ‘आज हिमालय तुमूकैं धत्यूं छौ, जागो-जागो ओ मेरा लाल’ और ‘ओ जैंता एक दिन तो आलो उदिन यौ दुनि में’ जैसे जनगीत गाते हुए गिरदा ने खुद भी जनांदोलनों में शिरकत की। उनके गीतों की तरह उनकी आवाज में भी गजब का जादू था। शेखर पाठक के साथ मिल कर लिखी गई उनकी एक पुस्तक ‘शिखरों के स्वर’ कुमाऊं विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल है। इसके अलावा ‘उत्तराखंड काव्य’ नाम की एक अन्य पुस्तक में उनके गीत संग्रहीत हैं।
उनके निधन पर शोक जताते हुए ‘पहाड़’ के संपादक प्रोफ़ेसर शेखर पाठक ने कहा कि वे सबके लिए बोलने वाले, पूरी मनुष्यता के लिए चिंता करने वाले और पूरी दुनिया के लिए सोचने वाले कलाकार थे, जो अब चले गए। प्रो. पाठक ने बताया कि इधर गिरदा के तीन संग्रहों के एक साथ प्रकाशन की तैयारी चल रही थी, जिनमें एक उनके कुमाऊंनी गीतों का, एक हिंदी गीतों का संकलन और एक अन्य पुस्तक उनके तीन नाटकों का संग्रह है। उन्होंने कहा कि इन तीनों पुस्तकों को हम शीघ्र प्रकाशित करेंगे। पत्रकार नवीन जोशी ने उन्हें पंद्रह दिन पहले ही लखनऊ के मेडिकल कालेज में दिखवा कर नैनीताल भेजा था । तब गिरदा ने कहा था वे ठीक है । आज नविन जोशी नैनीताल में उन्हें अंतिम विदाई दे रहे थे। लखनऊ में एक गिरदा के निधन पर एक शोक सभा कर उन्हें श्रधांजलि दी गई ।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन शाह ने कहा कि गिरदा सिर्फ कवि, गायक या रंगकर्मी नहीं थे, वे ऐसे बिरले बुद्धिजीवियों में से थे जो गोली खाने को भी तैयार रहता हो। गिरदा सचमुच लोगों के दिलों में राज करते थे। उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा कि उनके गीतों ने हर जनांदोलन में उत्प्रेरक का काम किया। वे आज हमेशा के लिए सो गए पर उनके गीत हमें इसी तरह आगे भी उठ खड़े होने की ताकत देते रहेंगे। दिल्ली में पर्वतीय कला केंद्र ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। पर्वतीय कला केंद्र के महासचिव चंद्रमोहन पपनै ने कहा कि गिरदा बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उनके गीत हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं, जो हमें हमेशा उनकी याद दिलाते रहेंगे और जगाते रहेंगे।

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