Sunday, October 19, 2008

अंतराष्ट्रीय सीमा के बीच में बसे हैं


फोटो में पत्रकार मृणाल तालुकदार

रीता तिवारी, गुवाहाटी से

रमेन पुरकायस्थ, तपती दास और धीरेन दास यों तो खुद को भारतीय नागरिक कहते हैं. लेकिन उनकी नागरिकता सूरज की पहली किरण के साथ शुरू होती है और फिर शाम को सूरज ढलने के साथ ही खत्म भी हो जाती है. यह तीनों और असम में भारत-बांग्लादेश सीमा पर रहने वाले इनके तरह के ऐसे हजारों लोग हर रात १२ घंटे के लिए अपनी भारतीय नागरिकता गंवा देते हैं जिनके घर कंटीले तारों की बाड़ और अंतरराष्ट्रीय सीमा के बीच हैं. यह सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन है बिल्कुल सच. असम से लगी बांग्लादेश की सीमा पर बसे दो गांवों-झारपाटा और लाफासाई गांवों के लोग आजादी के बाद से ही रात का कर्फ्यू झेलने को अभिशप्त हैं. लाफासाई गांव तो ठीक अंतराष्ट्रीय सीमा पर है. सीमा सुरक्षा बल के जवान रोजाना सुबह छह बजे कंटीले तारों की बाड़ में बना गेट खोलते हैं. शाम छह बजते ही यह गेट बंद हो जाता है. उसके बाद इन गांवों के लोग कंटीले तारों की बाड़ और अंतरराष्ट्रीय सीमा के बीच कैद हो कर रह जाते हैं.
 इनलोगों ने अपने जीवन की एक रात भी भारतीय नागरिक के तौर पर नहीं गुजारी है. इन गांवों की विडंबना यह है कि ये सीमा पर घुसपैठ रोकने के लिए लगाई गई कंटीले तारों की बाड़ और अंतराष्ट्रीय सीमा के बीच में बसे हैं. पेशे से पत्रकार मृणाल तालुकदार ने इन गांवों के जीवन पर १९ मिनट की एक डाक्यूमेंट्री बनाई है. बीते दिनों मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के विशेष वर्ग में प्रर्दशित इस डाक्यूमेंट्री को काफी सराहा गया. नोबाडीज मैन शीर्षक इस डाक्यूमेंट्री में गांव के लोगों की दुर्दशा को कैमरे में कैद करते हुए बताया गया है कि किस तरह वहां के लोग आज भी विभाजन का दंश झेलने के लिए मजबूर हैं.
भारत-बांग्लादेश की सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ में लोहे का एक दरवाजा है. यह दरवाजा सीमा पर बसे लोगों की आवाजाही के लिए है. दरवाजा सुबह छह बजे खुलता है और शाम के ठीक छह बजे बंद कर दिया जाता है. गांववालों को इस दरवाजे को पार करने के लिए सीमा सुरक्षा बल की चौकी पर अपना पंजीकरण कराना होता है और शाम को छह बजे से पहले वापस लौटना उनके लिए जरूरी और मजबूरी है. जो लोग शाम छह बजे के पहले वापस नहीं लौट पाते और सीमा सुरक्षा बल की चौकी में अपनी वापसी की सूचना नहीं दे पाते, उनको हिरासत में ले लिया जाता है. विडंबना यह है कि इसी दरवाजे से होकर गांववालों को बाजार करने और बच्चे पढ़ने जाते हैं. बीमार व्यक्तियों को इलाज के लिए भी इसी दरवाजे से ले जाया जाता है. यानी यह दरवाजा ही उनकी जिंदगी है. लेकिन इन सभी को शाम छह बजने से पहले किसी भी हालत में वापस लौटना होता है. इन सभी विडंबनाओं और दिक्कतों को डाक्यूमेंट्री में दिखाने का प्रयास किया गया है. 
असम की राजधानी गुवाहाटी में एक समाचार एजेंसी में पूर्वोत्तर के प्रभारी के तौर पर काम कर रहे मृणाल कहते हैं कि वे महज एक पत्रकार हैं, फिल्म निर्माता नहीं. वे कहते हैं कि ‘डाक्यूमेंट्री बनाना  मेरे लिए महज एक अलग मंच के जरिए आम लोगों की समस्याओं को उठाने का तरीका है. यह दरअसल मेरी पत्रकारिता का एक्सटेंशन है.’ वैसे, तालुकदार इससे पहले चेरापूंजी में पीने के पानी की किल्लत पर वेट डेजर्ट और असम के बेरोजगार युवकों की समस्या पर इन सर्च आफ जाब शीर्षक डाक्यूमेंट्री भी बना चुके हैं.
इस डाक्यूमेंट्री का निर्देशन मृणाल और अभिजीत दास ने किया है. इसे ठीक अंतराष्ट्रीय सीमा पर फिल्माया गया है. मृणाल बताते हैं कि ‘फिल्म भले १९ मिनट की हो, लेकिन इसकी राह आसान नहीं रही. इसके लिए जरूरी मंजूरी के लिए फाइलें दिसपुर और दिल्ली के बीच दौड़ती रहीं. केंद्रीय गृह मंत्रालय व सीमा सुरक्षा बल से अनुमति मिलने में कोई आठ महीने लग गए. इसके बाद शूटिंग के दौरान बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) की आपत्तियों से भी लगातार जूझना पड़ा.’ इस फिल्म के लिए आर्थिक सहायता मिली सेंटर फार सिविल सोसायटी (सीसीएस) से. मृणाल ने सीमा पर रहने वाले इन नागरिकों के रात होते ही देशविहीन हो जाने की समस्या को बड़े असरदार तरीके से उठाया है. वे कहते हैं कि ‘भारत-बांग्लादेश की पूरी सीमा पर इस समस्या से जूझने वाले लोगों की तादाद एक लाख से ज्यादा है.’ और इस समस्या का फिलहाल कोई समाधान भी नजर नहीं आता. यानी अभी इन गांवों की कई पीढ़ियां सिर्फ डे सिटीजन यानी दिन के नागरिक के तौर पर पूरी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं.

3 comments:

shelley said...

rita ji or mrinaji, aap dono ko is behatrin post ke liye dhanwad. main in logo ke bare me or v kuch janna chahungi. kripya mrinal ji se sampark ka tarika batayen.

संगीता-जीवन सफ़र said...

भारत-बांग्लादेश की सीमा की समस्या से जूझने वाले लोगों की तादाद एक लाख से ज्यादा है/ये वाकई बहुत बडी समस्या है/डाक्यूमेंट्री के रुप में इस समस्या पर ध्यान दिलाना/ पत्रकार के द्वारा कही गई लोगों की ही आवाज है/इसके लिए आप सभी को धन्यवाद/

ambrish kumar said...

"mrinal talukdar" ka email-mrinal.talukdar@gmail.com Mobile no is-----09435040993