वीना करीब डेढ़ दशक तक दिल्ली और लखनऊ से निकलने वाले अखबार से जुडी रही है और अब स्वतंत्र पत्रकार के रूप में लिख रही है .हाल ही में जब दिल्ली के एक अखबार में इन्होने अपना लेख भेजा तो छापना तो दूर जवाब भी बहुत अपमानजनक तरीके से दिया गया .यह वही अखबार है जो आजकल बाबा रामदेव के बाद जोर शोर से समाज बदलने में जुटा है . बीना के जीवनसाथी और राजेंद्र तिवारी अमर उजाला ,भास्कर के विभिन्न संस्करण के संपादक रहे है और अब हिन्दुस्तान के झारखण्ड के संस्करणों के संपादक बनाये गए है.
क्या न्यायाधीश महोदय की संवेदनाएं शून्य हो गई हैं?
वीना
महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों में कमी तो आ नहीं रही है अलबत्ता कठोर
सजा मिलने की अपेक्षा सजा कम जरूर हो रही है। आज ही यह खबर छपी है कि
दिल्ली हाईकोर्ट ने हत्या, बलात्कार, हत्या के प्रयास, और लूटपाट करने
वाले एक नौकर को निचली अदालत से मिली मौत की सजा को जघन्यतम अपराध न होने
के कारण 25 साल के सश्रम कारावास में तब्दील कर दिया गया है।
क्या माननीय हाई कोर्ट इस पर प्रकाश डाल सकता है कि जघन्यतम अपराध कौन से
हैं? एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म, 4 साल के छोटे से बच्चे की हत्या
क्या जघन्य अपराध नहीं है। हां इससे ज्यादा जघन्य ये होता कि जब दुष्कर्म
के बाद उस लड़की की हत्या कर दी जाती और फिर छोटी बेटी के साथ भी यही
होता। क्या न्यायाधीश महोदय की संवेदनाएं शून्य हो गई हैं? या अपराधी के
वकील के अपनी कोई बेटी या बेटा नहीं है। क्या वकील को उन मां-पिता की
आंखों का दर्द या आंसू नहीं दिखे। जिसने अपना इकलौता बेटा खोया है, अपनी
बेटी के जीबन के साथ खिलवाड़ देखा है उनके या अन्य किसी के लिए भी इससे
ज्यादा जघन्य और क्या हो सकता है? वकील साहब ने तो मोटी रकम ली होगी। मगर
ऊपर की अदालत में ये रकम काम नहीं आएगी और न वो घर, न बीवी-बच्चे जिनके
लिए ये सब किया और खुद के लिए भी किया है तो भी इसकी सजा स्वयं भुगतनी
होगी। एक लड़के ने जघन्य अपराध किया उलकी सजा दिलवाकर कम से कम उन
माता-पिता को थोड़ी शांति तो दे दी होती कि उनके परिवार को बिखेरने वाले
को मौत की सजा मिली। वो केवल यहां की अदालत में बचा है ईश्वर की अदालत
में उसे कौन बचाएगा? अगर उसे मौत की सजा मिलती तो शायद कोई तो इस तरह का
अपराध करने से पहले सोचता। दुष्कर्म जैसे अपराध के लिए तो केवल एक ही सजा
होनी चाहिए मौत की सजा. ताकि नारी कि इज्जत को खिलौना समझने वाले ये जाने
कि वो भी बचेंगे नहीं। मैं इस फैसले को जरूर पढ़ूंगी।
यही नहीं मणिपुरी युवती की हत्या का केस भी इसी दिशा की तरफ जा रहा है,
उसे भी थोड़ी सी सजा मिल जाएगी क्योंकि अभी से अखबार में ये आने लगा कि
अपराधी आई. आई. टी. छात्र पुष्पम का व्यवहार ठीक नहीं था और इसी का लाभ
उठाकर वकील उसे बचाएगा, कोर्ट थोड़ी सजा देकर मुक्त हो जाएगा लेकिन उसके
घरवालों के बारे में कोई नहीं सोचेगा और जेल से बाहर आकर वो अपराधी फिर
किसी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगा और हत्या करेगा।
राजा-महाराजाओं के समय ठीक होता था जो कठोर दंड होते थे। अमानवीय थे
लेकिन फिर किसी और की वो अपराध दोबारा करने की हिम्मत नहीं होती थी। अब
जरूरत ऐसे ही फैसलों की है जिससे समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे
अपराधों पर अंकुश लग सके। आज 6 माह की, ढाई साल, 8 साल की बच्ची, किशोरी,
युवा, प्रौढ़ा यहां तक वृद्धा तक सुरक्षित नहीं है। जिस घर में बेटी होती
है उस घर की मां की, महिलाओं की नींद उड़ी रहती है। बेटी की वजह से नहीं
बल्कि उसकी सुरक्षा को लेकर और समाज में पल रहे दरिंदों को लेकर।
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