Saturday, October 8, 2011

बाहुबलियों का नया गुरुकुल बन रही है पीस पार्टी


अंबरीश कुमार

लखनऊ , अक्तूबर । पूर्वी उत्तर प्रदेश में काफी जोर शोर से आगे बढ़ रही पीस पार्टी जिसे लोग वोट कटवा पार्टी कहते थे अब बाहुबलियों का गुरुकुल बनती नजर आ रही है । प्रदेश की दो बहुबालियों के बाद अब तीसरे की बारी है । रायबरेली के माफिया डान अखिलेश सिंह पार्टी के महासचिव है । फैजाबाद के बाहुबली और विधायक जितेन्द्र सिंह उर्फ़ बबलू को बसपा ने किनारे लगाया तो वे भी पीस पार्टी में शामिल हो गए । अब जौनपुर के बाहुबली और सांसद धनंजय सिंह की बारी मानी जा रही है जिनके पिताजी राजदेव सिंह का टिकट बसपा ने काट दिया था । वे भी पीस पार्टी के उम्मीदवार बन सकते है । करेला और नीम चढ़ा की तर्ज पर पीस पार्टी का पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी के कौमी एकता दल से चुनावी तालमेल है । विभिन्न दलों के करीब डेढ़ दर्जन विधायक पीस पार्टी में शामिल होने वाले है जिनमे बाहुबल वाले भी है । पीस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर अब्दुल मन्नान ने जनसत्ता कहा -हमारी पार्टी गोरखपुर से गाजियाबाद तक मजबूती से लड़ने जा रही है । बसपा तो सौ सीटों के भीतर ही सिमट जाएगी और समाजवादी पार्टी को कई जिलों में हम शिकस्त देंगे । फिलहाल कांग्रेस से बात चल रही है । अगर वे सौ सीटें दे दे तो बात बन जाएगी ।
पूर्वांचल में बाहुबलियों की राजनीति का दबदबा रहा है और कई जगहों पर वे अपनी ताकत और दबदबे की वजह से ही जीत जाते है । पिछली बार लोकसभा के चुनाव के दौरान बाहुबली धनंजय सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रहे इंडियन जस्टिस पार्टी के उम्मीदवार बहादुर सोनकर की हत्या कर उसे बबूल के पेड़ पर टांग दिया गया था और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह ने दूसरे दिन ही जौनपुर में यह मामला उठाया पर मायावती ने तब कोई कार्यवाई नहीं की । इससे धनंजय सिंह के दबदबे का अंदाजा लगाया जा सकता है । बाहुबली धनंजय सिंह का आशीर्वाद इस पीस पार्टी को मिल गया है । यही वजह है कि पूर्वांचल में पीस पार्टी के बढ़ते असर से लोगों को शांत माहौल में खलल पड़ने का अंदेशा सताने लगा है।जब मुख्तार अंसारी से से लेकर जितेंद्र सिंह बबलू ,अखिलेश सिंह और धनंजय जैसे बाहुबली एक साठ खड़े होंगे तो अन्य दलों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है ।
पीस पार्टी भी उसी फार्मूले पर चल रही है जिसपर मायावती चलती रही है । पीस पार्टी मुस्लिम जनाधार वाली पार्टी के रूप में उभर रही है और उसके ज्यादातर मजबूत उम्मीदवार हिन्दू होंगे जिनका अपने क्षेत्र में असर रहा है । ऐसे में पार्टी कई सीटों पर जीत सकती है। बसपा ने अपने दलित वोटबैंक के साथ जनाधार बढ़ाने के लिए बाहुबलियों का बड़े पैमाने सहयोग लिया और बाद में छवि खराब होने पर उनसे किनारा करना शुरू किया। पर इससे उसके दलित वोट बैंक पर ज्यादा असर नहीं पड़ा । पीस पार्टी इसी फार्मूले को अपना रही है जिसके चलते पीस पार्टी की पहले ही चरण में छवि दरकने लगी है। राजनैतिक विश्लेषक राजेश कटियार ने कहा - अब लोग इसे फीस पार्टी कहने लगे है क्योकि इस पार्टी में भी टिकट के नाम पर लेनदेन शुरू हो चुका है। वैसे भी राजनैतिक हलकों में यह चर्चा काफी समय से चल रही है । पर असली मुद्दा राजनीति के अपराधीकरण का है । जिस तरह एक के बाद एक अपराधी छवि वाले लोग पार्टी में आ रहे है उससे यह पार्टी बाहुबलियों का नया गुरुकुल बनती नजर आ रही है । जबकि समाजवादी पार्टी से लेकर बसपा तक बाहुबलियों से किनारा करती जा रही है । पीस पार्टी के प्रवक्ता युसूफ अंसारी ने इस पर सफाई देते हुए कहा -दरअसल ये बाहुबली ज्यादातर सिटिंग विधायक है जो दूसरे दलों से आए है । इनके आने का एक बड़ा फायदा हमें यह हो रहा है कि अब कोई पीस पार्टी को वोट कटवा पार्टी नही कहेगा। दूसरे हमारी राजनैतिक ताकत भी बढ़ेगी ।
पर पीस पार्टी के नए तेवर से वे लोग असमंजस में है जो इसका भविष्य देख रहे थे । दरअसल पहले ही दौर में इसे राजनैतिक दलों ने अगर गुदे बदमाशों की पार्टी घोषित कर दिया तो इसका आगे का रास्ता आसान नहीं होगा । दूसरे सपा और बसपा का एक साथ विरोध भी पार्टी को महंगा पड़ सकता है। मायावती सरकार अगर मुक़दमे हटवा सकती है तो पुराने मामले खुलवा भी सकती है । फिर भ्रष्टाचार के साथ राजनीति के अपराधीकरण का मुद्दा भी पीस पार्टी को भारी पड़ सकता है । जनसत्ता

No comments: