Wednesday, February 25, 2009

परिधि की यात्रा करते थे चंद्रदत्त तिवारी


अरूण कुमार त्रिपाठी
नई दिल्ली,  फरवरी-लखनऊ से अंबरीश कुमार ने तिवारी जी के जाने की खबर दी तो तमाम आदर्शवादी सपनों का पूरा जमाना याद आ गया।आज जब विचार से केन्द्र की यात्रा करने की होड़ लगी हो तब चंद्रदत्त तिवारी जसे राजनीतिक कार्यकर्ता अपने विचार केन्द्र से परिधि की ही यात्रा करते रहे। इस यात्रा में दो ही उपकरण उनके साथ रहे, एक साइकिल और दूसरी वैचारिक ईमानदारी। बाकी सब लोग और सामान आते-जते रहे और दुग्धधवल कुर्ता-पायजमा पहने तिवारी जी अपने जीवन को वैसे ही साफ सुथरा और कलफ की क्रीज लगा छोड़कर चले गए। आज समाजवाद के नाम पर गठित उत्तर प्रदेश की एक पार्टी का चुनाव चिन्ह भले साइकिल है, पर उसके नेताओं के दौरे के लिए हर समय चार्टर प्लेन खड़ा रहता है। वे परिधि से केन्द्र की यात्रा में दिन-रात लगे हैं। तिवारी जी इस प्रवृत्ति के ठीक उलटे थे। सन १९८0 में जब पुनीत टंडन और अतुल सिंघल ने रहस्यपूर्ण तरीके से लखनऊ विश्वविद्यालय के हास्टल के कमरे से उठाकर पेपर मिल कालोनी के उस पहली मंजिल के फ्लट में पहुंचाया तो विचारों की दुनिया ही बदल गई। आचार्य नरेन्द्र देव के चित्र लगे तिवारी जी के ड्राइंग रूप में तरह-तरह के विचारों और विभूतियों के दर्शन हुए और बड़े-बड़े लोगों से तर्क-वितर्क करने की समङा और हिम्मत आई। 
यही पर एसएन मुंशी जसे रेडिकल ह्यूमनिस्ट से मुलाकात हुई। यही दर्शन शास्त्र की प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा, समाजवादी नेता सर्वजीत लाल वर्मा, कम्युनिस्ट नेता जेड ए अहमद, रमेश चंद्र सिन्हा, समाजवादी नेता सुरेन्द्र मोहन, संस्कृति समीक्षक कृष्ण नारायण कक्कड़, चित्रकार रणवीर सिंह विष्ट, केजी मेडिकल कालेज के पूर्व प्रिंसपल व जेपी के सहयोगी डाक्टर एमएल गुजराल, गिरि इंस्टीट्यूट के निदेशक डाक्टर पपोला, अर्थशास्त्री डाक्टर पीडी श्रीमाली, समाजवादी शिक्षक भुवनेश मिश्र, छात्र नेता और समाज शास्त्री आनंद कुमार, निर्मला श्रीनिवासन, समीक्षक वीरेन्द्र यादव और मुद्रा राक्षस जसी चर्चित विभूतियों से मिलने और उनके ज्ञान और विचार की चर्खी पर अपने को शान चढ़ाने का मौका मिला। 
यहीं राजीव, प्रमोद और आशुतोष मिश्र जसे अग्रज मिले और यहीं चंद्रपाल सिंह, हरजिंदर, अंबरीश कुमार, अनूप श्रीवास्तव, शायर अशोक हमराही और जनेन्द्र जन जसे मित्र भी मिले। हर इतवार को होने वाली इस गोष्ठी में इतना जोश भर दिया कि हम लोग पढ़ाई-लिखाई छोड़कर क्रांति के ही बारे में सोचने लगे। इसी केन्द्र के प्रभाव में मैंने अंतद्र्वद्व शीर्षक से एक कविता लिख डाली। उसमें एक युवा छात्र के मन की वही दुविधा थी कि पिता से सपनों पर खड़े होकर कैसे करूंगा क्रांति।
साहित्यिक प्रतिभा  के धनी अतुल सिंघल की सलाह पर उसे दिनमान में भेज तो दो-तिहाई पेज में छप गई। एक तरह मैं कवि के रूप में चर्चित हुआ तो दूसरी तरफ विचार केन्द्र में डाक्टर रूप रेखा वर्मा ने इस दुविधा के चलते मेरी क्रांतिकारिता पर संदेह किया। तिवारी जी की खिचड़ी खाते हुए विचारों के अदहन पर हम लोग इतना खदबदाने लगे कि एक दिन कृष्ण नारायण कक्कड़ ने बाहर चाय की दुकान पर पूछ ही लिया कि क्या यहां तुम लोग विद्वानों को धोबी की तरह पछीटने के लिए बुलाते हो। इसी केन्द्र के लोगों के साथ लखनऊ में पचासों बार धरने और प्रदर्शन में शामिल हुआ और विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति को प्रभावित किया और इसी केन्द्र की ईमानदारी का असर था कि चुनाव लड़ने से पीछे हट गया।
हममें से तमाम लोग लखनऊ के विचार छोड़कर केन्द्र की तरफ आए और तिवारी जी से संपर्क छूट गया। लगभग दस साल बाद तिवारी जी दिल्ली के आईटीओ स्थित नरेन्द्र निकेतन में मिले तो मुङो पहचान नहीं पाए। जब राजीव और प्रमोद कुमार ने याद दिलाया तो प्रेम से गले लगा लिया और फिर खिचड़ी खिलाकर ही विदा किया। तिवारी जी के जने की खबर अंबरीश ने दी तो तमाम आदर्शवादी सपनों का पूरा जमाना याद आ गया। मुंशी जी के निधन पर केजी मेडिकल कालेज में टहलते हुए तिवारी जी ने देह दान को एक आदर्श बताते हुए वैसा ही करने का संकल्प जताया था और किया भी। समाजवाद को हिन्दुत्व की ओर मोड़ने में लगे भुवनेश जी बहुत पहले चले गए थे। कक्कड़ साहब और विष्ट जी जसे लोग भी लखनऊ जने पर नहीं मिलेंगे। पुनीत टंडन के सहारे दिल्ली आया था पर वे पहले ही छोड़ गए। अनूप श्रीवास्तव की संवाद शली हंसाकर प्रसन्न कर देती थी पर उन्हें भी जने की जल्दी थी। इस बड़े खालीपन के बावजूद तिवारी जी के विचार केन्द्र में सादगी और विचारों की ईमानदारी की जो चाभी भरी है, उससे ये मन केन्द्र में रहते हुए भी बार-बार परिधि के लोगों की तरफ भागता रहता है। एक समर्पित समाजवादी का यह क्या कोई कम योगदान है?
लेखक- हिन्दुस्तान, दिल्ली के वरिष्ठ समाचार संपादक हैं।

