Friday, October 17, 2008

पांडिचेरी के समुद्र तट पर


सविता वर्मा 
जनादेश  
चेन्नई से समुद्र से लगे रास्ते पर आगे बढ़े तो नारियल के घने विस्तार सामने थे। सुबह के समय हवा में ठंडक थी और अच्छी सड़क की वजह कार की रफ्तार भी काफी तेज थी। हम महाबलीपुरम से करीब दस किलोमीटर पहले एक ढाबे पर काफी पीने के लिए उतरे। सड़क के दाहिने तरफ दूर समुद्र का नीला पानी नजर आ रहा था।  उसके किनारे नारियल के लहराते पेड़। यहां से हमें पांडिचेरी जना था जो अब पुंडुचेरी कहलाता है। चेन्नई से करीब 160 किलोमीटर पर बसे पांडिचेरी का रास्ता भी काफी खूबसूरत है। रास्ते में महाबलीपुरम का पड़ाव, दक्षिण के मशहूर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुका है। इस सैरगाह में कई खूबसूरत बीच रिसार्ट हैं। पिछले दो दशक के दौरान महाबलीपुरम के कुछ बीच रिसार्ट पर कई रुक चुकी हूं। इसलिए सीधे पांडिचेरी की तरफ बढ़ गए। हालांकि 1990 के दशक में पांडिचेरी की भी कई यात्राएं की पर देश में विदेशी परिवेश वाले इस शहर का आकर्षण हमेशा आमंत्रित करता रहा है। यह बात अलग है कि पांडिचेरी शहर में समुद्र का तट पत्थरों वाला है, सुनहरी रेतवाला नहीं। न तो केरल के कोवलम जसे अर्धचंद्र्राकर बीच यहां है और न ही गोवा जसे विशाल समुद्र तट।
 पांडिचेरी का बीच रोड करीब दो किलोमीटर लंबा है जो समुद्र तट के किनारे-किनारे चलता है। सड़क के एक तरफ काले बड़े-बड़े पत्थरों से टकराती लहरे नजर आती हैं तो सामने भव्य फ्रांसिसी होटल द प्रोमेदे का चमचमाता डायनिंग हाल। करीब चार घंटे में पांडिचेरी पहुंचने के बाद हम अरविंदो आश्रम के काटेल गेस्टहाउस में रुके। साफ-सुथरा गेस्टहाउस जहां शांति पसरी हुई थी। कमरे में पानी की सुराही रखने आई तमिल युवती ने चाय पर आने का न्योता दिया। काटेज गेस्टहाउस में नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात के भोजन का समय तय है। रात साढ़े आठ तक भोजन का समय समाप्त हो जता है। जो करीब सवा सात बजे शुरू होता है। तय समय के बाद पहुंचने पर निराश होना पड़ सकता है या फिर बाहर के होटल में जना पड़ेगा। यह कड़ा अनुशासन आश्रम व्यवस्था का अंग है। हालांकि बीच पर बने अरविंदो गेस्टहाउस में कुछ ज्यादा आजदी मिल जती है। वहां एक अलग रेस्त्रां भी है जो समुद्र तट से लगा हुआ है।
 पांडिचेरी शहर काफी साफ सुथरा और सेक्टर की तरह कई हिस्सों में बंटा हुआ है। समुद्र के किनारे का हिस्सा तो किसी फ्रांसीसी शहर जसा ही लगता है। चाहे आवास हो या होटल या फिर अन्य कोई ईमारत। फ्रांसीसी वास्तुशिल्प पर आधारित है। नाम भी रोमा रोला स्ट्रीट, विक्टर सिमोनेल स्ट्रीट और सेंट लुई स्ट्रीट जसे नजर आते हैं। पांडिचेरी पर १८१६ पर फ्रांसिसों का जो वर्चस्व स्थापित हुआ उसने मछुआरों के गांव को फ्रांसीसी रंग में रग दिया। यही वजह है कि यहां की जीवन शैली, संस्कृति और वास्तुशिल्प पर फ्रांस का काफी असर पड़ा है। करीब तीन साल के फ्रांसीसी शासन ने इस शहर को फ्रांसीसी शहर में बदल डाला है।  फ्रांसीसी उपनिवेश का असर आज भी नजर आता है। समुद्र तट के पास पुरानी इमारतें हों या फिर होटल या मयखाने। हर जगह फ्रांस का असर नजर आता है। जिस तरह गोवा में पुर्तगाल दिखता है उसी तरह पांडिचेरी में फ्रांस। फ्रांस के व्यंजन से लेकर मशहूर ब्रांड की मदिरा भी यहां मिल जएगी। और तो और यहां के बहुत से नागरिकों की नागरिकता भी फ्रांस की है। 
