Wednesday, February 27, 2008

हम यहीं, तुम यहीं, शराब यहीं

आलोक तोमर
तुम नहीं, गम नहीं, शराब नहीं, जसे खूबसूरत शेर की पैरोडी शीर्षक में करने के लिए माफ करें, लेकिन जिस दिन दिल्ली के अखबारों में खबर छपी थी कि स्कूल और कॉलेज जने वाले पांच दोस्त एक दस लाख रुपए की कार में एक पांच सितारा होटल से शराब पी कर लौट रहे थे और इंडिया गेट के पास भोर होने से कुछ ही पहले उनकी कार पहले एक पेड़ से टकराई और फिर उलट गई। नतीज था बीस साल की एक प्रतिभाशाली और सुंदर बेटी की लाश, उसके दोस्त की चिता और जीन के बड़े हिस्से के लिए अपाहिज हो गए बाकी नौजवान।

अगले ही दिन अखबार में जोर शोर से छपा था कि दिल्ली के पड़ोस में हॉंगकॉंग बनते ज रहे गुड़गां में अब बार २४ घंटे खुले रहेंगे। इसके बाद इस घोषणा के सगत में बड़े-बड़े अभिजत और सितारा किस्म के बुद्घिजीयिवों के बयान आए और कहा गया कि इससे जीन शैली सुधरेगी। दिल्ली में शराब एक तरह से जीनचर्या का स्वीकृत हिस्सा बन गई है और हर वीकेंड पर शराब की पार्टियां फॉर्म हाउसों से ले कर होटलों और घरों में होना एक सामाजिक रस्म बनती ज रही है।

जब से दिल्ली की यातायात पुलिस ने शराब पी कर कार चलाने वालों को चालान करने के साथ भारी जुर्माना भरने और सीधे जेल भेज देने की मुहिम शुरू की है, तब से अपना कारोबार बचाने के लिए बार मालिकों ने बाकायदा ड्राइर भर्ती कर लिए है या टैक्सी से्वाओं से अनुबंध कर लिया है, जो पी कर लड़खड़ाते हुए लोगों को सुरक्षित और निरापद उनके घर छोड़ कर आते हैं। दिल्ली और हरियाणा में अलग-अलग समय नशाबंदी के प्रयोग बड़े जोर-शोर से हुए हैं लेकिन होता यही रहा है कि गुड़गां और फरीदाबाद से पहले लोग दिल्ली में शराब खरीदने आते थे और बाद में जब दिल्ली में नशाबंदी लागू हुई तो यहां के लोग हरियाणा से जुगाड़ करके लौटने लगे। यह कहानी सिर्फ दिल्ली की नहीं है।

गुजरात में जहां महात्मा गांधी के प्रति आदर जताने के लिए सनातन नशाबंदी की गई है, उसकी सीमा पर भी महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश के इलाकों में शराब की शानदार हाटें लगती हैं और लोग लहराहते हुए गांधी की धरती में घुसते हैं। वैसे, गुजरात में नशाबंदी के बाजूद बाहर से आने ालों के लिए परमिट की प्रथा है और शराब की जो दुकानें हैं, वे देश के दूसरे हिस्सों की तुलना में लगभग पांच सितारा किस्म की हैं। दुकानों के बाहर एक दरोगा जी मेज-कुर्सी लगा कर बैठे रहते हैं और अपनी फीस ले कर परमिट काटते रहते हैं। बार में भी ड्रिंक्स का ऑर्डर लेने जो वेटर आता है, वह अपने साथ परमिट का फॉर्म ले कर आता है।

वैसे तो दिल्ली गालिब का शहर है, जिन्होंने बहुत पहले लिख दिया था कि मुफ़त की पीते थे मय और ये समङाते थे कि हम, रंग लाएगी हमारी फाका मस्ती एक दिन। गालिब के ये रंग उनकी जिंद्गी को पता नहीं कितना रंगीन कर पाए, लेकिन उनकी दिल्ली को आम तौर पर बदरंग करने की खबरें आती रहती हैं। कभी चार शराबी मिल कर एक पुलिसाले को पीट देते हैं, तो कभी नशे में लाल बत्ती लांघने की जल्दी में ट्रैफिक कॉंस्टेबल को उड़ा कर चले जते हैं। हाल मुंबई का भी अलग नहीं है। शराब मुंबई की सामाजिक अनिवार्यता बन चुकी है और अभी दो साल पहले तक यहां के बार शराब और बार बालाओं दोनों के लिए जने जते थे। बार बालाएं अब आधिकारिक रूप से नहीं हैं। लेकिन मुंबई शायद उन दुर्लभ शहरों में से एक है, जहां शराब की होम डिलीरी भी होती है।

