Wednesday, November 10, 2010

दीव के समुंद्र तट पर एक शाम










सविता वर्मा
यहाँ का मौसम रात करीब नौ बजे से स्थानीय लोगो की भाषा में ख़राब हो गया जो हमारे जैसे सैलानियों के लिए सुहाना था . खासकर गीर के जंगल से वनराज के दर्शन के बाद से ही तपती धूप से परेशान थे .गरमी की वजह से जंगल से जल्द लौटने के बाद दीव के सर्किट हाउस के कमरे में जो गए तो रात आठ बजे डिनर का बुलावा आने पर ही निकले .बाहर कड़कती बिजली के बीच अरब सागर की लहरें लगता था कि कमरे तक आ जाएंगी.दीव का यह सर्किट हाउस जालंधर बीच पर बना है और काफी भव्य है .पिछले साल राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल यही रुकी थी और उन्हें यह जगह काफी पसंद भी आई .जिस सूट में रुके वह दो बेडरूम का फ्लैट जैसा था किचन के साथ ,जिससे देर रात काफी खुद बना ली जाती .खिड़की के ठीक सामने अरब सागर है तो बाएं किले की चाहरदीवारी के अवशेष .सर्किट हाउस से लगा हुआ समुंद्र तट है जिस पर बच्चे से लेकर नौजवान तक लहरों से खेलते नजर आते ही .पर यहाँ के मशहूर बीच नागोवा और घोघला हैं .नागोवा में तो हर समय मेला लगा रहता है और गुजरात से बड़ी संख्या में लोग यहाँ आते है .पर हम जिस जगह रुके है वह पूरी तरह शांत है .आसपास कोई दुकान देखने निकले तो दो किलोमीटर चलने पर भी कोई ठेला ढाबा या पान की दूकान तक नही मिली .यह दीव है . कभी पुर्तगालियों का उपनिवेश था .बचपन से गोवा ,दमन और दीव का नाम सुनते रहे .गोवा तो कई बार पर दमन दो बार जाना हो चुका है पर दीव पहली बार आए और संयोग से जिस दिन पहुंचे वह दिन गुजरात के लोगों का नया साल था.आज चार दिन से यहाँ है जिसमे एक दिन गीर के जंगल में गुजरा .
गोवा और दमन की तरह यहाँ अब पुर्तगाली आबादी नही है .पुराने चर्च है ,तो खानपान पर उनका असर जरुर बचा है खासकर समुंद्री व्यंजन पर .खाने में झींगा हो या तली हुई पाम्फ्रेट मछली पुर्तगाली असर से मुक्त नही है .कई बाते जरुर चौकाती है मसलन सब्जी से लेकर मछली का बाजार सुबह आठ नौ बजे लगता है और दिन में बारह एक बजे बंद हो जाता है उसके बाद शाम को नही खुलता .सामान्य बाजार भी कई शहरों की तरह दिन में खाने के समय में बंद हो जाता है .पर दीव गोवा और दमन से काफी अलग है .गोवा शाम से ही जिस रंग में रंग जाता है वह यहाँ नही मिलेगा और दमन के मुकाबले यह जगह सैलानियों को ज्यादा पसंद आएगी.दीव के लिए मुंबई से किंगफिशर की रोज फ्लाईट है तो ट्रेन से सोमनाथ तक जाकर वहां से नब्बे किलोमीटर की सड़क की यात्रा कर दीव पंहुचा जा सकता है .अमदाबाद से भी रातभर का सफ़र है .दीव के आसपास द्वारका ,सोमनाथ और एशियाई शेरों के लिए मशहूर गीर का जंगल है जो जूनागढ़ के नवाब के समय से आकर्षण का केंद्र रहा है .तीन चार दिन की छुट्टियाँ बिताने के लिए दीव अच्छी जगह है .नारियल के पेड़ों से घिरे दीव का मौसम भी खुशगवार रहता है दिन में तेज धूप हो तो जरुर गरमी लगती है पर शाम ढलते ही सागर की ठंढी हवाओं में बैठना अच्छा लगता है .पर आज तो बरसात और हवा कहर ढा रही थी .रिशेप्सन के सामने का लैम्पोस्ट उखड कर गिर गया था तो पर्यटन विभाग का वह कप प्लेट भी भी तिरछा हो गया था जिसे सैलानी कूड़ेदान की तरह इस्तेमाल करते है .रात होते होते तूफ़ान और तेज हो चुका था और समुंद्र पूरी ताकत से गरजता हुआ सड़क पर चढ़ आने का असफल प्रयास कर रहा था .दूर लाइट हाउस की रोशनी तूफ़ान के बीच भी टिमटिमा रही थी .पुराने ज़माने में यह लाइट हाउस ही जहाजो को जमीन का संकेत देते थे . और आज भी मछुवारों के छोटे जहाजों को दिशा बताते है .मछुवारे भी पूरे हफ्ते का राशन पानी और बर्फ के कैशरोल लेकर निकलते है .यह उनकी किस्मत पर है कि कितनी मछली मिलती है .ऐसे ही एक जहाज के मालिक अयूब भाई ने कहा - किस्मत अच्छी हो तो दो तीन लाख की मछली मिल जाएगी वर्ना डीजल और राशन पानी का भी खर्च नही निकल पाता. गोवा दमन की तरह दीव भी मछुवारों का गाँव रहा है और एक बड़ी आबादी आज भी इस पर निर्भर है .
अँधेरा छाते ही लाउंज के सामने की लाइट जल गई और समुंद्र तट के किनारे किनारे बनी सड़क जो बरसात से भीगी हुई थी चमकने लगी .आसमान में काले बादल घिरे हुए थे और थोड़ी थोड़ी देर में बिजली कौंध जाती तो दूर तक समुंद्र की लहरें दिख जाती .एक युवक जो शाम से ही मछली पकड़ने की कटिया डाले हुए था वह एक बड़ी मछली पकड़ने के बाद वापस आता दिखा .बारिश की वजह से आज बहुत कम सैलानी समुंद्र तट पर नजर आ रहे थे लहरे भी इतनी आक्रामक थी कि पानी में उतरने पर डर लग रहा था . मोटरसाइकल पर कुछ जोड़े जरुर भीगते हुए गुजर रहे थे .बिन मौसम बरसात का मजा भी अलग होता है .शाम को बंदर चौक से पानी के छोटे जहाज से एक चक्कर लगाने का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम भी चौपट हो चूका था और बीच पर इस मौसम में जाने का सवाल ही नही उठता .लिहाजा बारिश के हल्के होते ही समुंद्र के किनारे सीमेंट की कुर्सी पर जम गए और लहरों को देखने लगे .एक लहर आती और किनारे पहुँचते ही बिखर जाती तभी दूसरी लहर और वेग से आ जाती ,यह सिलसिला जारी रहता .दूर समुंद्र में जहाज की रोशनी जरुर ध्यान बंटाती .दाईं तरफ एक टापू रोशनी से जगमगा रहा था . दीव एक द्वीप है जिसके आसपास कुछ और छोटे छोटे द्वीप जैसे टापू बन गए है .