Thursday, October 20, 2011
कारपोरेट संस्कृति में ढल गया है अन्ना आंदोलन
अंबरीश कुमार
लखनऊ , अक्तूबर । उत्तर प्रदेश के कई जन संगठन आगामी विधान सभा चुनाव में बाहुबलियों और दागी उम्मीदवारों को हराओ का की अपील करेंगे। उत्तर प्रदेश केविधन सभा चुनावों में बड़े पैमाने पर बाहुबली और दागी उम्मीदवार खड़े होने वाले है । जिसके चलते अगर बड़े स्तर पर बाहुबली और दागी नेताओं के खिलाफ माहौल बना तो राजनीति का काफी कचरा साफ़ हो जाएगा । इन जन संगठनों का यह भी मानना है कि अन्ना हजारे के आंदोलन का जिस तरह राजनैतिक रूप ले रहा है उससे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस हराओं के नारे का अप्रत्यक्ष फायदा भाजपा जैसे दलों को होगा इसलिए चुनाव सुधार की मूल अवधारणा और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जारी रखने के लिए बिना किसी दल के साथ या विरोध में खड़े हुए समाज को जागरूक करना होगा। उत्तर प्रदेश में अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़े कई जन संगठन और नेताओं ने टीम अन्ना की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि जब भी जन संगठन आंदोलन से भटक कर चुनावी राजनीति में फंसे तो वे हाशिए पर चले गए। उसके लिए अलग राजनैतिक ओउजार बनाना चाहिए । भारतीय किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह टिकैत लाखो की रैली करते थे पर राजनीति में आए तो कोई चुनाव नहीं जीता पाए ।कर्णाटक में रैय्यत संघ और महाराष्ट्र में शेतकरी संगठन उदाहरण है। इसलिए टीम अन्ना को कोर कमेटी की बैठक बुलाकर इस पर अपनी स्थिति साफ़ करनी चाहिए। हिसार में राजनैतिक दखल के चलते ही एकता परिषद के पीवी राजगोपाल और जल बिरादरी के राजेंद्र सिंह अलग हो चुके है और कई लोग विरोध जता चुके है। वाराणसी के सर्व सेवा संघ के सचिव राम धीरज ने चुनाव में बाहुबलियों और दागी उम्मीदवारों के खिलाफ अभियान छेड़ने साथ टीम अन्ना से कहा है कि वह भी कोर कमेटी में यह मुद्दा उठाकर चुनाव सुधर के अपने वायदे पार आगे बड़े और किसी एक दल का समर्थन या विरोध न करे ।
गौरतलब है कि राजनैतिक दखल को लेकर टीम अन्ना और उनके समर्थकों में भी मतभेद सामने आ चुके है । हालाँकि टीम अन्ना के कोर कमेटी के एक सदस्य सुनीलम ने कहा - चुनाव में कांग्रेस को हराने की अपील का वे ही लोग विरोध कर रहे है जो या तो कांग्रेस के समर्थक है या सरकार की कमेटियों में बैठे है या फिर कोई लाभ ले रहे है। जबकि आंदोलन के दूसरे सहयोगी संदीप पांडेय ने कहा- जन संगठनों और जन आंदोलनों के तौर तरीको से उलट अन्ना आंदोलन अब कारपोरेट संस्कृति में ढल गया है।लोकतांत्रिक तरीके से कोई फैसला नहीं हो रह़ा । कुछ लोग फैसले करते है तो उसकी जानकारी नहीं मिलती। फिर हिसार में कांग्रेस हराने का फैसला कोर कमेटी का का नहीं था । ऐसी ही कुछ मुद्दों को लेकर जन आंदोलनों के राष्ट्रीय के राष्ट्रीय समन्वय यानी एनएपीएम ने अन्ना के आंदोलन को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया है । बेहतर तो यह हो कि उत्तर प्रदेश में राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ अभियान चलते हुए दागी और बाहुबली उम्मीदवारों को हराने की अपील की जाए ।
