Monday, October 3, 2011

माओवाद के नाम पर फिर निशाना बन सकते है मानवाधिकार कार्यकर्त्ता


अंबरीश कुमार
लखनऊ , अक्तूबर। उत्तर प्रदेश में माओवाद के नाम पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीडन की आशंका फिर बढ़ गई है। छत्तीसगढ़ की पुलिस ने जिस तरह आज सुबह राजस्थान में जाकर पीयूसीएल की सचिव कविता श्रीवास्तव के घर पर धावा बोला और उनके परिवार के साथ अभद्रता की उससे प्रदेश के मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं उत्तर प्रदेश में भी ऎसी घटनाओं की आशंका जताई है । उत्तर प्रदेश की जेलों में करीब पचास लोग माओवादी या नक्सली होने के आरोप में बंद है जिनमे ज्यादातर को न तो माओ के बारे में कुछ पता है और न लेनिन के बारे में । ये वे आदिवासी है जो पुलिस के उत्पीडन का निशाना बनाए गए है।दूसरी तरफ दर्जन भर से ज्यादा मानवाधिकार कार्यकर्त्ता है जिनके पास से माओ ,मार्क्स और लेनिन का वह साहित्य बरामद हुआ है जो देश के किसी भी विश्विद्यालय के राजनीति शास्त्र के छात्र के पास भी मिल सकता है ,ऐसे लोगों को पुलिस के विद्वान अफसरों ने माओवादियों का सहयोगी बताकर जेल में डाल रखा है ।पीयूसीएल की पदाधिकारी सीमा आजाद भी इनमे शामिल है । यह वही पीयूसीएल है जिसके पदाधिकारी विनायक सेन को छत्तीसगढ़ की पुलिस बुरी तरह प्रताड़ित कर चुकी है । ख़ास बात आत यह है कि छतीसगढ़ की पुलिस अब दूसरे राज्यों में दखल देने लगी है यह आने वाले समय में उत्तर प्रदेश के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को आशंकित कर रहा है । छत्तीसगढ़ की सीमा उत्तर प्रदेश से लगी हुई है और इस सीमा से जुड़े जिलों में माओवाद के नाम पर कई बेगुनाहों को जेल में भेजा जा चुका है । मानवाधिकार कार्यकर्त्ता रोमा को भी नक्सली बताकर उनपर एनएसए लगा दिया था जिसकी खबर जनसत्ता में आने के बाद खुद मुख्यमंत्री मायावती ने पहल की और वे नक्सली होने के आरोप और जेल दोनों से मुक्त हुई ।पर अब तो दूसरे राज्य की पुलिस का खतरा मंडरा रहा है । पीयूसीएल के महासचिव चितरंजन सिंह ने कहा -छतीसगढ़ पुलिस का यह कारनामा शर्मनाक है जिसका हम लोग पूरे देश में विरोध जताएंगे । यह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सबक सिखाने और उन्हें डराने की कार्यवाई है जो रमण सिंह सरकार पहले भी कर चुकी है । पर अशोक गहलौत जैसे संवेदनशील नेता के राज में ऎसी घटना का होना हैरान करने वाला है । इस मामले में उन्हें प्रदेश के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सुरक्षा का भरोसा देना चाहिए ।
चितरंजन सिंह ने आज यहां इस घटना का ब्यौरा देते हुए कहा -आज सुबह जयपुर में पीयूसीएल की सचिव कविता श्रीवास्तव के घर छतीसगढ़ पुलिस ने स्थानीय पुलिस को साथ लेकर छापा मारा । ऊनका आरोप था कि कविता के घर में कुछ संदिग्ध माओवादी घुसे हुए है । एक घंटे की इस तलाशी के दौरान उनको कुछ तो मिला नहीं लेकिन उन्होनो पूरा घर के सामानों को तितर बितर कर दिया। इतना ही नही कविता के घर वालों से भी अभद्रता की गई । हम लोग इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने जा रहे है । अब मामला सिर्फ छतीसगढ़ तक सीमित नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश में ज्यादा बड़ा खतरा मंडरा रहा है जहां दर्जनों लोग नक्सली होने के आरोप में जेलों में बंद है ।
इस बीच जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ( एनएपीएम) ने इस घटना की कड़ी निंदा की है । एनएपीएम ने छत्तीसगढ़ सरकार से यह मांग की कि इस तरह के हरकतों से बाज आए। संगठन के प्रमुख कार्यकर्त्ता मधुरेश ने कहा - पूरा देश जानता है की पिछले दो दशकों से कविता ने भोजन और जीविका के अधिकार के लिए, नारीवादी और शांति आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई है. पिछले पांच सालों में निरंतर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के ऊपर हो रहे पुलिसिया जुल्म और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता जैसे बिनायक सेन, कोपा कुंजम (दोनों अभी बेल पैर रिहा है), कर्तम जोग और अन्य के रिहाई को लेकर आंदोलनरत रही है । इसी वजह से छतीसगढ़ सरकार ने उन्हें सबक सिखाने के लिए यह हथकंडा अपनाया है ।
उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार का सवाल उठाने वाले राजीव यादव ने कहा -आज छत्तीसगढ़ पुलिस ने जयपुर में यह काम किया है तो कल वह उत्तर प्रदेश में भी आ सकती है जहां पहले से ही बहुत से लोग माओवाद के नाम पर जेल में बंद है । सीमा आजाद का उदाहरण सामने है जो अभी भी जेल में बंद है । मानवाधिकार कार्यकर्त्ता कट्टरपंथी ताकतों के साथ पुलिस के निशाने पर पहले से है । अब तो भाजपा सरकार की तरह कांग्रेस सरकार वाले राज्यों में इस तरह की घटना होना साफ़ करता है कि विकास की तरह मानवाधिकार के मामले में भी दोनों पार्टियां साथ साथ है ।jansatta

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