Saturday, February 14, 2009

ऐसे सड़क पर गिराकर पीटी गई लड़किया



अंबरीश कुमार
लखनऊ,  फरवरी। उत्तर प्रदेश में मायावती की पुलिस का अभियान जरी है। गुरूवार को शिक्षकों की पिटाई हुई तो शुक्रवार को पत्रकार पिटे। आज शनिवार को छात्राओं का नंबर आया। पुलिस ने इस बेरहमी के साथ दो छात्राओं को पीटा कि उन्हें अस्पताल ले जना पड़ा। वेलेन्टाइन दिवस ़के दिन लफंगों और शोहदों के बाद पुलिस ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। शहर के एक हिस्से में बजरंगी संस्कृति की रक्षा करने में जुटे थे तो विधानसभा के सामने महिला पुलिस ने दो छात्राओं के साथ जो सुलूक किया, वह शर्मनाक था। हालांकि लखनऊ के एसपी-कानून व्यवस्था रघुवीर लाल ने कहा, ‘मुख्यमंत्री का पुतला फूंकने पर आमादा छात्राएं महिला कांस्टेबिल से भिड़ गई थीं जिसकी वजह से उन्हें सख्ती से पेश आना पड़ा। बाद में शांति भंग की आशंका में तीन छात्राओं व चार छात्रों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।’
छात्राओं की पिटाई की फोटो से साफ है कि पुलिस ने किस तरह उनके कपड़ों पर हाथ डाल रखा है। दोनों छात्राओं प्रियंका लाल और अर्चना गोस्वामी को पुलिस ने इतनी बेरहमी से पीटा कि उन्हें अस्पताल ले जना पड़ा। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा-मायावती के राज में पुलिस पूरी तरह बेकाबू हो गई है। ला कालेज की छात्राओं ने आज विधि प्रथम सेमेस्टर परीक्षा की कापियों की पुन: जंच को लेकर जब प्रदर्शन किया तो पुलिस ने उन पर लाठियां चलाई। जिसके चलते समाजवादी महिला सभा की प्रदेश सचिव प्रिंयका लाल और अर्चना गोस्वामी को गंभीर चोंटे आई। अर्चना गोस्वामी को सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया है। प्रदर्शन में अन्य छात्रों के अलावा सौरभ शर्मा, अनामिका, सुपर्ण समदरिया आदि शामिल थे।
गौरतलब है कि डाक्टर भीमराव आंबेडकर ला कालेज के छात्र-छात्राएं विधि प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा को लेकर आंदोलनरत हैं। इस कालेज के ६0 छात्रों में से सिर्फ दो ही छात्र इस बार पास हुए हैं। छात्र इस बात से काफी नाराज थे और आंदोलन के चलते १२ फरवरी से भूख हड़ताल पर बैठे थे। आज इन्हीं छात्र-छात्राओं ने जब मुख्यमंत्री का पुतला फूंकने का प्रयास किया तो महिला पुलिस कांस्टेबिल के साथ उनकी ङाड़प हुई। छात्राएं अपने आंदोलन के चलते जब पुतला फूंकने पर अड़ गई तो उनकी बुरी तरह पिटाई की गई। पिटाई के साथ-साथ पुलिस ने उन्हें सड़क पर गिरा कर मारना शुरू किया। बाकी कहानी इसकी फोटो खुद बता दे रही है। इससे पहले गुरूवार को शिक्षकों के प्रदर्शन के दौरान जो फोटो ली गई थीं, उनमें एडीएम डाक्टर अनिल कुमार पाठक एक शिक्षक के सिर पर जूता मारते नजर आ रहे थे। इसके बाद कल एडीशनल एसपी परेश पांडेय ने पत्रकारों की धुनाई की। इस कड़ी में भय मुक्त समाज की पुलिस ने आज छात्राओं को सड़क पर गिराकर मारा।जनसत्ता 


