Wednesday, January 26, 2011

रिहंद बांध के प्रदूषित पानी से पिछले तीस दिन में पंद्रह बच्चों की मौत

अंबरीश कुमार
लखनऊ जनवरी । रिहंद बांध के प्रदूषित पानी से पिछले तीस दिन में पंद्रह बच्चों की मौत हो चुकी है । सोनभद्र जिले के म्योरपुर ब्लाक का बेलहत्थी ग्रामसभा के रजनी टोला में रिहंद बांध के जहरीले पानी को पीने से बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। आज इन पंद्रह बच्चों की सूची के साथ मानवाधिकार आयोग को पत्र भेज कर फ़ौरन दखल देने की मांग की गई । साल ,साखू ,आम और बेर जैसे पेड़ों के जंगल से घिरे इस गांव तक कोई सड़क नही जाती और न ही इस गांव में कोई स्कूल या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आदि है । पीने के पानी के लिए रिहंद बांध से निकला एक नाला गांव तक आता है जिसका पानी पीकर लोग बीमार पद रहे है । दो हफ्ते पहले इस गाँव का पांच साल का बबलू जब रिहंद का जहरीला पानी पीकर गंभीर रूप से बीमार हुआ तो रेणुकूट में विनोद राय के नर्सिंग होम वालों ने दस हजार रुपए मांगे पर पैसा न होने पर बबलू को बिड़ला समूह के हिंडाल्को के अस्पताल ले जाया गया पर पैसे के मामले यहाँ भी रियायत नही मिली तो उस म्योरपुर के सरकारी अस्पताल ले जाने का फैसला किया गया पर बबलू अस्पताल नही पहुँच पाया और रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया । यह जानकारी इस बच्चे के साथ गए रजनी टोला के रमेश खरवार ने जनसत्ता को दी । इस पूरे मामले में जन संघर्ष मोर्चा के एक तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने गांव का दौरा करने के बाद अपनी रपट जारी की जिसके आधार पर मोर्चा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पूरी जानकारी देते हुए दखल देने मांग की है ।
गौरतलब है कि इसी ब्लाक के कमरीड़ाड, लभरी और गाढ़ा गाँव में नवंबर २००९ में में दो दर्जन से ज्यादा बच्चे रिहन्द बांध का पानी पीने से मर चुके है। जिसकी खबर जनसत्ता में छपने के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया और इन गांवों में साफ़ पानी के इंतजाम किए गए । अब वही सब दूसरे गाँवो में दोहराया जा रहा है । इस संवाददाता ने कुछ समय पहले रिहंद बांध का दौरा करते समय यह देखा था कि किस तरह बिजली घर और अन्य उद्योग का कचरा सीधे बांध के पानी में बहाया जा रहा है । पर प्रशासन ने इसे रोकने के लिए कोई कदम नही उठाए । जिले के सीएमओ पीके कुरील का एक ही जवाब है कि गांव वालों को पानी ना पीने का सुझाव दिया जाता रहा है । पर इसका जवाब किसी के पास नही है कि जिस गांव में कुआँ या हैंड पंप न हो वे पानी के परम्परागत साधन यानी नदी नाले के अलावा कहाँ जाए ।
इस बीच जन संघर्ष मोर्चा ने आज म्योरपुर ब्लाक के ग्रामसभा बेलहत्थी के रजनी टोला में जहरीला पानी पीने से मरने वाले बच्चों की सूची भी जारी की । जो इस तरह है -1.रामधारी पुत्र बलजोर उम्र 1 वर्ष, 2.राम किशुन पुत्र वंषबहादुर उम्र 1 वर्ष, 3.सुनीता कुमारी पुत्री छबिलाल उम्र 6 वर्ष, 4.बबलू पुत्र शिवचरन उम्र 1 वर्ष, 5.मानकुवंर पुत्री ब्रजमोहन उम्र 8 वर्ष, 6.सन्तोष कुमार पुत्र शंकर उम्र 1 वर्ष, 7.सविता कुमारी पुत्री जीत सिंह खरवार उम्र 3 वर्ष, 8.बबलू सिंह पुत्र जवाहिर सिह खरवार उम्र 2 वर्ष, 9.चादंनी कुमारी पुत्री राजेन्द्र उम्र 3 वर्ष, 10.मुनिया कुमारी पुत्री रामचरन उम्र 3 वर्ष, 11.कुन्ती कुमारी पुत्री हिरालाल उम्र 2 वर्ष, 12.लल्ला पुत्र देवनारायण उम्र 6 वर्ष, 13.मुन्ना कुमार पुत्र सुभाष उम्र 2 वर्ष, 14.जितराम पुत्र अशोक उम्र 2 वर्ष,और .बबिता कुमारी पुत्री रमाशंकर उम्र 5 वर्ष ।