ैसे शराब के शौकीनों की राजधानी भारत में अगर कहीं है तो गो है। काजू से बनी हुई हां की फैनी तो मशहूर है ही। इसके अला यह अकेला इलाका है, जहां मेडिकल स्टोर से ले कर दाल-चाल की दुकानों पर भी आधिकारिक रूप से शराब बिकती है। ह भी इतनी सस्ती कि लोग आते क्त हाई अड्डे के या रेल कर्मचारियों के जेब गर्म करके दो-दो दजर्न बोतलें ले आते हैं। अब तो स्कॉच भारत में ही बनने लगी है और भारत सरकार ने इसके आयात पर टैक्स भी बहुत कम कर दिया है। अभिजत पार्टियों में स्कॉच पानी की तरह बहती है और नतीजे में कभी हम जेसिका लाल की लाश देखते हैं, तो कभी रातों में बीच सड़क पर ठुकी हुई गाड़ियां। सरकारी राजस् के लिए शराब शायद इतनी भारी मजबूरी बन चुकी है कि सिर्फ नकली सतर्कता के अला अधिक-से-अधिक शराब खपाने पर सरकारें जोर देती हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि शराब पीना सस्थ्य के लिए हानिकारक है, जसे पत्रि संदेशों का जो प्रचार होर्डिंग और बोर्ड के जरिए किया जता है, उसका भुगतान भी शराब की कमाई से होता है।

शुरुआत के दिनों में भारत सरकार शराब की बिक्री को प्रोत्साहित नहीं करती थी और कई राज्यों में तो पूरी नशाबंदी कर दी गई थी। मगर इसके बाद सड़कें बनाने और बाकी किास के कामों के लिए पैसा कम पड़ने लगा तो नशाबंदी का बुखार उतर गया और ज्यादा से ज्यादा शराब की बिक्री पर जोर दिया जने लगा। इसी नर्ष की परू संध्या पर मुंबई में लगभग दो अरब रुपए की और दिल्ली में ७६ करोड़ रुपए की शराब बिकी थी। सरकार भी खुश और शराबी भी खुश। अब तो देश का कानून बनाने ालों ने दुनिया के सबसे बड़े शराब कारोबारियों में से एक जिय माल्या भी हैं, जो जहाज भी उड़ाते हैं और शराब भी बेचते हैं। उन्होंने अब दिेशी स्कॉच के कई ब्रांड भी खरीद लिए हैं और उनकी एयरलाइन का नाम तो है ही, उनकी प्रसिद्घ किंगफिशर बीयर के नाम पर।

घरेलू उड़ानों में पहले शराब नहीं परोसी जती थी। जब प्राइेट एयरलाइन का जमाना आया, तो प्रतियोगिता के दौर में यात्रियों को बीयर दी जने लगी। उस दौर में हालत यह होती थी कि इंसान जहाज में चढ़ता तो आराम से था, लेकिन उतरता लड़खड़ाते हुए था और उतरते ही हाई अड्डे के बाथरूम के बाहर कतार लग जती थी। बाद में सरकार ने ही यह प्रयोग बंद करा दिया।

अगर शास्त्रार्थ जसी कोई चीज शराब के मामले में हो तो एक पुराने शराबी के नाते अपने पास बहुत सारे तर्क हैं। पहला यह कि शराब शाकाहारी है, ेदों और शास्त्रों में सोमरस के नाम से उसका उल्लेख है, देता भी इसका सेन करते हैं और यह कि दो-चार पैग लगा लेने से कोई मर नहीं जता। इसके अला कहने ाले यह भी कहेंगे कि हम अपने पैसे की पीते हैं और किसी से मांगते नहीं हैं और जो लोग हर चीज में परोपकार खोजते हैं, उनका कहना होगा कि अगर सबने बंद कर दी तो शराब व्यापार में लगे लोगों का क्या होगा और जिन किसानों के गन्ने, जौ, अंगूर और काजू से शराब बनती है और े और उनके परिार भूखे मर जएंगे। उनको भूख से बचाने के लिए हमारा पीना जरूरी है। तर्क और कुतर्क के बीच सिर्फ दो पैग का फासला होता है।

