Tuesday, March 8, 2011

विदर्भ में किसानो का चूल्हा बंदी आंदोलन



अंबरीश कुमार
अमरावती, मार्च। विदर्भ के किसानों ने अब चूल बंद आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है। यह फैसला रविवार को यहां से 75 किलोमीटर दूर कारंजा तहसील के तरोड़ा गांव में किसानों की एक बैठक में किया गया। इस बैठक में करीब दर्जन भर गांव के किसान शामिल हुए थे। बैठक में इसके साथ ही खुदकुशी करने वाले किसानों की विधवा औरतों को एकजुट करने का भी फैसला किया गया। यह बैठक पूर्वांचल ग्रामीण विकास संस्थान (पीजीवीएस) और किसान मंच के साझा तौर पर बुलाी गई थी। गौरतलब है कि इन दोनों संगठनों ने विदर्भ के आधा दर्जन गांव में किसानों के हालात का सर्वे करने के बाद एक अध्ययन दल इन गांवों का मुआयना करने के लिए भेज रखा है। इस सर्वे के दायरे में विदर्भ के करीब आधा दर्जन जिले शामिल किए गए हैं। इन जिलों में अमरावती, अकोला, वासिम, वुलढ़ाना, वर्धा और यवतमाल शामिल है। किसानों की बैठक में बोलते हुए किसान मंच की महिला शाखा की संयोजक अरुना चापले ने कहा, ‘खुदकुशी से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। एक किसान खुदकुशी करता है तो पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ जाता है। जिसकी आमदनी का अंतिम जरिया भी खत्म हो जाता है। ऐसे में परिवार दर-दर की ठोकरें खाता है। विदर्भ के ग्यारह जिलों में हर साल करीब तीन हजार किसान खुदकुशी कर रहे हैं। जनवरी 2011 से अब तक करीब सात सौ किसान खुदकुशी कर चुके हैं। खुदकुशी करने वाले किसानों का सवाल उठ भी जाए पर उन विधवा औरतों का सवाल कोई नहीं उठाता जो बदहाली का शिकार हो अभिशप्त जीवन जी रही हैं। हम लोगों ने इन विधवा महिलाओं को संगठित कर विदर्भ के गांव में चूल बंद यानी चूल्हा बंदी आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है। जिसके तहत गांव में हफ्ते में एक बार चूल्हा नहीं जलेगा। इस चूल बंद आंदोलन की शुरुआत कारंजा तहसील के ग्यारह गांव से हो रही है।’
बैठक में कई किसानों ने अपनी बात रखी। वहीं तरोड़ा गांव के किसान विनायक विश्वनाथ मोहाड ने अपनी समस्या को लेकर चार दिन के भीतर खुदकुशी करने एलान कर सभी को हिला दिया। विनायक विश्वनाथ ने बताया कि उसके खेत के बीच से कच्ची नहर निकाल दी गई है जिसके चलते उसकी संतरे की खेती पूरी तरह चौपट हो गई है। इसको लेकर वह सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटता रहा ताकि नहर पक्की बन जाए तो खेत बच जाए। लेकिन उसकी नहीं सुनी गई और अब उसके सामने खुदकुशी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। इसके बाद बैठक में आए किसानों ने उसे समझाने की कोशिश की। इस बैठक में वे महिलाएं भी आई थीं जिनके पति या बेटे ने खुदकुशी कर ली थी। ऐसी ही एक पचास साल की महिला मुक्ता प्रभाकर ने आचल से आंसू पोछते हुए कहा, ‘मेरे बेटे विलास प्रभाकर ने दो साल पहले ही अपनी शादी के ठीक चार दिन पहले खुदकुशी कर ली थी। वह कर्ज में डूबा हुआ था। जिसके चलते उसने अपनी जान दे दी पर हमारी परेशानियों का कोई अंत नहीं हो रहा, कहां जाएं यह समझ नहीं आता।’ इस मौके पर किसान मंच के महासचिव प्रताप गोस्वामी ने कहा, ‘विदर्भ में किसानों की समस्याओं को सुलझो के लिए हमें संगठित होकर प्रयास करना होगा। आज त्रासदी यह है कि किसानों की बात न तो सरकार सुनती है और न कोई राजनैतिक दल इनकी सुध लेने आता है। विदर्भ में सिर्फ कपास किसान ही खुदकुशी नहीं कर रहे हैं, बल्कि अब सोयाबीन से लेकर संतरे के बागान लगाने वाले किसान भी खुदकुशी करने लगे हैं। यहां के किसान कर्ज में डूबे हैं और उन्हें केंद्र या राज्य सरकार की किसी भी कर्ज माफी योजना का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। प्रधानमंत्री का राहत पैकेज भी विदर्भ में नाकाम साबित हुआ है। उसकी मुख्य वजह यह है कि राहत का ज्यादातर पैसा नेताओ और सूदखोर महाजनों की जेब में जा रहा है। शर्मनाक घटना तो यह है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख को एक विधायक दिलीप सानंदा को बचाने का दोषी माना। ये वही सानंदा हैं जो किसानों को भारी ब्याज पर कर्ज देते रहे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में देशमुख पर दस लाख रुपए का जुर्माना लगाया जिसे महाराष्ट्र सरकार ने भरा भी। इस मामले से विदर्भ के हालात साफ हो जाते हैं। जिसमें नेता, सूदखोर महाजन और अफसरशाही का खेल सामने आ जाता है।’
उन्होंने आगे कहा कि पीजीवीएस की तरफ से जो सर्वेक्षण कराया गया है। उसका विश्लेषण किया जा रहा है। पर इसके फौरी नतीजे चौंकाने वाले हैं। जिससे पता चल रहा है कि दस हजार से लेकर पचास हजार रुपए तक के कर्ज में डूबा किसान भी खुदकुशी कर ले रहा है। अब इस सवाल को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने के लिए इस क्षेत्र के ग्यारह गांवों में हम आंदोलन छेड़ने जा रहे हैं। यह चूल बंद आंदोलन आगामी चौदह अप्रैल से जिन गांव में शुरू किया जाएगा उनके नाम हैं- बोरी, कन्नमवार, सारथखांडा, हेटीकुंडी, मूसी, जामिनी, सावड़ी खुर्द, तरोड़ा, थाणेगांव, सेल गांव और कारंजा शामिल है। इस मौके पर पीजीवीएस के निदेशक डाक्टर भानु ने बताया, ‘हमारे सर्वे से पता चला है कि विदर्भ के हालात काफी गंभीर हैं। सर्वे के साथ-साथ हमने दर्जन भर गांव का दौरा भी किया। हम कन्नमवार गांव भी गए जिसमें हफ्ते भर पहले एक किसान ने खुदकुशी कर ली थी। यह गांव महाराष्ट्र के दूसरे मुख्यमंत्री दादा साहब मारोत राव कन्नमवार के नाम पर बसाया गय था। तब यह हालत है कि सरकार ऐसे गांव के किसानों की भी सुध नहीं ली रही है। मरने वाले किसान रमेश राव सोनकुटार पर पचास हजार रुपए का कुल कर्ज था जिसमें बीस हजार रुपए को-आपरेटिव बैंक और तीस हजरा रुपए निजी महाजन का। आज हालत यह है कि खुदकुशी के बावजूद उस किसान को कोई मुआवजा इसलिए नहीं दिया जा रहा है क्योंकि उसके नाम कोई खेत नहीं था जो खेती-बारी वह करता वह उसके पिता के नाम पर है। ऐसे में प्रशासन उसे किसान मानने को भी तैयार नहीं है। यह एक उदाहरण है। जिससे विदर्भ के हालात का अंदाज लगाया जा सकता है। इस बारे में ब्योरेवार एक रिपोर्ट जल्द जारी की जाएगी।’
विदर्भ में किसानों की खुदकुशी का सिलसिला जारी है। कल यवतमाल जिले में खुदकुशी का प्रयास करने वाले एक किसान से जब इस संवाददाता ने यवतमाल जिले के संजीवन मल्टी स्पेशलिटी हास्पिटल में मिलने की कोशिश की तो उसके प्रबंध निदेशक सुनील अग्रवाल ने इजाजत देने से मना कर दिया। बाद में पता चला कि खुदकुशी की कोशिश करने के बावजूद प्रशासन ने इस मेडिको लीगल केस को एक निजी अस्पताल को रेफर कर दिया गया था ताकि यह मामला तूल न पकड़ पाए। शनिवार को राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण भी यवतमाल जिले में ही थे। जिसके चलते प्रशासन ने मामला दबाने के लिए यह काम किया।

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