Friday, February 13, 2009

पत्रकारों पर लाठिया,कई घायल


अंबरीश कुमार
लखनऊ , फरवरी। खबरों की कवरेज पर गए पत्रकारों की आज यहां सीबीआई कोर्ट में पुलिस ने बर्बरता से पिटाई की। कल ही शिक्षकों की पुलिस ने धुनाई की थी। इससे पहले वाराणसी बम धमाकों के आरोपी वलीउल्लाह को जब अदालत में पेश किया गया तो कुछ वकीलों ने उसकी पिटाई की और पत्रकार जब बीच में आए तो उनकी भी ठुकाई की गई। आज की घटना लखनऊ के सीबीआई कोर्ट परिसर में हुई जहां माफिया डान बबलू श्रीवास्तव पेशी पर आया था। पेशी के दौरान ही बबलू श्रीवास्तव के समर्थकों और पुलिस के बीच कुछ कहासुनी हुई जिसके बाद एडीशनल एसपी परेश पांडेय ने बबलू श्रीवास्तव के समर्थकों की पिटाई शुरू करवा दी। बीच में कुछ पत्रकारों को जनबूङाकर निशाना बनाया गया और उन्हें भी लाठियों से पीटा गया। इस घटना में जिन पत्रकारों को चोट आई, उनमें जी न्यूज के आलोक पांडे, आईबीएन ७ के परवेज, लाइव इंडिया के मंजुल, वाइस आफ इंडिया के तारिक और स्टार न्यूज के कैमरामैन प्रेम सिंह शामिल हैं। इस घटना से पत्रकार काफी उत्तेजित हुए और वित्त मंत्री लालजी वर्मा की बजट के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस का बायकाट कर दिया।
स्टार न्यूज के पत्रकार पंकज ङा के मुताबिक इस घटना में वाइस आफ इंडिया के पत्रकार तारिक के टूटे हाथ के प्लास्टर पर भी लाठी चलाई गई जिससे उसका प्लास्टर टूट गया। चश्मदीदों के मुताबिक सीबीआई कोर्ट में जसे ही माफियाडान बबलू श्रीवास्तव पेशी पर पहुंचा, टीवी पत्रकारों की टीम उसकी तरफ लपकी। यह देखते ही एडीशनल एसपी परेश पांडेय ने कहा-यही साले सब हीरो बना देते हैं। आज किसी को भी अंडरट्रायल से बातचीत नहीं करने दी जएगी। इस पर कुछ पत्रकारों से विरोध जताते हुए कहा कि वे हमेशा से बातचीत करते आए हैं। इस पर पांडेय उत्तेजित होकर चिल्लाने लगा और बोला-अभी तक जो करते आए हो, करते आए हो, अब नहीं करने दूंगा। इस पर जसे ही पत्रकार आगे बढ़े, परेश पांडेय लाठी लेकर दौड़े और उनके पीछे दूसरे पुलिस वालों ने भी पत्रकारों की पिटाई शुरू कर दी। इस मामले में परेश पांडेय को देर शाम ट्रांसफर कर दिया गया और बाजर खाला और कैसरबाग सीओ के साथ पांडेय के खिलाफ जंच के आदेश दे दिए गए।
इससे पहले इस घटना को लेकर पत्रकारों के बीच में आए कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह से भी टकराव हुआ। पत्रकार एडीशनल एसपी परेश पांडेय को हटाने की मांग कर रहे थे। बाद में सरकार ने पांडेय को हटाने का एलान किया। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार आने के बाद से पत्रकारों का उत्पीड़न कम नहीं हो रहा है। गोरखपुर प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष और आईबीएन सेवन के वरिष्ठ पत्रकार शलभमणि त्रिपाठी ने कहा-आए दिन पत्रकारों को निशाना बनाया ज रहा है। जहां भी मौका मिलता है, सरकार के अफसर पत्रकारों को फर्जी मामलों में फंसाने से लेकर जलील करने तक में पीछे नहीं रहते। पुलिस का रवैया तो और भी खराब है। आज जिस अधिकारी को लेकर टकराव हुआ, उसका व्यवहार पहले से ही बेकाबू था।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश का सूचना विभाग के कुछ अफसर पत्रकारों को जलील करने में पीछे नहीं हैं। इनमें सबसे ऊपर नाम सूचना विभाग के एक बददिमाग अफसर एके उपाध्याय का है। इस अफसर के व्यवहार से कई पत्रकार बुरी तरह नाराज हैं। आज कबीना मंत्री अनंत कुमार मिश्र को भी इसकी अनौपचारिक जनकारी कुछ पत्रकारों ने दी। जिसके कुछ देर बाद ही सीबीआई कोर्ट में हुई घटना ने पत्रकारों को और उत्तेजित कर दिया।
समाजदी पार्टी ने पत्रकारों पर पुलिसिया कार्याई की घोर निन्दा की है। सपा ने कहा है कि प्रदेश की राजधानी में सीबीआई कोर्ट में पत्रकारों पर हुए लाठीचार्ज ने एक बार फिर यह स्थापित कर दिया है कि मायाती सरकार को न तो प्रेस की स्तंत्रता से मतलब है, न मानाधिकारों से और नहीं उसमें सम्यता का कोई अंश शेष है। यह पूर्णतया निरंकुश, फासिस्ट तथा तानाशाह सरकार है जो पुलिस-प्रशासन तंत्र का उपयोग लोगों को भयांक्रांत करने में करती है। उसका भयमुक्त और कानून का राज स्थापित करने का दाव  ङाूठा और मक्कारी भरा है। पुलिस ऊपरी शह के कारण प्रदेश में जंगलराज कायम किए हुए है। राजधानी में महिलाओं का सड़क पर निकलना निरापद नहीं है। सूदखोरों को खुली छूट है जिससे उत्पीड़ित लोग जन दे रहे है। अपराधी सत्तादल में संरक्षित है। 
सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा चूंकि प्रेस अपनी शक्ति भर सरकार की काली करतूतों को बेनकाब करता है इसलिए उसको अब कुचलने का पूरा इंतजम हो गया है। वैसे भी मुख्यमंत्री पत्रकारों के साथ अच्छा व्यहार नहीं करती है और अप्रिय सालों पर धमकी देने से भी बाज नहीं आती हैं। प्रेस के काम करने की आजदी उन्हें रास नहीं आती है। समाजवादी पार्टी ने अधिकारियों को भी चेतानी दी कि वे मायाती के कारिदों की तरह काम न करें। प्रेस की आजदी पर कोई भी चोट बर्दाश्त नहीं होगी। समाजदी पार्टी की घायल पत्रकारों के साथ सहानुभूति है और सरकार को इसके लिए सदन में तथा सदन के बाहर जबवही देनी होगी।जनसत्ता 




