Wednesday, October 29, 2008

हमारी आवाज़ दबाने की कोशिश

सुशील कुमार सिंह
 
गासिपअड्डा.काम का मकसद नेपथ्य की उन खबरों को सामने लाना रहा है जिन्हें पारंपरिक मीडिया में जगह नहीं मिलती। वे खबरें चाहे राजनीति की हों या अफसरशाही की अथवा खुद मीडिया की। कितनी ही सूचनाएं हैं जो कभी रोशनी में नहीं आ पातीं, अगर इस साइट ने उन्हें प्रकाशित न किय़ा होता। यह ऐसा मंच है जहां पाठक भी अपना सहयोग देकर हमारे प्रयास में भागीदार बन सकते हैं।
 
इस प्रयोग का एक शर्मनाक नतीजा यह निकला कि राजनीतिकों की बजाय नेपथ्य की खबरों से मीडिया के कुछ मठाधीशों को ज्यादा परेशानी हुई। वे ऐसी हरकतों पर उतर आए कि इमरजेंसी की याद आ जाए। 23 अक्तूबर की शाम करीब साढ़े छह बजे लखनऊ से दर्जन भर पुलसियों की एक टीम गासिपअड्डा.काम के संस्थापक सुशील कुमार सिंह को गिरफ्तार करने उनके घर जा धमकी। कुछ ऐसी खबरों के एवज़ में जिनमें हिंदुस्तान टाइम्स संस्थान में घटी कुछ घटनाओं का जिक्र था।
 
सुशील घर पर नहीं थे। उनकी पत्नी ने उन्हें फोन किया। उन्होंने पुलिसवालों से मोबाइल पर बात करवाई। लखनऊ के गोमती नगर थाने के एक सब-इंस्पेक्टर राजीव कुमार सिंह लाइन पर थे। वे चाहते थे कि सुशील तत्काल घर लौटें। सुशील ने कहा कि वे तो रात दस बजे लौटेंगे। उन्होंने कहा कि अगर पुलिस तुरंत उनसे बात करना चाहती है तो वह प्रेस क्लब आ जाए या फिर पटियाला हाउस अदालत परिसर में एक वकील के चैंबर में। पुलिस टीम इन दोनों जगह आने को तैयार नहीं थी।
 
पुलिस उनके परिवार को एक घंटे तक धमकाती रही। फिर सुशील के एक मित्र और पड़ोसी शरद गुप्ता उनके घर पहुंचे। तब पहली बार पुलिस ने बताया कि मामला क्या है। शायद यह सोच कर कि शरद गुप्ता भी एक पत्रकार हैं।पुलिसियों ने बताया कि गासिपअड्डा.काम के खिलाफ हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप के बारे में कुछ लिखने पर उसके लखनऊ दफ्तर के एक अधिकारी बीएस अस्थाना ने एक एफआईआर दर्ज कराई है। इसमें आरोप लगाया गया है कि गासिपअड्डा.काम से किसी ने फोन करके अस्थाना जी से पचास लाख रुपए की मांग की ताकि भविष्य में ऐसी खबरें इस साइट पर न आएं।
 
जाते-जाते भी पुलिस टीम ने धमकी दी कि वे सुशील कुमार सिंह को उठाने के लिए कभी भी दोबारा आ सकते हैं। एक वकील मित्र ने सुशील को सलाह दी कि किसी हालत में वे पुलिस से अकेले न मिलें। वकील मित्र ने कई बार फोन करके पुलिस टीम को इस बात के लिए राजी करने का प्रयास किया कि वह सुशील से बात करने किसी ऐसी जगह आ जाए जहां वकील मौजूद रहे या फिर मीडिया के कुछ मित्र। मगर पुलिसवाले लगातार जिद करते रहे कि वे तो अकेले सुशील से मिलेंगे।
 
दो-तीन घंटों में यह खबर मीडिया में फैल गई। अनेक पत्रकारों ने हिंदुस्तान टाइम्स संस्थान और उत्तर प्रदेश पुलिस के इमरजेंसी जैसे रवैये की एकजुट होकर निंदा की। प्रेस क्लब आप इंडिया ने एक प्रस्ताव पास कर सुशील कुमार सिंह पर पुलिस कार्रवाई का विरोध किया है। अब तक देश के पांच प्रेस क्लब ऐसा ही प्रस्ताव पास कर चुके हैं। आल इंडिया वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने भी एक प्रस्ताव के जरिए अपना विरोध दर्ज कराया है। हम देश-विदेश के उन तमाम साथियों के प्रति आभार प्रकट करना चाहते हैं जिन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले का विरोध करने में हमारा साथ दिया है।चार दिन तक दिल्ली में सुशील कुमार सिंह की तलाश करते रहने के बाद आखिरकार पुलिस टीम लखनऊ लौट गई।गासिप अड्डा.काम इन हथकंडों से घबराने वाला नहीं है। हैरानी की बात है कि ये हथकंडे मीडिया के ही कुछ प्रतिनिधि अपना रहे हैं। इसके बावजूद इस साइट की आवाज को दबाया नहीं जा सकता।www.janadesh.in
 

2 comments:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

bhyi yahan aakar to bada acchhaa laga...raat jyada ho gayi hai...phir aayenge....!!!

Bahadur Patel said...

wakai bhoothnath ji sahi kah rahe hai