Monday, February 9, 2009

राजनैतिक मोर्चा बनाने में जुटे मुसलिम

अंबरीश कुमार
लखनऊ, फरवरी। मंदिर-मसजिद मुद्दा गरमाते ही उत्तर प्रदेश में मुसलिम राजनीति भी गरमाने लगी है। उत्तर प्रदेश में असम की तर्ज पर मोर्चा बनाने की पहल कुछ मुसलिम संगठन करने ज रहे हैं। एक तरफ बदरूद्दीन अजमल का आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट १६ फरवरी को बैठक और रैली करने ज रहा है तो दूसरी तरफ आधा दजर्न मुसलिम संगठन ११ फरवरी को लखनऊ में बैठक करने ज रहे हैं। इन संगठनों व दलों में नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी, उलेमा काउंसिल, मोमिन कांफ्रेंस, परचम पार्टी, पीस पार्टी, नेशनल लोकहिन्द पार्टी और नवभारत निर्माण पार्टी शामिल हैं। नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष अरशद खान ने कहा कि सांसद शाहिद अखलाक हमारे मोर्चे में शामिल हो चुके हैं और समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुररहमान बर्क को मोर्चा चुनाव में मदद करेगा। वे निर्दलीय संभल से लड़ने ज रहे हैं। इसके अलावा यदि आजम खान भी मन बनाते हैं तो मोर्चा उनका भी समर्थन करेगा। अरशद खान के बयान से साफ है कि उत्तर प्रदेश में नए तरह का मुसलिम मोर्चा बनाने की कवायद तेज हो चुकी है। 
खास बात यह है कि मुसलिम संगठनों और दलों की सारी कवायद के बाद भी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर मुसलिम मतदाता के सामने सिर्फ दो ही विकल्प हैं, या तो वे भाजपा की मदद से तीन बार सत्ता में आई मायावती के साथ जएं या फिर कल्याण सिंह के साथ खड़े मुलायम सिंह के साथ।  पिछले कुछ चुनाव के अनुभव से साफ है कि मुसलिम मतदाताओं का रूङान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बजय नई राजनीति की तरफ हो रहा है। 
उत्तर प्रदेश में मुसलिम राजनीति फिर गरमाने लगी है। असम में नए प्रयोग के साथ करीब दस विधायक जिताने वाले बदरूद्दीन अजमल अब उत्तर प्रदेश में दखल देने ज रहे हैं। अजमल का यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट १६ फरवरी को मेरठ में बैठक करने ज रहा है। उनके साथ उत्तर प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण मुसलिम नेता ज सकते हैं। राजनैतिक हलकों में माना ज रहा है कि समाजवादी पार्टी के कुछ असंतुष्ट मुसलिम नेताओं के साथ मुसलिम क्षेत्रों में काम करने वाले कुछ संगठन व दल भी इनके साथ खड़े हो सकते हैं। खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश की वाम राजनीति से जुड़े लोग भी इनका समर्थन हालात देखकर कर सकते हैं। इस लिहाज से यह ध्रुवीकरण भी महत्वपूर्ण माना ज रहा है। 
दूसरी तरफ आल इंडिया मुसलिम मजलिस की पहल पर ११ फरवरी को लखनऊ में एक बैठक बुलाई गई है। मजलिस के कार्यवाहक अध्यक्ष यूसुफ हबीब और उपाध्यक्ष बदर काजमी ने कहा-११ फरवरी को होने वाली बैठक में नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी, पीस पार्टी, परचम पार्टी, मोमिन कांफ्रेंस और उलेमा काउंसिल आदि हिस्सा लेने ज रहे हैं। इस बैठक के बाद नए मोर्चे के गठन की प्रक्रिया शुरू की जएगी। गौरतलब है कि बाटला हाउस मुठभेड़ के बाद आजमगढ़ के संजरपुर में मुसलिम राजनीति काफी गरमाई और मानवाधिकार संगठन पीयूएचआर ने मुसलिम नौजवानों के हक में सवाल उठाया था। पर अब पीयूएचआर पीछे रह गया और उलेमा ने नया संगठन खड़ा कर दिया। जनकारी के मुताबिक उलेमा काउंसिल आजमगढ़, जौनपुर और लालगंज लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ सकती है। हालांकि मानवाधिकार संगठन का मानना है कि आजमगढ़ के मुसलिम नौजवानों की लड़ाई को उलेमा अब राजनैतिक मोड़ दे चुके हैं। ये लोग हाल ही में ट्रेन लेकर दिल्ली गए थे और अब लखनऊ आने वाले हैं। 
उत्तर प्रदेश की मुसलिम राजनीति की खास बात यह है कि पिछले कई चुनाव से मुसलिम मतदाता आम तौर पर सपा और बसपा में बंट जते हैं। चुनाव से पहले इस तरह के मुसलिम संगठन हर बार नई-नई कवायद करते हैं पर चुनाव में इनका असर ज्यादा नहीं होता। नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी जसे अपवाद को छोड़कर ज्यादातर मुसलिम संगठन हवा-हवाई हैं। 
इस बार भी मुसलिम मतदाता मूल रूप से दो ही खेमों में बंटने वाले हैं। जिसमें बड़ा हिस्सा मुलायम के साथ खड़ा होगा, यह तय है। कल्याण सिंह के साथ खड़े होने के बावजूद मुलायम सिंह मुसलमानों की पहली पसंद हैं। एक मुसलिम नेता ने नाम न देने की शर्त पर कहा-आप मायावती को वोट दो या फिर आडवाणी को। बात तो बराबर है। तीन बार आडवाणी के समर्थन से मायावती सत्ता में आ चुकी हैं और अब दिल्ली की बारी है। आडवाणी अगर खुद न बन पाए तो वे मायावती को ही आगे करेंगे। 

No comments: