Thursday, October 16, 2008

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव-आसान नहीं बीजापुर से कांग्रेस की राह

देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र ‘जनादेश’  इन राज्यों की राजनीति और उससे जुड़ी हलचलों पर विशेष फोकस करने जा रहा है। इसकी शुरुआत आज से ही की जा रही है। हम छत्तीसगढ़ की एक-एक विधानसभा सीट की वर्तमान राजनैतिक हालात की समीक्षा प्रस्तुत करेंगे।

आसान नहीं बीजापुर से कांग्रेस की राह
संदीप पुराणिक

रायपुर।  बीजापुर विधानसभा क्षेत्र के मतदाता वर्तमान विधायक राजेन्द्र पामभोई से नाराज बताए जाते हैं। नक्सलियों द्वारा दी गई धमकी के बाद उन्होंने क्षेत्र में जाना बंद कर दिया है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि यदि कांग्रेस उन्हें प्रत्याशी बनाती है तो वे अपना प्रचार कैसे करेंगे? यहां इस बार भाजपा के पक्ष में वर्तमान विधायक व विकास कार्यों तथा सरकारी योजनाओं के कारण अच्छा माहौल दिखाई दे रहा है। इस चुनाव में यहां से  भाजपा को फायदा मिल सकता है। 
बीजापुर विधानसभा ने अक्सर कांग्रेस पर अपना विश्वास व्यक्त किया है। सन् 52 से आज तक 10 बार क्षेत्र के मतदाताओं ने कांग्रेस प्रत्याशी को विजयश्री दिलाकर विधायक बनाया है। गहन नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र में सन् 1993 में भाजपा के प्रत्याशी को भी सफलता मिली। वर्तमान में कांग्रेस के अजीत जोगी के कट्टर समर्थक माने जाने वाले राजेन्द्र पामभोई विधायक हैं। 1952 में कांग्रेस के हीराशाह ने नामांकन दाखिल किया लेकिन किसी अन्य ने उनके खिलाफ पर्चा नहीं भरा। हीराशाह 52 में निर्विरोध निर्वाचित होकर विधानसभा में पहुंचे थे। 1957 के चुनाव में देश की आजादी का प्रभाव था। कांग्रेस सबके दिलों पर राज कर रही थी। क्षेत्र में भी इसका पूरा प्रभाव था मतदाताओं ने कांग्रेस के बी.आर. पामभोई को विधायक चुनकर अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। अगले चुनाव 1962 में हुए कांग्रेस के हीराशाह ने पचा भरा उनके सामने मुकाबले में कोई नहीं आया वे निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए गए। इस प्रकार वे दो बार निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। लेकिन एक घटनाक्रम के बाद यहां 27 अप्रैल 62 को उपचुनाव कराने पड़े कांग्रेस के पूर्व विधायक बी.आर. पामभोई पुन: विधायक बनाए गए उनका मुकाबला दो निर्दलीय आयतूराम व कोसा ने किया। सन् 1967 में 5 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे पहली बार जनसंघ ने हंगा मेंडा को अपना प्रत्याशी बनाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कांग्रेस ने बकैया राज को प्रत्याशी बनाया लेकिन दोनों राजनैतिक दलों को निर्दलीय दृगपाल शाह केशरीशाह ने मात देकर विजय प्राप्त की। सन् 1972 चुनावी समर में फिर 5 प्रत्याशी उतरे कांग्रेस के किष्टैया पप्पैया विधायक बने। उन्होंने निर्दलीय पूर्व विधायक दृगपाल को हराया। जनसंघ प्रत्याशी कन्हैया राजैय्या तीसरे क्रम में खड़े दिखाई दिए। 1977 में जनता लहर गहन बीहड़ वन क्षेत्र में पहुंच गई। जनता पार्टी ने महादेव आयतूराम को प्रत्याशी बना दिया। इस चुनाव में क्षेत्र के मतदाताओं ने परिवर्तन करके यह संदेश दिया कि देश की राजनैतिक हलचलों से यह बीहड़ क्षेत्र बराबर का सरोकार रखता है, महादेव आयतूराम विधायक बने। 1980 में कांग्रेस के महादेव राणा विधायक बने, उनका मुकाबला निर्दलीय राजेन्द्र कुमार बकैया पामभोई से हुआ। जनसंघ तीसरे क्रम पर ही खड़ी दिखाई दी। सन् 85 में भी कांग्रेस की विजय पताका शिशुपाल शाह ने विधायक बनकर फहराई। इस चुनाव में  उनका मुकाबला भाकपा के चिंतुर सुखराम से हुआ। जनसंघ भाजपा बन चुकी थी, फिर भी वह तीसरे क्रम पर ही खड़ी रही। 1990 के चुनाव में भाजपा ने यकायक मुकाबले पर आकर अपना जनाधार साबित कर दिया। उनके प्रत्याशी राजाराम तोडेम कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र पामभोई से मात्र 96 मतों से हार गए। लेकिन अपनी बढ़ी हुई शक्ति का प्रदर्शन कर दिया। 