Sunday, February 10, 2008

नाराज हैं नक्सल आंदोलन के जनक

नई दिल्ली, फरवरी-माओवादी भले ही खुद को वैचारिक क्रांतिकारी मानते हैं और अपनी तुलना शहीद भगत सिंह जसी महान हस्तियों से भी करते हैं। लेकिन नक्सलाद को जन्म देने ाले कानू सन्याल को तो ‘नक्सलाद’ शब्द पर ही आपत्ति है।

अब ७६ साल के हो चुके कानू सन्याल नक्सलाद की जन्मभूति नक्सलबाड़ी में ही रहते हैं। चारू मजूमदार के साथ इस तथाकथित क्रांति को शुरू करने ाले कानू सन्याल को अपने इस आंदोलन का हश्र बहुत दुखी करता है और चिलित भी। सान्याल अपेक्षाकृत थोड़े उग्र होते हुए कहते हैं कि मुङो तो नक्सलाद शब्द पर ही गहरी आपत्ति है क्योंकि नक्सलबाड़ी से हमने भले ही आंदोलन शुरू किया हो, लेकिन उसका कोई वाद है तो ह है-मार्क्‍साद, लेनिनाद, माओत्सेतुंगाद। े साल करते हैं कि रूसी क्रांति को तो कोई रूसीवाद नहीं कहता?

कई नक्सलादी तो कानू सन्याल को अब अपनी राह से भटक जने ाला नक्सली प्रणोता भी घोषित करने पर तुले हुए हैं। लेकिन कानू सन्याल साफ कहते हैं कि मैं गांधी जी की अहिंसा को आज भी फरेब माना हूं और मेरी आस्था आज भी हथियारबंद आंदोलन में उतनी ही है। लेकिन मेरी शर्त सिर्फ इतनी सी है कि हथियार सिर्फ कुछ समूहों के पास होने की बजय आम जनता के हाथ में होने चाहिए।

२५ मई, १९६७ को पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से यह आंदोलन शुरू करने ाले कानू कहते हैं कि अपने समय में चाहे यह कितना भी रोमांचकारी क्यों न हो, वामपक्ष का यह भटका सैद्घांतिक और राजनैतिक रूप से हमें खत्म कर देता हैं। हथियारबंद क्रांति करने का दा करने वाले और मुङो संशोधनादी बताने वाले अपने असल में अपने अनुभों से कुछ सीखना ही नहीं चाहते। इन लोगों ने भम्र पाल लिया है कि े इतिहास लिख रहे हैं। लेकिन असलियत तो यह है कि े जनता से दूर हो कर क्रांति करने की असफल कोशिश कर रहे हैं।

कानू सान्याल नक्सलादियों से साल करते हैं कि अगर वे लोग जनता के अपने साथ होने का दा करते हैं तो उसी जनता को बंदूक के दम क्यों डराते-धमकाते हैं? वे भू-सुधार जसे आंदोलन क्यों नहीं करते? कानू सन्याल ने नक्सलादियों को चेतानी देते हुए कहा कि भय और आतंक पर टिका हुआ संगठन ज्यादा दिन तक नहीं चलता। डेटलाइन इंडिया

1 comment:

Sanjeet Tripathi said...

कानू सान्याल का नक्सलियों से किया जाने वाला सवाल सही है!!
छत्तीसगढ़ में हम आए दिन देखते हैं कि नक्सलियों के हाथों आम आदिवासी ही मारा जा रहा है जबकि कहा जाता है कि यह आंदोलन यहां आम आदिवासी के लिए ही है। क्या विरोधाभास है।