Thursday, February 12, 2009

‘द स्टेट्समैन’ के संपादक गिरफ्तार
जनादेश ब्यूरो
कोलकाता। कोलकाता में पुलिस ने अंग्रेज़ी अख़बार ‘द स्टेट्समैन’ के संपादक और प्रकाशक को गिरफ़्तार कर लिया है। इन दोनों पर मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया गया है।मुस्लिम सुमदाय के कुछ लोगों ने अख़बार के संपादक रवींद्र कुमार और प्रकाशक आनंद सिन्हा के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई थी। इससे पहले अखबार में प्रकाशित एक आलेख को लेकर लोगों ने प्रदर्शन किया था। संयुक्त पुलिस आयुक्त प्रशासन प्रदीप चटर्जी ने कहा कि द स्टेट्समैन के संपादक रवीन्द्र कुमार और इसके मुद्रक व प्रकाशक आनंद सिन्हा को  एक शिकायत पर उनके आवास से 
गिरफ्तार किया गया।
मोहम्मद शाहिद ने यहां बऊबाजार थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। कुमार और शर्मा को पुलिस ने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट एस एस आनंद के समक्ष पेश किया और उन्हें पांच हजार रूपए के मुचलके पर अंतरिम जमानत दे दी गई।न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई 25 फरवरी को होगी।जोहान हैरी का व्हाई शुड आई रेस्पेक्ट दीज आप्रेसिव रीलिजन्स यानी मुझे इन दमनकारी धर्मों का आदर क्यों करना चाहिए शीर्षक से प्रकाशित आलेख पहले द इंडिपेंडेंट में छपा था और पांच फरवरी को यहां द स्टेट्समैन में उसे दोबारा प्रकाशित गया।
आलेख के खिलाफ मुसलिम संगठन छह फरवरी से ही द स्टेट्समैन दफ्तर के सामने प्रदर्शन कर रहे थे। शिकायत में कहा गया कि पैगम्बर के बारे में उक्त लेख के कथन में कोई सच्चाई नहीं है और जानबूझ कर इसे दोबारा छापा गया है। दूसरी ओर, संपादक और प्रकाशक ने कहा है कि उन पर जानबूझकर बुरे इरादे से आलेख प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया है जो सही नहीं है। जमाते-उलेमा-ए-हिंद से जुड़े कुछ लोगों ने शिकायत दर्ज की है कि 'द स्टेट्समैन’ में छपे लेख से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं जो भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है। इसबीच, संपादक रवींद्र कुमार ने पत्रकारों को बताया कि अख़बार में लेख को दोबारा छापने के लिए वे पहले ही माफ़ी मांग चुके हैं। उन्होंने कहा कि मैं मानता हूं कि संपादकीय स्तर पर यह एक गलती थी, लेकिन ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया।जिस लेख यह बवाल मचा है उसे यहाँ पर पढ़ा जा सकता है।



