Thursday, February 12, 2009

ब्लॉग पर राजनीती

संजीत त्रिपाठी 
रायपुर। ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी को चर्चाओं में बना रहना खूब आता है या यूं कहें कि उनकी करीबन हर हरकत चर्चा बन जाती है। इस बार अमित  ने अपने ब्लाग  के जरिए कांग्रेस नेताओं पर जमकर भड़ास निकाली है। वे विधानसभा चुनाव में पार्टी की पराजय के लिए अपने पिता को जिम्मेदार नहीं मानते। वहीं अपने पिता की उन्होंने खूब तारीफ की है पर उनके विरोधियों पर जमकर कटाक्ष किया है। 
अमित ने पार्टी की नीतियों का पोस्टमार्टम करते हुए निष्कर्ष निकाला है कि अजीत जोगी को छोड़कर चलने की नीति से कांग्रेस को नुकसान हुआ है। पिछले पांच साल से अजीत जोगी और उनके किसी भी समर्थक को कोई पद नहीं मिला। 
अमित जोगी ने लिखा है कि पार्टी ने विधानसभा चुनाव में एनसीपी से गठबंधन कर भाजपा को तीन सीटें तोहफे में दे दी। मनेन्द्रगढ़ में कांग्रेस काबिज थी। सामरी में एनसीपी के प्रत्याशी को कुछ सौ वोट ही मिले और चंद्रपुर में एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक नोबेल वर्मा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने राजी किए जा सकते थे। 
वे कांग्रेस में अपने पिता के विरोधियों पर कटाक्ष करने से भी पीछे नहीं रहे। मोतीलाल वोरा की ओर इशारा करते हुए उन्होंने लिखा है कि उन्हीं ने पांच साल पहले जोगी को छोड़कर चलने की नीति लागू की। इकलौते सांसद अजीत जोगी को केंद्र में स्थान नहीं दिया गया। केंद्रीय चुनाव समिति की बैठकों से दूर रखा गया। गंगा पोटाई के बारे में कहा कि एक महिला 1990 से लगातार चुनाव हार रही है। अमित के मुताबिक अपनी हार के लिए अजीत जोगी को जिम्मेदार ठहराने वाले पीसीसी नेताओं ने अपनी प्रचार सामग्री में श्री जोगी की तस्वीरों का खुलकर उपयोग किया। वे लोग चुनाव में अपने क्षेत्र से बाहर तक नहीं निकले और हार भी गए। 
अमित ने अपने पिता की तारीफ करते हुए लिखा है कि उन्होंने मरवाही का एक बार भी दौरा नहीं किया फिर भी सबसे अधिक वोटों से जीते। अजीत जोगी के संसदीय क्षेत्र में पार्टी को सात सीटें मिली। इनमें राजिम, धमतरी की सीटें भी है जहां भाजपा काबिज थी।
नेता प्रतिपक्ष के बारे में उन्होंने लिखा है कि अजीत जोगी को विधायक दल का नेता बनाने अधिकांश विधायकों ने हस्ताक्षर किए थे, फिर भी उपेक्षा हुई। इतना काफी नहीं था। ऐसे व्यक्ति रविंद्र चौबे को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया जिसे बनाने अजीत जोगी पांच साल से प्रयासरत थे। उनकी नियुक्ति तब की गई जब उन्होंने अपने आप को मेरे पिता से दूर कर लिया। 
सलवा जुडूम वोट बैंक
उन्होंने सलवा जुडूम को वोट बैंक भुनाने का सुनियोजित तरीका करार दिया है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष सलवा जुडूम का नेतृत्व कर रहे थे और पार्टी ने इस मसले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने से परहेज किया। इसका फायदा भाजपा ने उठाया।
गौरतलब है कि  अमित जोगी ने कुछ अरसा पहले राज्य के आदिवासियों और मछुआरों के साथ दिन बिताए था। बताया जाता है कि इसका उद्देश्य अमित जोगी को आम आदमी के जीवन में आने वाली मुश्किलों को समझने के लायक बनाना था। इस दौरान वे  राज्य के ताला गांव में रहे। हालांकि इस बारे में पूरी गोपनीयता बरती गई थी। अमित जोगी के आदिवासियों के बीच रहने के इस अभियान के पीछे उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत के रूप में देखा गया था। ताकि वे अपने पिता पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नक्शे कदम पर चल सकें। ताला गांव की आबादी करीब 700 है। यहां पर अधिकतर लोग गोंड आदिवासी जाति और केवट मछुआरा जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय की सतनामी जाति के लोग रहते हैं। 
राजधानी रायपुर से करीब 150 किलोमीटर दूर बिलासपुर जिले में मनियारी नदी के किनारे यह गांव बसा है। सूत्रों के मुताबिक अमित पिछले चार वर्षों से विवादों में रहे हैं। इसलिए उन्होंने गरीब जनता के लिए काम करने का निर्णय लिया। इसके लिए उसने ग्रामीण इलाके के गरीब लोगों के साथ रहने की शुरुआत की। सूत्रों ने आगे कहा कि अमित ने गोंड जनजाति और केवट जाति के लोगों के साथ रात और दिन बिताया। इसका उद्देश्य अमित को आम आदमी की जिंदगी में आने वाली दिन प्रतिदिन की दिक्कतों के बारे में प्रशिक्षित करना है। अमित को कभी 'छत्तीसगढ़ का संजय गांधी' कहा जाता था, क्योंकि उनकी अधिकतर गतिविधियों से विवाद पैदा हो जाता था। कहा जाता है कि अजीत जोगी के मुख्यमंत्री रहते अमित की सरकारी कामकाज में भागीदारी बढ़ गयी थी।
 

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