मोर्चा के प्रवक्ता दिनकर कपूर ने कहा - पिछली बार मोर्चा के पत्र को संज्ञान में लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने लेकर जिलाधिकारी सोनभद्र को निर्देषित भी किया था और उनसे रिर्पोट भी तलब की थी बावजूद इसके जिला प्रशासन का रवैया संवेदनहीन ही बना रहा है। यहां तक कि आंदोलन के दबाब में प्रदूषण बोर्ड और मुख्य चिकित्सा अधिकारी की जांच से यह प्रमाणित होने के बाद भी कि रिहन्द बांध का पानी जहरीता है सरकार और जिला प्रशासन ने जहरीला कचरा डालने वाली औद्योगिक इकाईयों के विरूद्ध कोई कार्यवाही नही की और न ही रिहंद बांध के आस पास बसे गांवों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की गई । यदि इस पर समय रहते जिला अधिकारी सोनभद्र ने कार्यवाही की होती तो बेलहत्थी में बच्चों को मरने से बचाया जा सकता था।
उन्होंने आगे कहा कि शुद्ध पेयजल देने में सरकार नाकाम रही है। आज भी लोग बरसाती नालों और बंधों का पानी पीने को मजबूर है और इससे विभिन्न बीमारियों का षिकार होकर बेमौत मर रहे है। अभी से ही इस पूरे क्षेत्र में पेयजल का संकट दिख रहा है। दुद्धी तहसील के तो गांवों में हैंड पंप जबाब दे रहे है और कुएं सूख रहे है। स्थिति इतनी बुरी है कि पानी के अभाव किसानों की फसल पिछले चार वर्षो से बरबाद हो रही है और इससे पैदा हुई आर्थिक तंगी की वजह से यहां के आदिवासी गेठी कंदा खाने को मजबूर है, जो की जहरीला है। वही दूसरी तरफ जनपद में प्राकृतिक सम्पदा और राष्ट्रीय सम्पदा की चौतरफा लूट हो रही है। सोन नदी को बंधक बना लिया गया है और अभ्यारण्य क्षेत्र में जहां तेज आवाज निकालना भी मना है वहां खुलेआम ब्लास्टिंग करायी जा रही है।
jansatta

Sunday, January 16, 2011

लास वेगास को मात देता लखनऊ




लखनऊ , जनवरी । अमेरिका के लॉस वेगास को भी अब मात देने लगा है नवाबों का शहर लखनऊ । यह टिप्पणी शनिवार की देर रात गोमती नगर के बाबा साहब भीमराव आंबेडकर स्मारक स्थल से हजरतगंज का दौरा करने के बाद अमेरिका से आई प्रोफ़ेसर अंजुला सक्सेना ने की । वे बदले हुए लखनऊ को देखकर हैरान थी। शनिवार को मुख्यमंत्री मायावती का जन्मदिन था और शाम ढलते ही लखनऊ की फिजां बदल चुकी थी । कल से ही हजरत गंज काफी समय बाद पूरी तरह आम लोगों के लिए खुला । यहाँ सुन्दरीकरण का काम चल रहा था । मूर्तियों ,पार्कों और स्मारकों के लिए लगातार राजनैतिक दलों के निशाने पर रही मायावती के समर्थन में शहर का आभिजात्य वर्ग खड़ा हो गया है । चाहे दो सौ वर्ष पुराने हजरत गंज का कायाकल्प हो या फिर गोमती नगर में आंबेडकर स्मारक स्थल के आसपास का नजारा हो , कल रात की नीली रौशनी के बाद शहर का यह इलाका यह देश के सभी खूबसूरत स्मारकों और पर्यटक स्थलों को मात देने लगा है । इसके सामने दिल्ली में २६ जनवरी को होने वाली रौशनी भी फीकी मानी जा रही है। अंबेडकर स्मारक से हजरत गंज की तरफ आगे बढ़ने पर लगेगा ही नहीं की यह अपने देश का हिस्सा है । यहाँ के खूबसूरत फौव्वारे ,नीली झालरें, नीली रोशनी बिखेरते बिजली के दिए ,शाही पुल और चमकती हुई सड़के मुंबई के मैरीन ड्राइव के क्वींस नेकलेस से ज्यादा खूबसूरत नजर आते है ।