फिर बहुत सारे लोग गिनाने लगेंगे कि नासा से ले कर दुनिया की बहुत सारी प्रयोगशालाओं की रपट बताती हैं कि जो लोग एक निश्चित मात्रा में नियमित शराब पीते हैं, उन्हें दिल का दौरा नहीं पड़ता या कैंसर नहीं होता या े लंबे समय तक जीते हैं। इन तर्कशास्त्रियों का एक ही जब उन्हीं के पक्ष में दिया जना चाहिए कि शराब लगातार पीने का एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि शराब पीने ाला कभी बूढ़ा नहीं होता। ह जनी में ही मर जता है। बहुत सारी दाइयां हैं, जिनमें अल्कोहल होता है और डॉक्टर साफ-साफ कहते हैं कि यह दाई लेने के बाद आप कम-से-कम कार मत चलाना। लेकिन हाल ही में आपने ह किस्सा सुना होगा कि एक नौजन बैंक अधिकारी घर में लड़खड़ाते हुए घुसता था और उसके मुंह से शराब की गंध भी नहीं आ रही होती थी। चिंतित पिता ने उसके पीछे जसूस लगाए तो पता चला कि यह युक दाई की दुकानों से कफ सीरप की दो शीशियां चालीस रुपए में खरीदता है और छह पैग का नशा करके घर पहुंचता है। जिन्हें पीना है, वे पीएंगे, जिन्हें जीना है, वे जिएगे। लेकिन जो चीज बहानों के पर्दे के पीछे छिपानी पड़ती है, उसमें अपने आप के नंगा हो जने का भय तो कहीं न कहीं होगा ही।

शराब की खपत में लगातार बढ़ोतरी

अपने देश में भले ही दो-तिहाई आबादी गरीबी की रेखा के आसपास रहती हो, लेकिन शराब की खपत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारत के उद्योग और वाणिज्य संगठन ऐसोचैम के अनुसार शराब की खपत हर साल बाईस फीसदी की दर से बढ़ रही है और आराम से कहा ज सकता है कि २0१0 तक यह खपत नब्बे लाख लीटर हो जएगी। एसोचैम के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत हैं, जो वीडियोकॉन टी्वी बनाते हैं, उनके एक अध्ययन के अनुसार हमारे देश में हर साल बीयर के पच्चीस करोड़ केस बिकते हैं और हर केस में एक दजर्न बोतलें होती हैं। इसके अला व्हिस्की के सात करोड़ बीस लाख केस भी लोगों का गला तर करते हैं। इसमें बोतलों की संख्या के लिए १२ का गुणा आप अपने आप कर लीजिए।

हमारे देश में हर एक हजर व्यक्तियों में से सिर्फ १८0 को दोनों क्त भरपेट खाना मिलता है। लेकिन शराब की खपत हर 200 लोगों में एक बोतल रोज की है। चूंकि खेल आंकड़ों का है इसीलिए इसमें भूखे-नंगे लोग शामिल नहीं हैं। रना यह औसत हर बोतल पर आठ का रह जएगा। आशादियों के अनुसार निराशा की खबर यह है कि २0१0 तक देश में तीस साल से कम उम्र के लोग पैंसठ करोड़ तक होंगे और ये ही शराब के सबसे बड़े उपभोक्ता होंगे। सरकार भी कमाएगी और शराब बनाने और बेचने वाले भी। आखिर दस लाख लीटर उत्पादन क्षमता की फैक्टरी स्थापित करने पर ज्यादा से ज्यादा डेढ़ करोड़ रुपए खर्चा आता है। इससे ज्यादा कीमत की तो कारें बड़े उद्योगपति खरीद लेते हैं।

चाय और इस्पात के बाद शराब के कारोबार में दुनिया पर कब्ज करने ाले जिय माल्या ने ब्रिटेन की एक शराब कंपनी व्हाइट एंड मैके को सा अरब डॉलर में खरीदा। तर्क यह था कि उनके पास व्हिस्की का कोई ब्रांड नहीं था, जो कमी अब पूरी हो गई है। ैसे भी माल्या की यू बी बीरीज कंपनी दुनिया में शराब बनाने ाली तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है और भारत व्हिस्की का दुनिया में सबसे बड़ा बाजर है। रही बात गरीबों की तो उनके लिए देसी शराब के ठेके हैं, जहां अंगूर, नारंगी, संतरा जसे रसीले नामों से सस्ती शराब बिकती है और जो यह भी नहीं खरीद सकते, वे अपने घरों में शराब बनाने की कोशिश करते हैं और साल में कम-से-कम दो-तीन बार तो ये खबरें आ ही जती हैं कि जहरीली शराब पीने से कितने लोग मारे गए। हमारे सस्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदौस को इन दिनों नैतिकता का दौरा पड़ा हुआ है और े सिगरेट और शराब दोनों पर फिल्मों से पाबंदी हटा देना चाहते हैं। उनसे एक ही साल किया ज सकता है कि सिगरेट पर तो वैधानिक चेतानी लिखी होती है कि इसे पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन बीड़ी के बंडलों पर ऐसी कोई चेतानी नहीं होती। क्या भारत सरकार मानती है कि गरीबी कम करने का एक उपाय यह भी है कि बीड़ी पीने वाले गरीबों को कैंसर हो जाए?

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