ब्लॉग पर राजनीती

संजीत त्रिपाठी 
रायपुर। ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी को चर्चाओं में बना रहना खूब आता है या यूं कहें कि उनकी करीबन हर हरकत चर्चा बन जाती है। इस बार अमित  ने अपने ब्लाग  के जरिए कांग्रेस नेताओं पर जमकर भड़ास निकाली है। वे विधानसभा चुनाव में पार्टी की पराजय के लिए अपने पिता को जिम्मेदार नहीं मानते। वहीं अपने पिता की उन्होंने खूब तारीफ की है पर उनके विरोधियों पर जमकर कटाक्ष किया है। 
अमित ने पार्टी की नीतियों का पोस्टमार्टम करते हुए निष्कर्ष निकाला है कि अजीत जोगी को छोड़कर चलने की नीति से कांग्रेस को नुकसान हुआ है। पिछले पांच साल से अजीत जोगी और उनके किसी भी समर्थक को कोई पद नहीं मिला। 
अमित जोगी ने लिखा है कि पार्टी ने विधानसभा चुनाव में एनसीपी से गठबंधन कर भाजपा को तीन सीटें तोहफे में दे दी। मनेन्द्रगढ़ में कांग्रेस काबिज थी। सामरी में एनसीपी के प्रत्याशी को कुछ सौ वोट ही मिले और चंद्रपुर में एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक नोबेल वर्मा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने राजी किए जा सकते थे। 
वे कांग्रेस में अपने पिता के विरोधियों पर कटाक्ष करने से भी पीछे नहीं रहे। मोतीलाल वोरा की ओर इशारा करते हुए उन्होंने लिखा है कि उन्हीं ने पांच साल पहले जोगी को छोड़कर चलने की नीति लागू की। इकलौते सांसद अजीत जोगी को केंद्र में स्थान नहीं दिया गया। केंद्रीय चुनाव समिति की बैठकों से दूर रखा गया। गंगा पोटाई के बारे में कहा कि एक महिला 1990 से लगातार चुनाव हार रही है। अमित के मुताबिक अपनी हार के लिए अजीत जोगी को जिम्मेदार ठहराने वाले पीसीसी नेताओं ने अपनी प्रचार सामग्री में श्री जोगी की तस्वीरों का खुलकर उपयोग किया। वे लोग चुनाव में अपने क्षेत्र से बाहर तक नहीं निकले और हार भी गए। 
अमित ने अपने पिता की तारीफ करते हुए लिखा है कि उन्होंने मरवाही का एक बार भी दौरा नहीं किया फिर भी सबसे अधिक वोटों से जीते। अजीत जोगी के संसदीय क्षेत्र में पार्टी को सात सीटें मिली। इनमें राजिम, धमतरी की सीटें भी है जहां भाजपा काबिज थी।
नेता प्रतिपक्ष के बारे में उन्होंने लिखा है कि अजीत जोगी को विधायक दल का नेता बनाने अधिकांश विधायकों ने हस्ताक्षर किए थे, फिर भी उपेक्षा हुई। इतना काफी नहीं था। ऐसे व्यक्ति रविंद्र चौबे को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया जिसे बनाने अजीत जोगी पांच साल से प्रयासरत थे। उनकी नियुक्ति तब की गई जब उन्होंने अपने आप को मेरे पिता से दूर कर लिया। 
सलवा जुडूम वोट बैंक
उन्होंने सलवा जुडूम को वोट बैंक भुनाने का सुनियोजित तरीका करार दिया है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष सलवा जुडूम का नेतृत्व कर रहे थे और पार्टी ने इस मसले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने से परहेज किया। इसका फायदा भाजपा ने उठाया।
गौरतलब है कि  अमित जोगी ने कुछ अरसा पहले राज्य के आदिवासियों और मछुआरों के साथ दिन बिताए था। बताया जाता है कि इसका उद्देश्य अमित जोगी को आम आदमी के जीवन में आने वाली मुश्किलों को समझने के लायक बनाना था। इस दौरान वे  राज्य के ताला गांव में रहे। हालांकि इस बारे में पूरी गोपनीयता बरती गई थी। अमित जोगी के आदिवासियों के बीच रहने के इस अभियान के पीछे उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत के रूप में देखा गया था। ताकि वे अपने पिता पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नक्शे कदम पर चल सकें। ताला गांव की आबादी करीब 700 है। यहां पर अधिकतर लोग गोंड आदिवासी जाति और केवट मछुआरा जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय की सतनामी जाति के लोग रहते हैं। 
राजधानी रायपुर से करीब 150 किलोमीटर दूर बिलासपुर जिले में मनियारी नदी के किनारे यह गांव बसा है। सूत्रों के मुताबिक अमित पिछले चार वर्षों से विवादों में रहे हैं। इसलिए उन्होंने गरीब जनता के लिए काम करने का निर्णय लिया। इसके लिए उसने ग्रामीण इलाके के गरीब लोगों के साथ रहने की शुरुआत की। सूत्रों ने आगे कहा कि अमित ने गोंड जनजाति और केवट जाति के लोगों के साथ रात और दिन बिताया। इसका उद्देश्य अमित को आम आदमी की जिंदगी में आने वाली दिन प्रतिदिन की दिक्कतों के बारे में प्रशिक्षित करना है। अमित को कभी 'छत्तीसगढ़ का संजय गांधी' कहा जाता था, क्योंकि उनकी अधिकतर गतिविधियों से विवाद पैदा हो जाता था। कहा जाता है कि अजीत जोगी के मुख्यमंत्री रहते अमित की सरकारी कामकाज में भागीदारी बढ़ गयी थी।
 

Monday, February 9, 2009

राजनैतिक मोर्चा बनाने में जुटे मुसलिम

अंबरीश कुमार
लखनऊ, फरवरी। मंदिर-मसजिद मुद्दा गरमाते ही उत्तर प्रदेश में मुसलिम राजनीति भी गरमाने लगी है। उत्तर प्रदेश में असम की तर्ज पर मोर्चा बनाने की पहल कुछ मुसलिम संगठन करने ज रहे हैं। एक तरफ बदरूद्दीन अजमल का आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट १६ फरवरी को बैठक और रैली करने ज रहा है तो दूसरी तरफ आधा दजर्न मुसलिम संगठन ११ फरवरी को लखनऊ में बैठक करने ज रहे हैं। इन संगठनों व दलों में नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी, उलेमा काउंसिल, मोमिन कांफ्रेंस, परचम पार्टी, पीस पार्टी, नेशनल लोकहिन्द पार्टी और नवभारत निर्माण पार्टी शामिल हैं। नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष अरशद खान ने कहा कि सांसद शाहिद अखलाक हमारे मोर्चे में शामिल हो चुके हैं और समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुररहमान बर्क को मोर्चा चुनाव में मदद करेगा। वे निर्दलीय संभल से लड़ने ज रहे हैं। इसके अलावा यदि आजम खान भी मन बनाते हैं तो मोर्चा उनका भी समर्थन करेगा। अरशद खान के बयान से साफ है कि उत्तर प्रदेश में नए तरह का मुसलिम मोर्चा बनाने की कवायद तेज हो चुकी है। 
खास बात यह है कि मुसलिम संगठनों और दलों की सारी कवायद के बाद भी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर मुसलिम मतदाता के सामने सिर्फ दो ही विकल्प हैं, या तो वे भाजपा की मदद से तीन बार सत्ता में आई मायावती के साथ जएं या फिर कल्याण सिंह के साथ खड़े मुलायम सिंह के साथ।  पिछले कुछ चुनाव के अनुभव से साफ है कि मुसलिम मतदाताओं का रूङान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बजय नई राजनीति की तरफ हो रहा है। 
उत्तर प्रदेश में मुसलिम राजनीति फिर गरमाने लगी है। असम में नए प्रयोग के साथ करीब दस विधायक जिताने वाले बदरूद्दीन अजमल अब उत्तर प्रदेश में दखल देने ज रहे हैं। अजमल का यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट १६ फरवरी को मेरठ में बैठक करने ज रहा है। उनके साथ उत्तर प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण मुसलिम नेता ज सकते हैं। राजनैतिक हलकों में माना ज रहा है कि समाजवादी पार्टी के कुछ असंतुष्ट मुसलिम नेताओं के साथ मुसलिम क्षेत्रों में काम करने वाले कुछ संगठन व दल भी इनके साथ खड़े हो सकते हैं। खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश की वाम राजनीति से जुड़े लोग भी इनका समर्थन हालात देखकर कर सकते हैं। इस लिहाज से यह ध्रुवीकरण भी महत्वपूर्ण माना ज रहा है। 
दूसरी तरफ आल इंडिया मुसलिम मजलिस की पहल पर ११ फरवरी को लखनऊ में एक बैठक बुलाई गई है। मजलिस के कार्यवाहक अध्यक्ष यूसुफ हबीब और उपाध्यक्ष बदर काजमी ने कहा-११ फरवरी को होने वाली बैठक में नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी, पीस पार्टी, परचम पार्टी, मोमिन कांफ्रेंस और उलेमा काउंसिल आदि हिस्सा लेने ज रहे हैं। इस बैठक के बाद नए मोर्चे के गठन की प्रक्रिया शुरू की जएगी। गौरतलब है कि बाटला हाउस मुठभेड़ के बाद आजमगढ़ के संजरपुर में मुसलिम राजनीति काफी गरमाई और मानवाधिकार संगठन पीयूएचआर ने मुसलिम नौजवानों के हक में सवाल उठाया था। पर अब पीयूएचआर पीछे रह गया और उलेमा ने नया संगठन खड़ा कर दिया। जनकारी के मुताबिक उलेमा काउंसिल आजमगढ़, जौनपुर और लालगंज लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ सकती है। हालांकि मानवाधिकार संगठन का मानना है कि आजमगढ़ के मुसलिम नौजवानों की लड़ाई को उलेमा अब राजनैतिक मोड़ दे चुके हैं। ये लोग हाल ही में ट्रेन लेकर दिल्ली गए थे और अब लखनऊ आने वाले हैं। 
उत्तर प्रदेश की मुसलिम राजनीति की खास बात यह है कि पिछले कई चुनाव से मुसलिम मतदाता आम तौर पर सपा और बसपा में बंट जते हैं। चुनाव से पहले इस तरह के मुसलिम संगठन हर बार नई-नई कवायद करते हैं पर चुनाव में इनका असर ज्यादा नहीं होता। नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी जसे अपवाद को छोड़कर ज्यादातर मुसलिम संगठन हवा-हवाई हैं। 
इस बार भी मुसलिम मतदाता मूल रूप से दो ही खेमों में बंटने वाले हैं। जिसमें बड़ा हिस्सा मुलायम के साथ खड़ा होगा, यह तय है। कल्याण सिंह के साथ खड़े होने के बावजूद मुलायम सिंह मुसलमानों की पहली पसंद हैं। एक मुसलिम नेता ने नाम न देने की शर्त पर कहा-आप मायावती को वोट दो या फिर आडवाणी को। बात तो बराबर है। तीन बार आडवाणी के समर्थन से मायावती सत्ता में आ चुकी हैं और अब दिल्ली की बारी है। आडवाणी अगर खुद न बन पाए तो वे मायावती को ही आगे करेंगे। 

