Thursday, October 16, 2008

 जोगी की टक्कर का नेता नही

संजीत त्रिपाठी

रायपुर , अक्टूबर। राज्य में राजनैतिक दलों में विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी भले ही अभी तय न हुए हों पर कांग्रेस-भाजपा दोनों ही एक दूसरे के बडे नेताओं को घेरने की रणनीति बनाने में लगे हुए है। वही  इन पार्टियों के अन्दर के धडे अपने ही पार्टी के नेताओं के भी पर कतरने की कोशिश में लगे हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी चाहकर भी अब तक पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की काट या उनकी टक्कर का नेता नही ढूंढ पाई है जो जोगी को ताल ठोंककर  चुनौती दे सके। वहीं जोगी लगातार मुख्यमंत्री रमन सिंह को चुनौती देने में लगे हुए है। भाजपा के कुछ रणनीतिकार इसके चलते जोगी का ध्यान रमन से हटाकर रेणु जोगी की सीट पर केंद्रित करवाने की योजना पर काम कर रहे हैं। बताया जाता है कि अगर यह योजना सफल हो गई तो एक तीर से कई शिकार होने वाली बात हो जाएगी। इसके तहत भाजपा की तेज -तर्रार प्रवक्ता व दुर्ग की महापौर सरोज पाण्डेय को रेणु जोगी के खिलाफ उतारने का प्रस्ताव रखा गया है, हालांकि सरोज पाण्डेय की पसंद सिर्फ और सिर्फ शहरी क्षेत्र है उसमें भी सिर्फ दुर्ग ही उनकी पहली पसंद है। भाजपा सूत्रों की मानें तो दरअसल सरोज पाण्डेय को रेणु जोगी के खिलाफ उतारकर पार्टी दुर्ग के वर्तमान विधायक व मंत्री हेमचंद यादव को वहां से लड़ने के लिए हरी झंडी देना चाहती है। क्योंकि यादव  समर्थक पार्टी की प्रत्याशी चयन समिति के सामने मुखर होकर सरोज पाण्डेय को टिकट दिए जाने की मुखालफत कर चुके है।
इसी तरह यह बात सर्वविदित है कि सरोज पाण्डेय को राजनीति मे आगे बढ़ाने वाले वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष प्रेप्रकाश पाण्डेय ही हैं। पर इस बार मामला इसलिए दिलचस्प होता नजर आ रहा है कि प्रेमप्रकाश पाण्डेय खुद ही सरोज पाण्डेय को  दुर्ग शहर से टिकट दिए जाने का विरोध करते हुए यहां तक धमकी दे रहे है कि अगर सरोज पाण्डेय को टिकट दी जा रही है तो मुझे न दी जाय। बताया जाता है इसके पीछे पी पी पी यह तर्क दे रहे हैं कि आसपास लगी हुई दो सीटों पर ब्राम्हण  उम्मदवारों के होने परिणाम गड़बड़ा सकते है . गौरतलब है कि प्रेमप्रकाश पाण्डेय भिलाई नगर विधानसभा सीट के दावेदार हैं जो दुर्ग शहर से लगी ही हुई है। इसी सबके चलते सरोज पाण्डेय को रेणु जोगी के खिलाफ उतारा जा सकता है और वहां बडे नेताओं की सभाएं भी करवाई जा सकती है ताकि अजीत जोगी प्रचार के लिए अपनी सीट के साथ साथ कोटा सीट से ही बंध कर रह जाएं।
गौरतलब है कि भाजपा ने करीबन इसी तर्ज पर अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता सुषमा स्वराज को भी सोनिया गांधी के खिलाफ कर्नाटक के बेल्लारी  लोकसभा चुनाव में उतार दिया था । नतीजे चाहे जो भी आए रहे हों पर इसके पार्टी के अंदर सुषमा स्वराज का प्रभाव तत्कालिक रूप से कम हो गया था। इसी तरह छत्तीसगढ़ में दोनो ही पार्टियां जिस रणनीति पर काम कर रही है उसके तहत 'साजा के राजा' माने जाने वाले कांग्रेसी विधायक व पूर्व मंत्री  रविन्द्र चौबे के खिलाफ भाजपा ऐसे किसी साहू उम्मीदवार की तलाश में है जिसे वहां से उतारा जा सके । इस बार तो परिसीमन के कारण हालात और भी बदले नजर आ रहे हैं क्योंकि परिसीमन के चलते साजा विधानसभा क्षेत्र में कई गांव अलग हो गए है व कई ऐसे नए गांव जुडे हैं जो साहू बहुल हैं।
इसी तरह पाटन क्षेत्र के तेज-तर्रार कांग्रेसी विधायक व पूर्व मंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ  सांसद ताराचंद साहू की ही पुत्री झमिता साहू को उतारा जा सकता हैं। ध्यान देने लायक बात यह है कि झमिता साहू पूर्व में पार्टी की टिकट न मिलने पर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव  निर्दलीय लड़कर जीत चुकी हैं। बहरहाल, पार्टियां जब तक अपने उम्मीदवार तय नही कर लेतीं तब तक  रणनीति बनाने का यह दौर जारी रहेगा।
 वह तो चांदनी चौक या सदर बाजार के नेता ही कहे जा सकते हैं। ऐसे में भाजपा का यह चयन सही ठहराया जा सकता है क्योंकि उसने उस रिक्तता को भरने की कोशिश की है जोकि मदन लाल खुराना के पार्टी छोड़ने के बाद से थी। हालांकि खुराना अब पार्टी में लौट चुके हैं लेकिन पार्टी ने उन्हें कोई भूमिका नहीं देकर साफ कर दिया है कि उसने अभी तक उनको पूरी तरह से माफ नहीं किया है। मल्होत्रा के चयन से एक और बात साफ हो गई है कि दिल्ली भाजपा में पंजाबी समुदाय का बोलबाला बरकरार है। पूर्व में खुराना और केदारनाथ साहनी होते थे और अब मल्होत्रा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं और वह पंजाबी समुदाय से हैं। दिल्ली विधानसभा में इस समय विपक्ष के नेता जगदीश मुखी भी पंजाबी समुदाय से हैं। दिल्ली की महापौर आरती मेहरा भी पंजाबी समुदाय से हैं। दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र समिति के प्रमुख पूर्व उपराज्यपाल विजय कपूर भी पंजाबी समुदाय से हैं। 
दिल्ली चुनावों के लिए प्रभारी बनाये गये अरुण जेटली भी पंजाबी समुदाय से हैं। दरअसल पंजाबी समुदाय दिल्ली में भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता रहा है। ऐसा कम से कम खुराना के समय तक तो था ही, खुराना के जाने के बाद कहीं वह वोटर छिटके नहीं इसलिए भी मल्होत्रा के नाम को उचित माना गया। पार्टी ने विजय गोयल और हर्षवर्धन को लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार बनाने का आश्वासन दिया है। विजय गोयल की तो सीट पहले से ही निर्धारित है। हर्षवर्धन को पार्टी पूर्वी दिल्ली से उम्मीदवार बना सकती है। 

1 comment:

रवि रतलामी said...

हाँ, ये श्रूडनेस में लालू की जमात के हैं, अलबत्ता इनके पास लालू जैसा ह्यूमर नहीं है.
ये तो तय बात है कि इस दफा नहीं तो अलगी दफा जोगी फिर से छत्तीसगढ़ के सीएम बनेंगे.