Sunday, August 15, 2010

कमजोर है आमिर की पिपली लाइव


आशीष
मुम्बई .आमिर खान प्रोडक्शन की फिल्म पीपली लाइव की लम्बे वक़्त से प्रतीक्षा थी। इंटरनेट पर इसके लम्बे लम्बे रीव्यू मौजूद हैं जिनमे से ज्यादातर में इसे शानदार और पैसा वसूल फिल्म कहा गया है लेकिन फिर भी मैं अपनी समझ और अपने अनुभव के हिसाब से इसे एक कमज़ोर फिल्म ही कहूँगा।
सबसे बड़ी खामी है इस फिल्म की कमज़ोर पटकथा। फिल्म ठीक से बंधी हुई नहीं दिखाई देती। निर्देशक अनुषा रिज़वी ने दिखाना चाह है की किसी खबर को मीडिया इतना ज्यादा सनसनीखेज़ बना देती है की मूल खबर की संवेदनशीलता और गंभीरता ही ख़तम हो जाती है लेकिन बुरा संयोग ये है की अनुषा के साथ भी हकीकत में कुछ ऐसा ही हुआ है। मीडिया की भागमभाग और टीआरपी का चक्कर दिखाने के चक्कर में उनकी फिल्म मूल मुद्दे(किसानों की आत्महत्या) की संवेदना के साठ न्याय नहीं कर पाई है।
फिल्म का मुख्य पात्र आत्महत्या करने जा रहा है। आत्महत्या एक बड़ी विभीषिका है लेकिन अनुषा रिजवी लेकर मीडिया की भागमभाग दिखाने और राजनैतिक चूहा बिल्ली का खेल दिखाने के चक्कर में ही इतनी उलझ गयीं की उनका मुख्य किरदार नत्था आत्महत्या के मुहाने पर खड़ा होने के बावजूद दर्शकों के मन को उस तरह झकझोर नहीं पाता, आत्महत्या जिस तरह की त्रासदी है।
फिल्म अच्छी तब बनती जब नत्था की पीड़ा दर्शक उतनी ही शिद्दत से महसूस करते और उसके सापेक्ष मीडिया की भूमिका पर एक छोभ की स्थति बनती। अनुषा पत्रकार रहीं हैं इसलिए चैनल के न्यूज रूम की हकीकत और इस धंधे की मजबूरी को तो उन्होंने ठीक से उभरा है लेकिन इसको कुछ ज्यादा ठीक से दिखाने के चक्कर में नत्था पर न तो अपेक्षित तरीके से उनका ध्यान टिक पाया है न ही दर्शकों का। दूसरी बात फिल्म में मीडिया पर व्यंग्य होने की बात कही गयी है जबकि हकीकत में सारे घटनाक्रम पल दो पल का हास्य तो पैदा करते हैं लेकिन व्यंग्य की तीखी मार या पैनापन उनमें कहीं नज़र नहीं आता सिवाय एक दो जगह के।
मीडिया की भागम भाग दिखाने के चक्कर में अनुषा यही भूल गयी की उनकी फिल्म किसानों की आत्महत्या के सापेक्ष मीडिया और सियासत की भूमिका पर है या उनकी फिल्म मीडिया की भागमभाग और टीआरपी के खेल पर है।आत्महत्या के मुद्दे पर फिल्म पर्याप्त संवेदना हासिल नहीं कर पाती. इसी वजह से पूरी फिल्म में किसानसे सिर्फ एक ही जगह वास्तविक सहानुभूति होती है, और वो किसान भी नत्था न होकर वो होरी महतो है जो फिल्म में सिर्फ गड्ढा खोदते ही नज़र आता है।
अनुषा ने मीडिया की आपाधापी तो खूब दिखाई लेकिन रिपोर्टिंग के कुछ बुनियादी पहलू भुला गयीं। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट आने से पहले ही कौन सा मीडिया भारत में किसी खबर को छोड़ देता है। कई स्पेशल बुलेटिन तो केवल इस्पे ही चलेंगे की जो मारा है क्या वो वाकई नत्था ही था। और पोस्ट मार्टम रिपोर्ट आने के बाद एक नए सिरे से नत्था की खोज शुरू होगी। जब एक गाँव में चौबीस घंटों के लिए कई चैनलों की टीमें किसान की मौत की खबर के लिए पड़ी हों और एक दूसरे से होड़ के चक्कर में मल मूत्र त्यागने की भी खबर बना रहीं हों तब होरी की मौत को कोई चैनल नहीं छोड़ेगा। वो उसको ट्रीट कैसे भी करे।
एक जगह अंग्रेजी पत्रकार जिले के स्ट्रिंगर से कहती है की अगर खबरों को इस तरह स्वीकार करना नहीं आता तो आप गलत पेशे में हैं, ये बात कमोबेश सही भले हो लेकिन फिर भी इसके प्रति विद्रोह को लेकर उस पत्रकार का एक संवाद तो डाला ही जा सकता था ताकि मीडिया में कुछ नए तेवरों की भी सम्भावना दिखाई दे। और उसपर भी जब वो पत्रकार मरने ही वाला था।अच्छी फिल्म में सन्देश और सवाल भाषण की तरह न होकर कहानी में ही गुंथा हुआ होता है। इस फिल्म mein सिर्फ एक baar सवाल खड़ा किया जाता है और उसपर भी अंग्रेजी पत्रकार के जवाब से बात ख़तम मान ली जाती है। सबसे बड़ा व्यंग्य, सवाल, सन्देश जिस गीत के जरिये दिया जा सकता था वह भी पूरा नहीं दिखाया गया फिल्म में । फिल्म में तेवर बिलकुल नहीं हैं ।
फिल्म में गालियों की भरमार है, जबकि ये अनिवार्य हों ऐसा बिलकुल नहीं है। इनकी बजाय अम्मा जी के देसी ताने ज़रूर अनिवार्य हैं। लेकिन बेवजह की गालियों के चलते फिल्म एक खास वर्ग को असहज करेगी।
फिल्म के अभिनय और संगीत में ज़रूर किसी कमी की गुंजाइश नहीं दिखाई देती। अम्मा जी, नत्था, बुधिया और इन सबसे ऊपर दीपक कुमार का अभिनय बेजोड़ है। फिल्म जब ख़तम होती है छत्तीसगढ़ का अनुपम लोकगीत बजता है जिसे हबीब तनवीर साहब की बेटी नगीन तनवीर ने गाया है लेकिन ज्यादातर बेसबर दर्शकों को तब तक स्टैंड पर खड़ी अपनी गाडी निकालने की चिंता हो जाती है और वे सीट छोड़ने लगते हैं। इस अद्भुत लोकगीत को छोड़ने वाले दर्शक वाकई अभागे ही कहे जायेंगे।
अनुषा की जो एकमात्र उपलब्धि है वह यह है की जिस दौर में हिंदी फिल्मों से भारत के शहर ही गायब हो रहे हैं, और गानों में हिंदी बोल ही नहीं नज़र आते हों, उस दौर में उन्होंने एक छोटे से गाँव पर आधारित और लोकगीतों और लोकभाषा से सनी एक फिल्म बनाने की हिम्मत दिखाई। अगर आप फिल्मों के अर्थशास्त्र को ज़रा भी जानते हैं तो मानेंगे अनुषा की ये हिम्मत वाकई महान है।

3 comments:

Rahul Rathore said...

बिलकुल सही कहा आपने ..

अभिनय में कोई कमी नहीं ....कहानी का जो केंद्रबिंदु था "किसानों की आत्महत्या" उसे एक मजाक की तरह पेश किया गया |

लोकेशन सही ...बिना मतलब की चीजों को कुछ ज्यादा समय दे दिया |

मैं कहूँगा इसमे "निर्देशन" फेल हुआ है ..पटकथा में भी कोई कसाव नहीं है |

अगर बात सामाजिक मुद्दों की की जाये तो "प्रकाश झा" की फिल्में इससे बेहतर है |

cinemanthan said...

वैसे तो कला अपने दर्शक के साथ एक अलग सम्बंध बनाती है परंतु कुछ तत्व ऐसे जरुर होते हैं किसी भी कला में जो लगभग सभी दर्शकों को एक तरीके से आकर्षित करते हैं। आपका लेख पढ़ कर ऐसा प्रतीत होता है कि पीपली लाइव आपसे सम्बंध नहीं जोड़ पायी। ऐसा होना कोई अचरज की बात नहीं परंतु आपके द्वारा उठाये गये कुछ मुद्दे सही नहीं लगते।
नत्था की आत्महत्या: नत्था कोई सचेतन रुप से आत्महत्या करने नहीं जा रहा है फिल्म में। आत्महत्या का विचार उसकी हताश जिंदगी से नहीं उपजा है। वह उस पर थोपा गया है। वह उस आत्महत्या वाले विचार का शिकार बन गया है। उसके साथ होने वाली घटनायें हास्य व्यंग्य के द्वारा ही भ्रष्टाचार की पोल खोलती हैं। जो दर्शक फिल्म के बहाव के साथ एक दर्शक की भाँति बहते हैं उन्हे नत्था और बुधिया और उन जैसे तमाम किसानों की परेशानी से सामंजस्य जोड़ने में परेशानी नहीं होगी। हाँ एक आलोचक का अस्तित्व यदि दर्शक के अंद्र फिल्म देखते हुये मौजूद है तो बात अलग है, तब फिल्म के प्राकृतिक गुण भी कमी के साथ दिखायी दे सकते हैं।
नंदिनी के राकेश को पत्रकारिता के ऊपर दिये गये भाषण से बात खत्म नहीं हो जाती बल्कि शुरु हो जाती है, राकेश का मौन द्वंद उस मुद्दे को ज्यादा प्रभावी बनाता है और दर्शक के लिये इस बात को स्पष्ट कर देता है कि जर्नलिज्म किस हद तक भ्रष्ट हो चुका है क्योंकि पत्रकारों के लिये अब यह एक व्यवसाय मात्र है, मिशन नहीं।
और कई मुद्दे हैं आपके द्वारा उठाये, जिनसे सहमत नहीं हुआ जा सकता। हो सकता है बाद में जब कभी आप खुले दिमाग से डीवीडी पर इस फिल्म को देखें तो कई सारे आपके एतराज अपने आप ही गिर जायें।

http://www.cinemanthan.info/

cinemanthan said...
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