Friday, February 6, 2009

फिर उबल रहा है लालगढ़


रीता तिवारी
कोलकाता। पश्चिम मेदिनीपुर जिले का लालगढ़ वाममोर्चा सरकार और उसकी सबसे बड़ी घटक माकपा के गले की फांस बन गया है। कुछ दिनों तक शांत रहने के बाद आदिवासियों के ताजा आंदोलन के चलते वह एक बार फिर उबलने लगा है। इस बार मुद्दा है एक माकपा नेता की शवयात्रा के दौरान हुई गोलीबारी में तीन आदिवासियों की मौत का। इसके विरोध में आदिवासी एक बार फिर लामबंद हो गए हैं। माकपा की दलील है कि आदिवासियों ने उस शवयात्रा पर हमला किया था। उसी के बाद हिंसा भड़की। वाममोर्चा ने भी इस मामले में सरकार व पार्टी का यह कह कर बचाव किया है कि तृणमूल कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दल सरकार विरोधी आंदोलन को हवा दे रहे हैं। मोर्चा प्रमुख विमान बोस ने कहा है कि लालगढ़ में दिन में जो लोग तृणमूल कांग्रेस और झारखंड पार्टी के बैनर तले आंदोलन कर रहे हैं, वे रात को माओवादी हो जाते हैं। वाममोर्चा ने लालगढ़ और दार्जिलिंग की समस्या सुलझाने पर सरकार के प्रयासों का समर्थन किया है। यहां आयोजित वाममोर्चा की बैठक में इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन किया गया और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मोर्चा की एका बहाल रखने पर सहमति हुई। बोस ने कहा कि सरकार धैर्यपूर्वक लालगढ़ मसले का समाधान निकालने का प्रयास कर रही है। लेकिन तृणमूल कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दल सरकार विरोधी आंदोलन को हवा दे रहे हैं। ममता बनर्जी के बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था के ही लालगढ़ दौरे पर जाने पर टिप्पणी करते हुए बोस ने कहा कि ममता वहां अशांति फैलाने ही गई थी। लालगढ़ में अत्याचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व चक्रधर महतो कर रहे हैं जो तृणमूल के नेता हैं। 
लेकिन तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने तीन आदिवासियों की हत्या के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराया है। उन्होंने कहा कि कई महीनों से लालगढ़ अशांत है और हालात सामान्य करने के लिए जिला प्रशासन की ओर से कोई पहल नहीं की गई। माओवादियों की धर-पकड़ के लिए लालगढ़ में तलाशी के दौरान अगर महिलाओं के साथ बदसलूकी की घटना नहीं घटती तो लालगढ़ में इस कदर विरोध नहीं बढ़ता। विपक्ष का सवाल है कि शवयात्रा में कोई बंदूक और गोली के साथ तो नहीं जाता। फिर गोलियां कैसे चलीं। उसका आरोप है कि यह सब सुनियोजित था और प्रशासन मूक दर्शक बना रहा।  ममता खुद भी दो दिन पहले लालगढ़ का दौरा कर चुकी हैं।
उन्होंने कहा कि तृणमूल किसी की हत्या को उचित नहीं ठहराती लेकिन जिस ढंग से माकपा के जुलूस के दौरान आदिवासियों पर गोली चलाई गईं उससे लगता है कि प्रशासन माकपा काडरों के सामने मूकदर्शक बन गया था। अगर प्रशासन चाहता तो इन हत्याओं को रोका जा सकता था। उन्होंने कहा कि मुख्य विपक्षी दल की हैसियत से तृणमूल कांग्रेस ने कई बार केन्द्र को राज्य की कानून व व्यवस्था की स्थिति के बारे में जानकारी दी है। इसके बावजूद आज तक एक भी केन्द्रीय टीम नंदीग्राम व लालगढ़ नहीं आई। उन्होंने कहा कि वाममोर्चा के 32 वर्षो के शासन के बावजूद आदिवासियों के विकास के लिए कुछ नहीं किया गया। अब जब वे अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं तो उन पर पुलिस कार्रवाई हो रही है।
ताजा हिंसा के बाद लालगढ़ में स्थानीय लोग भी बंद बुला चुके हैं और कांग्रेस भी।  राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि लालगढ़ का जख्म अब धीरे-धीरे एक नासूर बनता जा रहा है जो अगले लोकसभा चुनाव तक रिसता रहेगा। ऐसे में यह समस्या सत्तारुढ़ वाममोर्चा और माकपा के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।
 
