Saturday, August 14, 2010

झारखंड में शह-मात का खेल

वीना श्रीवास्तव
रांची। झारखंड में राष्ट्रपति शासन के जरिए कांग्रेस चुनाव की तैयारी की रणनीति पर चल रही है। कांग्रेस के साथी बाबूलाल मरांडी इस चाल को समझ रहे हैं लिहाजा वे अभी से कांग्रेस पर दबाव बनाने का खेल शुरू कर चुके हैं। भाजपा झामुमो से मिले झटके से उबरने के लिए मौके की तलाश में है और झामुमो हमेशा की तरह अपनी आदिवासी पैठ के बूते निश्चिंत बैठा है। झामुमो को पता है कि शिबू सोरेन की मौजूदगी भर उसका खेल खड़ा करने के लिए काफी है।
कांग्रेस को लगता है कि राष्ट्रपति शासन के जरिए यदि वह सूखे के नाम पर राज्य में 250-300 करोड़ बांट देगी तो उसका बेड़ा पार हो सकता है। लेकिन दिक्कत यह है कि कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो भाजपा के अर्जुन मुंडा, झाविमो को बाबूलाल मरांडी या गुरूजी (शिबू सोरे्न) के सामने खड़े होने की हैसियत रखता हो। केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय रांची से बाहर प्रभावशाली नहीं रह जाते और कांग्रेस राज्यपाल एमओएच फारुक को तो चुनाव लड़ा नहीं सकती। इसलिए कांग्रेस की रणनीति हर जिले में पैसा बांटकर अपनी स्थिति मजबूत करने की है। इसी के तहत कांग्रेस ने राज्य के 12 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया जबकि बोवनी 31 अगस्त तक चलनी है। मतलब यह कि यदि 20-25 अगस्त तक भी और बारिश हो जाती है तो आराम से बोवनी हो जाएगी। यहां यह बताते चलें कि उत्तर प्रदेश के विपरीत यहां धान की बोवाई 31 अगस्त तक होती है। रणनीति का अगला हिस्सा साफ-सुथरी छवि बनाने का है और इसके तहत कोड़ा कांड व अन्य प्रकरणों को सीबीआई के सुपुर्द किया जा रहा है। इसका एक फायदा कद्दावर नेताओं पर दबाव के रूप में भी कांग्रेस देख रही है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी कांग्रेस की चाल को समझ रहे है। लिहाजा उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्रियों से सुविधाएं वापस लेने के राज्यपाल के आदेश को मुद्दा बना दिया कि यह आदिवासी विरोधी कदम है। सभी पूर्व मुख्यमंत्री (बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा व शिबू सोरेन) आदिवासी हैं और कांग्रेस आदिवासियों को सुविधाएं लेते हुए नहीं देख पा रही है। इसके अलावा, मरांडी झारखंड दिसोम पार्टी के संस्थापक सल्खान मुर्मू, झारखंड जनाधिकार मंच के बंधु तिर्की जैसे नेताओं को पटा रहे हैं। ये लोग खुलकर कहने लगे हैं कि शिबू सोरेन को बेनकाब करना जरूरी है और इस बात का अभियान चलना चाहिए कि कैसे बाबूलाल मरांडी के हाथों ही आदिवासियों के हित सुरक्षित हैं। कांग्रेस मरांडी की चाल को समझ रही है लेकिन उसके पास इसकी कोई तोड़ फिलहाल नहीं है। मरांडी चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन बना रहे लेकिन आधी सीटें कांग्रेस उनको दे। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मरांडी को 82 में सो सिर्फ 19 सीटें दी थीं। इनमें से मरांडी 11 सीटें जीतने में कामयाब रहे थे और कांग्रेस सिर्फ 14।

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