Wednesday, October 1, 2008

योग गुरु बाबा रामदेव का खेल

 नई दिल्ली,  अक्टूबर - रामायण में चर्चित हुई संजीवनी बूटी की फिर से तलाश कर लेने का स्वामी रामदेव का दावा खतरे में है। रामदेव और उनकी पतंजलि योग पीठ तो संजीवनी बूटी के पेटेंट की भी तैयारी कर चुकी थी। यह वही बूटी है जिसके बारे में रामायण में कहा गया है कि युद्व में बेहोश पड़े लक्ष्मण को जीवित करने के लिए हनुमान पूरा पहाड़ ही उठा लाए थे।  

पतंजलि पीठ के आचार्य बाल कृष्ण ने मीडिया से कहा था कि हमने संजीवनी बूटी खोज ली है और अब संसार की किसी भी बीमारी का इलाज असंभव नहीं रह गया। लेकिन वैज्ञानिक और खास तौर पर वनस्पति वैज्ञानिक इस दावे को बेहूदा बता रहे है और कह रहे है कि यह स्वामी रामदेव का प्रचार का एक और टोटका है। जिन प्रोफेसर आरडी गौर को स्वामी रामदेव खुद बहुत बड़ा विद्वान मानते हैं और जो अभी हाल तक हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविधालय के वनस्पति विभाग के प्रमुख थे, खुद इस दावे के खिलाफ खड़े हो गए।  श्री गौर ने कहा है कि जो बूटी कही जा रही है वह असल में वनस्पति विज्ञान की भाषा में सैलिनम कैडोलिल और गॉसीफिफोरा नाम के वे पौधे हैं जो हिमालय में सदियों से पाए जाते हैं और इनके औषधिय गुणों की जानकारी इलाके के बच्चे बच्चे को है। उन्होंने यह भी कहा कि रामायण के अनुसार संजीवनी बूटी में वे रसायन है जिनकी वजह से वह रात को जगमगाती है, इसमें बेहोशी दूर करने के गुण है और यह स्नायु तंत्र को ताकतवर बनाती है। श्री गौर के अनुसार जो पौधे संजीवनी बूटी बताए जा रहे हैं उनमें इनका एक भी गुण नहीं है। 

इतना ही नहीं हिमालय की औषधीय वनस्पतियों और अन्य पौधों के विशेषज्ञ और पदम श्री प्राप्त प्रोफेसर ए एन पूरोहित ने भी रामदेव की मंडली की इस दावे को बड़बोलपन और जनता को मुनाफे के लिए बेवकूफ बनाने की कोशिश बताया है। इस झगड़े में उत्तराखंड सरकार भी फंस गई है क्योंकि तीन महीने पहले स्वास्थ्य मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने संजीवनी बूटी खोजने के लिए एक सरकारी अभियान शुरू किया था लेकिन पतंजलि पीठ के दावे से इस अभियान पर भी सवालिया निशान लग गया है। श्री निशंक ने आज कहा कि सरकार संजीवनी बूटी खोजने का अपना कल्याणकारी कार्यक्रम जारी रखेगी। डेटलाइन इंडिया

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