कभी लखनऊ विश्विद्यालय में रीडर रही अंजुला सक्सेना अमेरिका में बस गई है पर इस बार अपने घर लौटी तो शहर देखकर कहा - रौशनी का जादू तो लॉस वेगास में नजर आता है पर यहाँ की रौशनी ,भव्यता और सफाई लॉस वेगास को मात देने वाली है । हालांकि यह नजारा शहर के एक हिस्से में ही नजर आता है आईटी कालेज से आगे अलीगंज की तरफ बढ़ते ही लगा कि कहीं गाँव में तो नही आ गए । पर वाकई गोमती नगर से हजरत गंज तक का इलाका पर्यटकों के लिए आकर्षण का नया केंद्र बन गया है । ' हजरतगंज की रंगत वाकई बदल गई है । शनिवार को मायावती के जन्मदिन के बाद से ही सैलानियों की भीड़ इस इलाके में बढ़ती जा रही है । पहले जहाँ लखनऊ आने वालों के लिए बड़ा इमामबाडा,भूलभुलैय्या ,छोटा इमामबाडा ,रेजीडेंसी ,शहीद स्मारक , चिड़िया घर जैसे पर्यटक स्थल होते थे तो अब इसमे दलित महापुरुषों के स्मारक के साथ ब्रिटिश राज का हजरत गंज भी शामिल हो गया है ।
हजरतगंज के सुंदरीकरण ने इसकी रंगत निखार दी है। खूबसूरत रंगीन रोशनी वाले फव्वारों के बीच हजरतगंज ने मानो ब्रिटिश शानो शौकत की याद ताज़ा कर दी है। चमचमाते फुटपाथ,जगमगाते विक्टोरियन लैंप, गंज की छटा बढ़ा रहे है। पूरे गंज में कई चीज़े एक सलीके व तरीके से सजाईगई है। जैसे एक रंग की बिल्डिंगे, एक जैसे साइन बोल्ड, नए स्टाइल का पुलिस बूथ व छोटा सा खुला रंगमंच। कई जगह आकर्षक बेंचे लगाई गई है। इन सबको देखकर लगता है कि शानों-शौकत के साथ बन-ठन कर 200 साल पुराना हजरतगंज और भी खूबसूरत और जवां हो गया है। चलिए हम गंज की खूबसूरती में चार चांदलगाने वाले कुछ चीज़ों के बारे में जान लें।
जगमगाते विक्टोरियन लैंपपोस्ट- सड़कों के दोनों तरफ डीएम आवास से हजरतगंज चौराहे तक जगमगाते विक्टोरियन लैंपपोस्ट लगाए गए है। कास्ट आयरन के बने इन डिजायनर लैंप पोस्ट मेंदो बड़ी लाइटें लगी है। चौराहे से लेकर डीएम आवास तक 141 लैंपपोस्ट लग चुके है। ये लैंप पोस्ट कोलकाता से मंगाए गए है। इनकी रोशनी में गंज शाम होते ही जगमगा उठता है। अस्सी के दशक का लव लेन फिर गुलजार हो गया है । उस दौर में मैफेयर फिल्म हाल , ब्रिटिश लाइब्रेरी और काफी हाउस जैसी जगहों पर शाम होते ही भीड़ हो जाती थी । लखनऊ विश्विद्यालय के छात्रावासों से छात्र और छात्राए हजरतगंज के लव लेन में नजर आते थे । पर बाद में हजरतगंज पर पटरी दुकानदारों से लेकर चाट खोमचे वालों का कब्ज़ा बढ़ा और बेतरतीब निर्माण ने इसका चेहरा पूरी तरह बिगाड दिया । मायावती सरकार ने एक बड़ा काम हजरतगंज को फिर पुराने दिनों में पहुँचाने का क्या है । अब गंज में
खूबसूरत निराले गोल बेंच- खूबसूरत कास्ट आयरन की पांच गोलाई वाली बेंच भी है । इन बेंचों को कपूर, सैमसंग प्लाज़ा व रायल कैफे रेस्टोरेंट के ठीक सामने लगाया गया है। प्रत्येक बेंचपर आठ आदमी बैठ सकते है। चार चौकोर व हाफ राउंड बेंच साहू के सामने लगी है। जिसमे ऊपर का हिस्सालकड़ी का व ऊपर का कास्ट आयरन का है। गंज में फुटपाथ पर लगी बेंचों पर बैठ कर इसकी खूबसूरती का आनंद उठाया जा सकता है। इनको गाढ़े हरे व काले रंगों से रंगा गया है। कुल 97 बेंचे लगी है जिनमे कपूर होटल कीतरफ 50 व साहू सिनेमा की तरफ 47 बेंचे लगी है। इन्ही बेंच पर बैठे बुजुर्ग उज्जवल बनर्जी ने कहा - मै तीस साल बाद लखनऊ आया हूँ और इस हजरत गंज को देखकर हैरान हूँ । वाकई यह शहर बदल गया है और बहुत ही खूबसूरत लग रहा है । बहुत सी सरकारे आई पर किसी ने शहर की खूबसूरती पर ध्यान नही दिया ।
