Wednesday, October 19, 2011

सुब्ह-ए-नौ मजाज,हमपर है खत्म शाम-ए-गरीबान-ए-लखनऊ


अंबरीश कुमार
लखनऊ अक्टूबर। असरार उल मजाज अगर जिंदा होते तो जिंदगी के सौंवे साल में आज कदम रखते, जिसे आमतौर पर आदमी की उम्र का पूर्णांक माना जाता है। लखनऊ में मजाज का जन्म शताब्दी समारोह सुब्ह-ए-नौ मनाने की तैयारी शुरू हो गई है । इस आयोजन में देश और विदेश की कई नामचीन अदबी हस्तियां शिरकत करेंगी। लखनऊ मजाज के जीवन के सौ साल पर उन्हें याद करने जा रहा है जिन मजाज लखनवी को जिंदगी से सिर्फ 44 साल ही मिल सके। इसके बावजूद मजाज़ लखनवी को उर्दू अदब में उनके दीर्घायु होकर रूखसत हुए तरक्कीपसंद समकालीनों फैज अहमद फैज,अली सरदार जाफरी,और मजरूह सुल्तानपुरी आदि के बराबर या कई मायनों में अधिक रूतबा हासिल है।
खुद फैज अहमद फैज उर्दू के तरक्कीपसंद इंकलाबी शायरों में मजाज़ को सबसे अनोखा और सहज मानते थे। मजाज़ के एकमात्र काव्य संग्रह आहंग की भूमिका में फैज अहमद फैज ने मजाज के बारे में लिखा है- ‘मजाज़ की इन्कलाबियत आम इंकलाबी शायरों से अलग है। आम इंकलाबी शायर इन्कलाब को लेकर गरजते हैं,सीना कूटते हैं इन्कलाब के मुताल्लिक गा नहीं सकते। वे इन्कलाब की भीषणता को देखते हैं उसके हुस्न को नहीं पहचानते’ आज भले ही फैज अहमद फैज को बीसवी सदी के सबसे लोकप्रिय उर्दू शायर के रूप में पहचाना जाता हो लेकिन उर्दू के सभी जानकार इस बात को मानते हैं कि अपनी जिंदगी में जो लोकप्रियता मजाज़ लखनवी को हासिल थी वैसी तबतक किसी दूसरे शायर के हिस्से में नहीं आई थी। मजाज की इस लोकप्रियता के साथ उनके अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के दिनों की कहांनियां भी जुड़ी हैं जिनके बारे में इस्मत चुगताई और अली सरदार जाफरी समेत उर्दू के तमाम बड़ी हस्तियों ने लिखा है। १९ अक्टूबर १९११ को बाराबंकी के रूदौली कस्बे में जन्मे असरार उल हक मजाज ने लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़नी तब शुरू की जब वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पहुंचे। बेहद कम उम्र में मजाज़ लखनवी ने जिस तरह साम्राज्यवाद,पूंजीवाद के विरोध में और स्त्री-मुक्ति के विषय में जैसी नज्में कहीं उसने जानकारों को हैरत में डाल दिया। मजाज के बारे में आलोचकों की ये हैरत आज भी कायम है।मजाज़ के साथ कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके चुनिंदा लोगों में से एक प्रो. शारिब रूदौलवी ने कहा- ‘यकीनन अगर मजाज को उतनी उम्र मिली होती जितनी जोश,फिराक, फैज या जाफरी को मिली तो न जाने वे उर्दू को और क्या क्या दे चुके होते.’ मजाज के बारे में ये बात भी चौंकाती है कि कालजयी इंकलाबी नज्मों के रचयिता होने के साथ ही उनकी शायरी की रूमानियत भी इतनी गहरी है कि उन्हे उर्दू शायरी का कीट्स भी कहा जाता है। यहां ये जान लेना जरूरी है कि मजाज़ के अविस्मरणीय होने की वजह सिर्फ उनकी शायरी ही नहीं बल्कि उनकी हाजिरजवाबी भी है जिसकी मिसालें उनके शहर लखनऊ में आज भी सुनने को मिल जाती हैं। गौरतलब है कि लखनऊ में मजाज का जन्म शताब्दी समारोह, सुब्ह-ए-नौ आगामी २४ अक्टूबर को भारतेंदु नाट्य अकादमी के सभागार में मनाया जाएगा। इस आयोजन में देश और विदेश की कई नामचीन अदबी हस्तियां शिरकत करेंगी। समारोह का आयोजन लखनऊ सोसाइटी की तरफ से किया जा रहा है जो कि लखनऊ की तहजीब के प्रति युवाओं को जागरूक करने के उद्देश्य से काम कर रही है। संस्था के सदस्य आरजू ने बताया- ‘मजाज लखनवी का मकाम उर्दू साहित्य में बहुत बड़ा है लेकिन दुर्भाग्य से आज युवा पीढ़ी उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती। जन्मशताब्दी वर्ष में भी युवाओं में उनको लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं दिख रही। इस आयोजन के जरिए मजाज को श्रद्धांजलि देने के साथ ही लोगों में उनके प्रति जागरूकता पैदा करने की कोशिश होगी।’ कार्यक्रम का शीर्षक मजाज के लखनऊ पर कहे गए मशहूर शेर से निकलता है- ‘अब इसके बाद सुब्ह है और सुब्ह-ए-नौ मजाज,हमपर है खत्म शाम-ए-गरीबान-ए-लखनऊ’ ।jansatta

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