पांडिचेरी में अरविंदो आश्रम है, फ्रांसीसी वास्तुशिल्प का नायाब नमूना, गवर्नर का निवास जो अब राजभवन कहलता है। और एक नहीं कई भव्य चर्च हैं। यहां पर कई एतिहासिक मंदिर हैं। पर मंदिर जते समय ध्यान रखना चाहिए कि दोपहर बारह बजे के बाद ये मंदिर बंद हो जते हैं और चार बजे खुलते हैं। यह परंपरा दक्षिण के ज्यादातर मंदिरों में नजर आती है। महर्षि अरविंद का आश्रम तो यहां का मुख्य पर्यटन स्थल भी है। इस आश्रम में अनोखे फूल नजर आएंगे और कोई आवाज नहीं सुनाई पड़ती। लोग खामोशी से लाइन लगाकर महर्षि अरविंद के समाधि स्थल तक पहुंचते हैं और कुछ देर रुक कर उनके आवास देखते हुए बाहर आते हैं। इसकी स्थापना १९२६ में की गई थी। उनके साथ रहीं फ्रांस से आई मदर मीरा जो बाद में मां/मदर के नाम से मशहूर हुईं। उन्होंने १९६८ में ओरविल नामक अंतरराष्ट्रीय नगर बनाया। अंतरराष्ट्रीय बंधुत्व के सिद्धांत पर आधारित यह नगर पांडिचेरी से दस किलोमीटर दूर एक नई दुनिया दिखाता है। इस नगर की व्यवस्था में करीब १५ हजर लोगों को रोजगार मिला हुआ है। शिक्षा, चिकित्सा, कला, विज्ञान, हस्तशिल्प से लेकर अध्यात्म तक के केंन्द्र्र देखने वाले हैं। 
शाम होते होते बीच रोड पर रौनक बढ़ जती है तो अंधेरा घिरते ही मदिरालय गुलजर हो जते हैं। बीच रोड के बीच में अत्याधुनिक फ्रांसीसी रेस्त्रां समुद्र से लगा हुआ है। कुछ रेस्त्रां के बाहर रखे  कुर्सियों पर बैठने पर कई बार लहरों की कुछ बूंदे उछल कर ऊपर आ जती हैं। सूरज डूबने के बाद सड़क बिजली की रोशनी में नहा जती है और सामने पड़े बड़े-बड़े पत्थरों पर कई युवा जोड़े नजर आते हैं। एक तरफ समुद्र की लहरों का शोर और दूसरी तरफ तेज हवाओं से कपड़े संभालती युवतियां नजर आती हैं। सड़क की दूसरी तरफ सम्रुन्द्री मछलियों के व्यंजन का स्वाद लेते कई सैलानी नजर आते हैं। तटीय इलाकों में मछली, छींगा, लोबस्टर और केकड़े का काफी प्रचलन है और सड़क के किनारे ढेला लगाकर इन्हें बेचा जता है। पुरी हो या गोवा के समुद्र तट सब जगह यह नजरा दिखाई पड़ जता है। बीच रोड पर शाम से लेकर रात तक काफी भीड़ रहती है। यहीं पर महात्मा गांधी की प्रतिमा के नीचे खेलते बच्चे नजर आते हैं तो थोड़ी दूर पर फ्रांस के सैनिकों की याद का स्मारक और लाइट हाउस यहीं है। लाइट हाउस के पीछे आईपंडपम नाम का एक स्मारक है। कहा जता है कि यह एक वेश्या का स्मारक है जिसने लोगों को लिए तालाब खुदवाया था। बाद में नपोलियन तृतीय ने उससे प्रभावित होकर यह स्मारक बनवाया। 
यहां सूर्योदय के समय खामोशी नजर आती है। समुद्र में कब सूरज एक पीले गोले से नारंगी रंग में बदलता हुआ बाहर आ जता है पता ही नहीं चलता। सूरज के सामने मछुआरे की नाव आती है तो दृश्य देखने वाला था। पांडिचेरी अब पर्यटकों को लुभाने के लिए गोवा की तर्ज पर पहल कर रहा है। हालांकि जिस तरह गोवा अपसंस्कृति का शिकार हुआ है उसका अगर ध्यान नहीं रखा गया तो पांडिचेरी भी गोवा में बदल जएगा। शहर में विदेशी मदिरा की महासेल इसका उदाहरण है। 

2 comments:

BrijmohanShrivastava said...

दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ ""

sandhyagupta said...

Bilkul saziv varnan.

guptasandhya.blogspot.com