इसके साथ ही हजरत गंज में चार फव्वारे लगाए गए है। शाम होते ही रंग बिरंगी लाईटों के साथ सजे फव्वारे किसी को भी सम्मोहित कर सकते है। इनमे से कपूर होटल, साहू, रुपानी ब्रदर्स, पुरानी कोतवाली व हलवासिया के पास मार्क्समैन रेस्टोरेंट के सामने लगा है। ये फव्वारे मानो गंज की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे है। हजरत गंज में अब दूकानों के बाहर लगे साइन बोर्ड एक रंग में दिखने लगे है। काले रंग के बेस पर सफ़ेद रंग में लिखे साइन बोर्ड हर दूकान एक सी पहचान दे रहे है। इसी तरह रात में रौशनी से सजे दलित महापुरुषों के स्मारक देखते ही बनते थे । अगर इन स्मारकों में पत्थरों के साथ हरियाली पर भी जोर दिया जाता तो यक़ीनन यह विशव के मशहूर पर्यटक स्थलों को पीछे छोड़ देते ।
साभार -जनसत्ता
फोटो - विशाल श्रीवास्तव

Friday, January 14, 2011

धसक रहें है टिहरी के गाँव




सविता वर्मा
नई टिहरी। इस बार उतरांचल में हुई जोरदार बारिश ने जो तबाही मचाई वह सामने आ चुकी है पर जो तबाही आने वाली उसका किसी को अंदाजा नही है । भगीरथी - भिलांगना नदी पर बने टिहरी बांध की वजह से बनी झील के आसपास के गाँव धसकने लगे है । इनकी संख्या एक दो नही बल्कि दर्जनों है । बांध बनने से विस्थापित होने वाले लोगों का सवाल उठाने वाले संगठन ऐसे गांवों की संख्या ७५ मानते है । टिहरी बांध के आसपास बसे करीब आधा दर्जन गांवों का दौरा करने पर नजर आया कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है । गाँव तो गाँव वह सड़क नई टिहरी से छाम को जाती हुई गाँव सैकड़ों गाँवो जोडती है वह सड़क भी धसक रही है । नई टिहरी से छाम का रास्ता कच्चा ,संकरा और खतरनाक है । जगह जगह मलबा सड़क पर दिखाई पड़ता है । कुछ किलोमीटर चलने के बाद मरोड़ा गाँव आता ।
मरोड़ा में ही टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन करने वाले सुंदरलाल बहुगुणा का पुराना घर खंडहर जैसा दीखता है तो गाँव के लोग किसी भी हादसे से भयभीत है ।ललिता प्रसाद डोभाल ने कहा , " एक दिन और बारिश हो जाती तो दर्जनों गाँव टिहरी बांध की झील में समा जाते । यह देखिए सड़क धंस गई है और दरार यहाँ से लेकर करीब एक फर्लांग दूर बसे गाँव तक जा चुकी है । कई घरों पर दरार आ गई है । पर यह सब न तो सरकार को दिखता है और न बांध बनाने वाली कंपनी टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन को । " डोभाल जिस जगह को दिखा रहे थे वह झील से करीब सौ फुट ऊपर थी और सड़क के किनारे दरार कई जगह आधा फुट चौड़ी थी । कुछ जगह दरार पर ताजा मिट्टी पड़ी हुई थी जो सड़क ठीक करने वालों ने डाल रखी थी । बरसात में भगीरथी नदी पर बने टिहरी बांध की झील का पानी ८३२ फुट तक पहुँच गया था और दर्जनों गांवों को खाली करना पड़ा था । कई गाँव तो ८३५ फुट पर बसे हुए है । इन गांवों में रहने