1993 में भाजपा से सतर्क कांग्रेस ने राजेन्द्र पामभोई को चुनाव मैदान में उतारा। राजाराम तोडेम ने कड़ा मुकाबला किया और 877 मतों से जीत हासिल कर पहली बार भाजपा का केशरिया ध्वज फहराया। क्षेत्र के लिए राजेन्द्र व राजाराम परंपरागत प्रतिद्वंद्वी बन गए। मतदाताओं ने दोनों पर भरपूर प्यार लुटाया आंकड़ों की गणित कभी राजेन्द्र कभी राजाराम के पक्ष में गई। 1998 में पुन: राजेन्द्र पामभोई विधायक बने। उन्होंने तोडेम को 7141 मतों से मात दी। 2003 में जब बस्तर का मतदाता भाजपा को जीत के मत डाल रहा था बीजापुर के मतदाता कांग्रेस पर अपनी मुहर लगा रहे थे। राजेन्द्र पामभोई ने तोडेम को 2721 मतों से फिर परास्त कर दिया। क्षेत्र महेन्द्र कर्मा के नेतृत्व में चल रहे आदिवासियों के सलवा जुडूम से प्रभावित है। राजेन्द्र पामभोई भी उसके अगुवा बने महेन्द्र कर्मा का साथ दिया। मंचासीन हुए लेकिन गुटबाजी की राजनीति व जोगी का नेतृत्व स्वीकार कर अपने गुट के इशारे पर उन्होंने बड़ी खूबसूरती से सलवा जुडूम आंदोलन से कन्नी काट कर लिया कल तक जुडूम जिंदाबाद के नारे लगाने वाले पामभोई जुडूम व महेन्द्र कर्मा के खिलाफ आग उगलने लगे। कल के दोस्त महेन्द्र कर्मा से छत्तीस का आंकड़ा बन गया। दोनों नेताओं में क्षेत्र के लोग एक मूल फर्क यह बताते हैं कि महेन्द्र को नक्सलियों ने बीजापुर में चुनौती दी तो वे सीना तान कर बीजापुर में घुसे चुनौती को स्वीकार किया लेकिन भैरमगढ़ क्षेत्र में हुए एक बारूदी विस्फोट में बच जाने के बाद राजेन्द्र पामभोई ने आज तक क्षेत्र की तरफ पलट कर भी नहीं देखा। लोग कहते हैं वे क्षेत्र में विकास तो हो रहा है पर धीमी चाल में और उसका श्रेय विधायक को नहीं जिले के मंत्री डा. सुभाऊ कश्यप को लोग देते हैं। लोग श्री पामभोई से नाराज दिखाई दिए। आगामी चुनाव में भी राजेन्द्र पामभोई की दावेदारी इस क्षेत्र की टिकट पर है। श्री पामभोई की टिकट का विरोध महेन्द्र कर्मा कर रहे हैं और पूर्व में कम्युनिस्ट पार्टी में रहे शंकनी चन्दैया को टिकट दिलाना चाहते हैं। ज्ञात रहे कि ये वही शंकनी चन्दैया है जिन्होंने पिछला चुनाव भाकपा की टिकट पर राजेन्द्र पामभोई के खिलाफ लड़ा था। एक घटनाक्रम में सलवा जुडूम से प्रभावित होकर उन्होंने महेन्द्र कर्मा के नेतृत्व में कांग्रेस प्रवेश कर लिया। श्री कर्मा ने हाईकमान से कहा है कि पामभोई के स्थान पर किसी अन्य को टिकट देने की मांग की है। भाजपा से टिकट के दावेदार राजाराम तोडेम व महेश जागड़ा है। बीजापुर विधानसभा क्षेत्र में भाकपा का कोई खास प्रभाव नहीं है। यहां कांग्रेस व भाजपा के बीच ही सीधा मुकाबला होगा। इस चुनाव में भाजपा को सीधा फायदा होने के आसार है। क्योंकि वर्तमान विधायक राजेन्द्र पामभोई जब से उन्हें नक्सलियों की धमकी मिली है तब से क्षेत्र में जाना बंद कर दिए हैं। क्षेत्र के मतदाताओं के मन में उनके प्रति काफी नाराजगी है। संसदीय सचिव सुभाऊ कश्यप ने क्षेत्र में शासकीय योजनाओं का लाभ दिलाए हैं, तथा विकास कार्य काफी कराए हैं। इसका सीधा फायदा भाजपा को ही मिलेगा। यदि कांग्रेस पामभोई को प्रत्याशी बनाती है तो उन्हें मतदाताओं को अपने पक्ष में करने तथा उनका आक्रोश दूर करने में समय व्यतीत हो जाएगा। मान मनौव्वल में समय व्यतीत करने से उनका यह चुनाव जीत पाना कठिन है। जिस नक्सली धमकी के कारण वे क्षेत्र में जाना बंद कर दिए हैं उस क्षेत्र में वे अपना चुनाव प्रचार कैसे करेंगे यह भी सोचनीय प्रश्न है? बीजापुर क्षेत्र धूर नक्सल प्रभावित है। यहां भी कई गांव नक्सली आतंक के कारण खाली हो चुके हैं। काफी संख्या में ग्रामीण शिविर में रह रहे हैं। सरकार ने शिविर में रहने वाले ग्रामीणों की सुरक्षा व्यवस्था, रहने की व्यवस्था, रोजगार के साधन, पेयजल व्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा की व्यवस्था की है। जानकारों का कहना है कि वर्तमान विधायक ने शिविर में रहने वाले ग्रामीणों का हालचाल भी जानने का शिविर स्थल में जाकर प्रयास नहीं किया है। विधायक के क्षेत्र में नहीं रहने के कारण क्षेत्र में विकास कार्य भी प्रभावित हुआ है। राजेन्द्र पामभोई को कांग्रेस ने चार बार प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा वे तीन बार जीते हैं और एक बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा है।

1 comment:

BrijmohanShrivastava said...

मै कोई कविता या लेख समझ कर आगया था