 

Thursday, February 5, 2009

सौम्या विश्वनाथन का नाम सुना है तो पढ़े



अरविन्द उप्रेती 
नई दिल्ली,  फरवरी- टुडे समूह की पत्रकार की सौम्या विश्वनाथन की हत्या के मामले में श्रम विभाग भी सक्रिय हुआ है। श्रम विभाग के मुख्य निरीक्षक केआर वर्मा की शिकायत पर विशेष मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट जवेद असलम ने चैनल के मालिक अरुण पुरी को सम्मन जारी किया है। अपनी शिकायत में वर्मा ने अभियुक्त पुरी और उनके चैनल के खिलाफ दिल्ली दुकान व ठिकाना अधिनियम १९५४ की धारा ४0 के तहत कार्रवाई की सिफारिश की है। 
इस धारा के तहत कार्रवाई धारा १४ का उल्लंघन करने पर की जती है। धारा १४ में प्रावधान है कि किसी महिला से रात में डयुटी नहीं कराई जा सकती। अगर किसी संस्थान को इस प्रावधान से छूट लेनी हो तो उसके लिए श्रम सचिव के समक्ष आवेदन करना जरूरी है। सौम्या विश्वनाथन की आधी रात के बाद डयुटी से घर लौटते समय पिछले साल ३0 सितंबर को रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हुई थी। दिल्ली के मुख्य श्रम निरीक्षक का कहना है कि आज तक चैनल को धारा १४ के तहत कोई छूट प्रदान नहीं की गई थी। लिहाज उन्होंने सौम्या विश्वनाथन को रात की डयुटी पर रख कर इस कानून का उल्लंघन किया है। 
अदालत में दायर अपनी शिकायत में मुख्य निरीक्षक वर्मा ने दुकान व ठिकाना कानून १९५४ की धारा १४ को उदधृत भी किया है। जिसके तहत किसी नवयुवक या नवयुवती से गर्मियों में रात नौ बजे से सुबह सात बजे तक और सर्दियों में रात आठ बजे से सुबह आठ बजे तक काम नहीं लिया ज सकता। वर्मा ने इस बाबत चैनल को कारण बताओ नोटिस भी जरी किया था। पर अदालत में दायर अपनी शिकायत में वर्मा ने कहा है कि चैनल का जवाब धारा १४ के उल्लंघन के आरोप पर मौन रहा है। अलबत्ता श्रम सचिव को चार नवंबर को भेजे पत्र में चैनल की तरफ से तर्क दिया गया है कि सूचना प्रौद्योगिकी आधारित उद्योग को धारा १४ के तहत मुक्ति हासिल है। पर मुख्य निरीक्षक वर्मा इस सफाई से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने अपनी शिकायत में कहा है कि केवल कंप्यूटर का इस्तेमाल करने से कोई संस्थान सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित उद्योग नहीं बन जता। 
अदालत में दाखिल शिकायत में वर्मा ने निष्कर्ष निकाला है कि सौम्या को प्रबंधन ने धारा १४ का उल्लंघन कर रात की डच्यूटी पर रखा था। वे तड़के तीन बजे तक डयुटी पर थीं। अपनी शिकायत में वर्मा ने आरोपियों के खिलाफ धारा १४ के उल्लंघन के लिए धारा ४0 के तहत दंडात्मक कार्रवाई की फरियाद की है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और इंडियन एक्सप्रेस यूनियन के वाइस प्रेजिडेंट भी है .