वालों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है । फिर जो सड़क इन गांवों को नई टिहरी से जोडती है ज्यादा बारिश होने के बाद उस पर कोई भी वाहन नही चल सकता है । कुछ गांवों तक हम लोग भी नही जा सके क्योकि कार का जाना संभव नही था । यह हाल तब था जब कई दिनों से बारिश नही हुई और मौसम ठीक था । पर इस सड़क पर कई बार लगता की अब गिरे तो तब गिरे । उप्पू गाँव तक पहुँचते पहुँचते टिहरी बांध से बनी झील के किनारे लगे पहाड़ पर बसे गांवों में रहने वालों की त्रासदी समझ में आ जाती है । कई गाँव झील में समा चुके है तो कई गाँव झील में समाने वाले है । नाकोट गाँव में बड़ा पुल बन रहा है जो झील के उसपर बसे लोगों को इधर आने का रास्ता देगा । फिलहाल वे मोटर बोट से आते जाते है । नाकोट गाँव के गजेंद्र रावत ने उस पर बसे गांवों की व्यथा सुनाते हुए कहा - बांध बनाने से पहले ये लोग पुरानी टिहरी के पुल से पंद्रह बीस मिनट में नई टिहरी वाली सड़क पर आ जाते थे पर अब सड़क के जरिए आने जाने में कई घंटे लग जाते है । पर समस्या यही ख़त्म नही होती । खेत झील के पानी में समा चुका है और गाँव पर खतरा मंडरा रहा है । जब लगातार बरसात हुई तो लोगों की रातों की नींद हराम हो गई । कब कौन सा घर झील में गिर जाए यह पता नहीं था । सामने देखिए गाँव के जो घर है उनके ठीक नीचे से पहाड़ धसक कर झील में जा चुका है । ऐसे गाँव ७० से ज्यादा है जिनपर खतरा मंडरा रहा है । '
टिहरी बांध के विनास का यह नया आयाम है जिसपर किसी का ध्यान नही गया है । जिस तरह जमीन धसक रही है उससे देर सबेर दर्जनों गाँव झील में समा जाएंगे। बड़े बांधों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले माटू संगठन का मानना है कि इस क्षेत्र में ७५ गांवों पर खतरा मंडरा रहा है और इस सिलसिले में जल्द कोई पहल नही हुई तो अगली बारिश में हालत गंभीर होंगे ।
छाम गाँव के रहने वाले पूरण सिंह राणा बांध की वजह से भूस्खलन और विस्थापित हुए लोगों का सवाल उठाते है और अब खुद भी विस्थापितों के लिए हरिद्वार में बसाए गाँव में रहते है क्योकि उनका घर नही बचा । बाद में दूसरे भाइयों ने और ऊँचाई पर घर बनाया जहाँ वे जाते रहते है । राणा ने बताया , ' कुछ समय पहले माटू जन संगठन ने नई टिहरी, उत्तराखंड में ‘‘टिहरी बांध से नई डूब?’’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें टिहरी बांध की डूब के विभिन्न आयामों पर चर्चा की गयी। पिछले दिनों टिहरी बांध जलाशय को भरने की जो प्रक्रिया की गई उसके असरों पर माटू जनसंगठन की ओर से नागेन्द्र जगूड़ी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें बताया गया कि 75 गांवों छोटे-बडे पर भूस्खलन, धंसाव, भूमि कटान के असर और उनके झील में आने का खतरा है । इसके आलावा दिचली-गमरी पट्टी में 40 गांवों रास्ते बंद होने से खाद्यान्न का संकट पैदा हो गया है । ढूंगमंदार पट्टी के 27 गांवों के रास्ते बंद हुए तो धारमंडल क्षेत्र के रास्ते डूबे। चम्बा-धरासू मार्ग भी धंसा ।रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि स्यांसू, नगुण, जलकुर आदि नदियों मे गाद रूकने से डेल्टा बने है। पूरण सिंह राणा नई टिहरी से आगे उप्पू गाँव तक झील के किनारे बसे गांवों को दिखाते है । इन गाँव में बसे लोगों से बात होती है तो उनकी दिक्कतों का भी पता चलता है । यहाँ की समूची आबादी भयभीत नजर आती है । फिलहाल बरसात का खतरा टल गया है पर भारी बारिश और झील के चलते भूस्खलन जारी है । दूसरी तरफ पहाड़ों का धसकना भी जारी है । ऐसे में हर किसी को हमेशा हादसे की आशंका बनी रहती है । करीब पंद्रह किलोमीटर कच्चे रस्ते पर चलने के बाद हमें मजबूर होकर वापस लौटना पड़ा क्योकि कई जगह कार की चेसिस पत्थरों से रगड़ खाने लगी थी और आसपास न कोई मेकेनिक मिलता न कोई गैराज । रास्ते के नीचे भुरभुरी मिटटी और भी झील नजर आती । न कोई बड़ा दरख्त और न ही आम पेड़ पौधे नजर आए । अगर इन कच्ची पहाड़ियों पर बांध परियोजना शुरू करते ही वृक्षारोपण भी किया जाता तो शायद यह रास्ता इतना खतरनाक न होता और गाँव वालो को भी भूस्खलन की समस्या का ज्यादा सामना करना पड़ता ।
इससे पहले पिछले डेढ़ दशक में बने देश में विस्थापितों के सबसे बड़े शहर यानी नई टिहरी से गुजरे तो जगह जगह सड़क के किनारे मलबे का ढेर भी मिला जो इस बार की जोरदार बारिश के बाद भूस्खलन से नीचे आया था । हालाँकि नई टिहरी को उतरांचल का सबसे नियोजित शहर कहा जाता है । पर इस शहर के बाशिंदे एक दशक बाद भी शहरी सुविधाओं के लिए आंदोलनरत नजर आते है । महिपाल सिंह नेगी अखबार की नौकरी छोड़कर आंदोलन से जुड़ गए है और टिहरी बांध के खतरे पर लिखते रहते है । नेगी ने जियालाजिकल सर्वे आफ इंडिया की रपट का हवाला देते हुए कहा -भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण ने सन् 2002 में एक अध्ययन के बाद चेतावनी दी थी कि इस इलाके में जल स्तर बढ़ने से ढलानों पर दबाव और अस्थिरता में बढ़ोतरी हो सकती है। ख़ास बात यह है कि जीएसआई ने टिहरी बांध के समूचे इलाके में व्यापक अध्ययन पर जोर दिया था और झील बनने के बाद जल भराव से इन कच्ची पहाड़ियों में ज्यादा भूस्खलन की आशंका जताई थी । पर इस सिलसिले में न तो कोई ठोस पहल हुई और न ही जियालाजिकल सर्वे आफ इंडिया की रपट सार्वजनिक की गई ताकि उस पर आम बहस हो पाती । अब उसके खतरे सामने है । झील बनने के बाद जल भराव से गाँव के गाँव भूस्खलन के दायरे में आ रहे है । पिछले दिनों जब लगातार बारिश हुई तो उप्पू ,नाकोट और रौलाकोट गाँव खाली करा लिए गए । उस समय करीब तीन हजार लोग प्रभावित हुए थे । जो गाँव ऊपर बसे थे ,उन गांवों में रहने वालों की नींद हराम हो गई थी । उप्पू गाँव से पहले ही रामसिंह तोपवाल से बात हुई तो उनका कहना था - ऊपर देखिए , हम लोग वही रहते है । जब झील में पानी बढ़ने लगा तो सबकी नींद हराम हो गई । कही पहाड़ न धसक जाए यह खतरा मंडरा रहा था । एक तरफ ऊपर से मनो बदल फट गया हो और नीचे भागीरथी की झील का पानी चढ़ रहा था । भारी बारिश से रास्ता अलग बंद हो गया था । इधर के सभी गाँव कट गए थे । ऐसे में हमारी क्या हालत होगी आप अंदाजा लगा सकते है । यह सारे पहाड़ कच्चे है ,फिर भी इतना बड़ा बांध बनाक़र सबको को खतरे में डाल दिया गया है ।
कई गांवों का दौरा करने और लोगों से बात चीत करने से कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिली जिसे यहाँ के जन संगठन लगातार उठा भी रहे है । टिहरी बांध से बनी झील