इसी तरह गांधीवादी नेता और सर्व सेवा संघ के सचिव राम धीरज भी हताश नजर आए।वे भी एक पार्टी के खिलाफ अभियान छेड़ने के पक्ष में नहीं है बल्कि चुनाव सुधारों का एजंडा लागू करने के समर्थक है । राम धीरज ने कहा - जो लोग भी जन आंदोलन से भटक कर चुनावी राजनीति में फंसे वे हाशिये पर चले गए और एक सीट नही जीत पाए। चाहे लाखों की रैली करने वाले महेंद्र सिंह टिकैत हो या शेतकरी संगठन के शरद जोशी या फिर बकर्णाटक में रैय्यत संघ के नंजदुंग स्वामी ।ऐसे में आंदोलन को राजनैतिक दखल से पहले विचार विमर्श करना चाहिए था । इस मुद्दे पर एकता परिषद जैसा बड़ा जन संगठन अलग हो गया ,राजेंद्र सिंह की जल बिरादरी अलग हो गई। उसके बाद उत्तर प्रदेश में भी वही नारा दिया जा रहा है । राजनीति करनी है तो जन उम्मीदवार उतारे । पिछली बार लखनऊ में जन आंदोलनों के जन उम्मीदवार को लोकसभा में ४२१ वोट मिले थे। क्या यही हश्र अन्ना आंदोलन के को इतने बड़े आंदोलन का करना चाहते है ।
संघर्ष वाहिनी मंच के राजीव ने कहा -हम लोग तो शुरू से बाहुबलियों को हराने की अपील करते रहे है और फिर करेंगे । पर कांग्रेस पर दबाव बहुत जरुरी है क्योकि यह पार्टी बहुत शातिर पार्टी है और लोकपाल बिल लाएगी इस पर हमें संदेह है ।
ऎसी ही राय कई अन्य जन संगठनों के लोगो की थी । दरअसल कोई भी आंदोलन कई दशक बाद खड़ा होता है पर कुछ समय तक उसका असर समाज पर बना रहता है। जेपी आंदोलन से वीपी सिंह का आंदोलन उदाहरण है । कई दशक बाद अन्ना हजारे के आंदोलन के चलते देश का मध्य वर्ग बड़े पैमाने पर सड़क पर उतरा था ,यह टीम अन्ना का बड़ा योगदान है पर आंदोलन की दृष्टि , विचारधारा और ठोस कार्यक्रम के अभाव में इसी मध्य वर्ग का मोहभंग होने लगा है। जन संगठनों का मानना है कि जिस देश के अस्सी फीसद गांवों और छोटे शहरों में बिजली न आती हो उस देश में सिर्फ सोशल नेट वर्किंग ,फेस बुक ,ई मेल और एसएमएस व अन्य संचार साधनों से बड़े आंदोलन ज्यादा दिन तक नहीं चल सकते है। इसके लिए प्रतिबद्ध जमीनी कार्यकर्ताओं की कतार तैयार करना जरुरी है ।
अन्ना आंदोलन की कोर कमेटी के प्रमुख सदस्य कुमार विश्वास ने जनसत्ता से कहा -अन्ना आंदोलन के दौरान देश का एक बड़ा तबका सड़क पर आया था ।पर उसके बाद जिस तरह के सवाल खड़े हुए उसका असर यकीनन जन मानस पर पड़ेगा।पर हम नए सिरे से प्रयास कर रहे है । जबकि मनीष सिसोदिया ने कहा-अन्ना का आंदोलन किसी राजनैतिक दल के खिलाफ नही है । कांग्रेस के खिलाफ जन दबाव इसलिए बनाया जा रहा है क्योकि वह केंद्र की सत्ता में है । यह बिल भाजपा , बसपा या समाजवादी दल अपने बूते पास नहीं करा सकते है । इसी वजह से हम कांग्रेस पर ज्यादा दबाव बना रहे है । उत्तर प्रदेश के मौजूदा हालात में प्रदेश सरकार पर जो आरोप लग रहे है उससे टीम भी पूरी तरह सहमत है । हमने बांदा में भ्रष्टाचार का जो मुद्दा उठाया वह प्रदेश सरकार से ही जुड़ा हुआ था । आगे भी हम राज्य सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएंगे । हमारा मानना है कि बसपा ,सपा ,कांग्रेस और भाजपा सभी में भ्रष्ट लोग मौजूद है इसलिए किसी एक दल को भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता ।
जनसत्ता
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