Friday, February 6, 2009

फिर उबल रहा है लालगढ़


रीता तिवारी
कोलकाता। पश्चिम मेदिनीपुर जिले का लालगढ़ वाममोर्चा सरकार और उसकी सबसे बड़ी घटक माकपा के गले की फांस बन गया है। कुछ दिनों तक शांत रहने के बाद आदिवासियों के ताजा आंदोलन के चलते वह एक बार फिर उबलने लगा है। इस बार मुद्दा है एक माकपा नेता की शवयात्रा के दौरान हुई गोलीबारी में तीन आदिवासियों की मौत का। इसके विरोध में आदिवासी एक बार फिर लामबंद हो गए हैं। माकपा की दलील है कि आदिवासियों ने उस शवयात्रा पर हमला किया था। उसी के बाद हिंसा भड़की। वाममोर्चा ने भी इस मामले में सरकार व पार्टी का यह कह कर बचाव किया है कि तृणमूल कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दल सरकार विरोधी आंदोलन को हवा दे रहे हैं। मोर्चा प्रमुख विमान बोस ने कहा है कि लालगढ़ में दिन में जो लोग तृणमूल कांग्रेस और झारखंड पार्टी के बैनर तले आंदोलन कर रहे हैं, वे रात को माओवादी हो जाते हैं। वाममोर्चा ने लालगढ़ और दार्जिलिंग की समस्या सुलझाने पर सरकार के प्रयासों का समर्थन किया है। यहां आयोजित वाममोर्चा की बैठक में इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन किया गया और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मोर्चा की एका बहाल रखने पर सहमति हुई। बोस ने कहा कि सरकार धैर्यपूर्वक लालगढ़ मसले का समाधान निकालने का प्रयास कर रही है। लेकिन तृणमूल कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दल सरकार विरोधी आंदोलन को हवा दे रहे हैं। ममता बनर्जी के बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था के ही लालगढ़ दौरे पर जाने पर टिप्पणी करते हुए बोस ने कहा कि ममता वहां अशांति फैलाने ही गई थी। लालगढ़ में अत्याचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व चक्रधर महतो कर रहे हैं जो तृणमूल के नेता हैं। 
लेकिन तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने तीन आदिवासियों की हत्या के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराया है। उन्होंने कहा कि कई महीनों से लालगढ़ अशांत है और हालात सामान्य करने के लिए जिला प्रशासन की ओर से कोई पहल नहीं की गई। माओवादियों की धर-पकड़ के लिए लालगढ़ में तलाशी के दौरान अगर महिलाओं के साथ बदसलूकी की घटना नहीं घटती तो लालगढ़ में इस कदर विरोध नहीं बढ़ता। विपक्ष का सवाल है कि शवयात्रा में कोई बंदूक और गोली के साथ तो नहीं जाता। फिर गोलियां कैसे चलीं। उसका आरोप है कि यह सब सुनियोजित था और प्रशासन मूक दर्शक बना रहा।  ममता खुद भी दो दिन पहले लालगढ़ का दौरा कर चुकी हैं।
उन्होंने कहा कि तृणमूल किसी की हत्या को उचित नहीं ठहराती लेकिन जिस ढंग से माकपा के जुलूस के दौरान आदिवासियों पर गोली चलाई गईं उससे लगता है कि प्रशासन माकपा काडरों के सामने मूकदर्शक बन गया था। अगर प्रशासन चाहता तो इन हत्याओं को रोका जा सकता था। उन्होंने कहा कि मुख्य विपक्षी दल की हैसियत से तृणमूल कांग्रेस ने कई बार केन्द्र को राज्य की कानून व व्यवस्था की स्थिति के बारे में जानकारी दी है। इसके बावजूद आज तक एक भी केन्द्रीय टीम नंदीग्राम व लालगढ़ नहीं आई। उन्होंने कहा कि वाममोर्चा के 32 वर्षो के शासन के बावजूद आदिवासियों के विकास के लिए कुछ नहीं किया गया। अब जब वे अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं तो उन पर पुलिस कार्रवाई हो रही है।
ताजा हिंसा के बाद लालगढ़ में स्थानीय लोग भी बंद बुला चुके हैं और कांग्रेस भी।  राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि लालगढ़ का जख्म अब धीरे-धीरे एक नासूर बनता जा रहा है जो अगले लोकसभा चुनाव तक रिसता रहेगा। ऐसे में यह समस्या सत्तारुढ़ वाममोर्चा और माकपा के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।
 
 

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