झील का जल स्तर बढ़ने और बाद में जल स्तर घटने के कारण 26 गांवों में नियमित भूस्खलन होने के कारण वे अस्थिर हो गए है हैं। बांध में पानी का स्तर बढ़ने के कारण भागीरथी नदीघाटी में तीन गांवों रौलाकोट, नाकोट, स्यांसु के डूबने की आशंका है।यह गाँव पहले भी जोखम वाले गाँव माने जाते थे । रीम सर्वे लाइन और बांध में पानी का स्तर बढ़ने का कारण, पहले शिनाख्त किए प्रभावित परिवारों के अलावा, 45 गांवों में करीब डेढ़ सौ परिवार फिर प्रभावित होंगे । जमीन धसकने से मरोड़ गाँव और आसपास की जगह कभी भी झील में समा सकती है । गाँव वालों की मांग थी कि जियालाजिकल सर्वे आफ इंडिया को फ़ौरन इस इलाके का सर्वे क़र नए खतरे का आकलन करना चाहिए । वर्ना कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है ।
वैसे भी झील के दूसरी तरफ बसे गाँव के लोग अपने को मुख्यधारा से कटा हुआ मानते है । मोटरबोट से झील के उसपार से नई टिहरी में कालोनी के पास उतरे विजय सेमवाल ने कहा - दो घंटे पहले घर से चले है , कब अस्पताल पहुचेंगे पता नही । अगर मौसम ख़राब हो जाए तो उस पार गांवों में रहने वाले लोग भगवान के भरोसे होते है । बांध बनने के बाद से बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और कई नई तरह की समस्याए भी सामने आई । गाँव के गाँव भागीरथी नदी की झील में समा गए और एक बड़ी आबादी को अपनी जड़ों से कटना पड़ा । घर छूटा , खेती बारी चली गई और नए ठिकाने के लिए भटकना पड़ा । पर दो दशक बाद भी यह सिलसिला जारी है । अब झील के आसपास के गाँवो पर खतरा मंडरा रहा है तो कई परिवार फिर विस्थापन के रास्ते पर है । पर जो शहर में बस गए है वे भी कम परेशान नही है । नई टिहरी के मुख्य बाजार में तम्बू ताने लोग आंदोलन क़र रहे है । कड़ाके की इस ठंड में रजाई ओढ़ क़र वे आमरण अनशन पर बैठे है । ये वो लोग है जिन्हें नई टिहरी में बसाया गया था । विस्थापितों और सीढियों के इस शहर में विस्थापित ज्यादा है या सीढियाँ आप अंदाजा नही लगा सकते । पर शहर का मिजाज तो बिगड़ा हुआ है । खतरा इस शहर पर भी मंडरा रहा है । शहर में जगह जगह मलबे के ढेर और भूस्खलन इसका साफ़ संकेत देते है ।
माटू संगठन के सर्वेसर्वा विमल भाई इन सब सवालों को लेकर टीएचडीसी व राज्य सरकार दोनों को जिम्मेदार मानते है । पुनर्वास के सवाल पर उन्होंने कहा - सर्वोच्च न्यायालय के फरवरी 2006 के आदेश में 840 मीटर पर पुनर्वास करने का निर्देश था लेकिन केन्द्र व राज्य सरकारों ने 835 मीटर तक पुनर्वास करना है ऐसा शपथ पत्र देकर पूर्ण डूब में कम व आंशिक डूब में ज्यादा गांव दिखा दिए । यह एक साजिश थी जिसके तहत कोर्ट को बताने की कोशिश की गई कि पुनर्वास का काम पूरा दिया गया है। इस तरह से बांध की लागत भी कम दिखा दी गई। माटू जन संगठन ने 28 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद ही कहा था कि टीएचडीसी ने यह डूब लाकर आपराधिक कृत्य किया है। 17 सितम्बर को दिये गये सुप्रीम कोर्ट के आदेश से साफ जाहिर है कि टीएचडीसी व राज्य सरकार दोनों आपस में ना कोई समझ बनाये हैं और न ही दोनों में कोई तालमेल है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2007 से लगातार पुनर्वास पर अंतरिम आदेश दिये है। जिन पर ही गंभीर नहीं रहे और इसका खामियाजा विस्थापितों को भुगतना पड़ा है।
साभार -disaster management and development पत्रिका से

Sunday, January 2, 2011

जेपी के सिपाही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नई मुहिम छेड़ेंगे


अंबरीश कुमार
लखनऊ , जनवरी । जयप्रकाश आंदोलन के सिपाही अब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हिंदी भाषी राज्यों में नई मुहिम छेड़ेंगे । यह फैसला आज यहाँ जयप्रकाश नारायण की बनाई छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के पुराने कार्यकर्ताओं के सम्मलेन में हुआ । इसके साथ ही सम्मलेन में नए राजनैतिक मंच राष्ट्रीय संघर्ष वाहिनी मंच के गठन का एलान भी किया गया जो तीन महीने में उत्तर भारत के सौ जिलों में संगठनात्मक ढांचा तैयार करेगा और नई राजनैतिक पहल करेगा । राजनैतिक मंच की वैचारिक नीव पिछले वर्ष मई में वाहिनी मित्र मिलन के नैनीताल शिविर में रखी गई थी । ३१ दिसंबर से शुरू हुआ यह सम्मलेन आज समाप्त हो गया जिसमे पांच राज्यों के जयप्रकाश आंदोलन के कार्यकर्त्ता जुटे थे । इनमे ओड़िसा के नियमगिरि आंदोलन का नेतृत्व करने वाले से लेकर बिहार के बोधगया आंदोलन के कार्यकर्त्ता तक शामिल थे । सम्मलेन का अंतिम सत्र जयप्रकाश नारायण के सहयोगी शोभाकांत दास के संदेश के साथ समाप्त हुआ जो उन्होंने चेन्नई से फोन के जरिए कार्यकर्ताओं को दिया । स्वास्थ्य वजहों से इस सम्मलेन में शोभाकांत दास नही आ पाए । सम्मलेन में उत्तर प्रदेश , दिल्ली , बिहार , ओड़िसा , महाराष्ट्र ,झारखंड और ओड़िसा जैसे राज्यों से कार्यकर्त्ता पहुंचे थे ।
सम्मलेन में नए मंच राष्ट्रीय संघर्ष वाहिनी के विधिवत गठन के लिए तैयारी समिति बनाई गई है जिसके संयोजक राजीव बनाए गए तो सह संयोजक बिहार के पंकज और झारखंड के घनश्याम बनाए गए । जबकि राष्ट्रीय समिति में बिहार के कारू ,प्रकाश नारायण ,रमन कुमार , महाराष्ट्र से ज्ञानेंद्र ,शेखर सुनालकर ,दिल्ली से तारा ,पुतुल ,ओड़िसा से किशोर ,सिद्धार्थ और उत्तर प्रदेश से राकेश रफीक , ओम प्रकाश अरुण शामिल किये गए है । नया मंच का आधार पचास से सौ जिलो तक तैयार कर तीन महीने में सौ कार्यकर्ताओं की टीम तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है । बिहार के मुज्जफरपुर में अगली बैठक में आगे की रणनीति पर चर्चा होगी । गौरतलब है कि वाहिनी के पुराने कार्यकर्त्ता काफी समय से राजनैतिक मंच के गठन पर चर्चा कर रहे थे । चेन्नई में दो साल पहले हुए वाहिनी के सम्मलेन के बाद यह अभियान आगे बढ़ा और नैनीताल शिविर में सैधांतिक रूप से इसपर आम सहमती बन गई थी । लखनऊ के सम्मलेन में इसे मूर्त रूप देते हुए नए मंच का एलान कर दिया गया ।
बोधगया आंदोलन के कार्यकर्त्ता महात्मा भाई ने कहा - नया मंच राजनैतिक मंच होगा पर यह राजनैतिक दल नही है । इस मंच से कोई चुनाव भी नही लडेगा पर राजनैतिक दल के लोग इसमे शामिल हो सकते है । इस सम्मलेन में बिहार में जनता दल (यु) के विधायक सुरेश अंचल भी शामिल हुए क्योकि वे वाहिनी से ही निकले है । दूसरी तरफ कालाहांडी के सांसद भक्तचरण दास भी शामिल होने वाले थे पर अंतिम दौर में उनका कार्यक्रम रद्द हो गया । भक्त चरण दास नैनीताल के शिविर में शामिल हो चुके है ।
सम्मलेन में झारखंड ,बिहार ,ओड़िसा और उत्तर प्रदेश से काफी संख्या में कार्यकर्त्ता जुटे थे । झारखंड से विश्वनाथ बागी , मधुकर कुमुद ,राजेंद्र कुमार ,सतीश कुंदन थे तो ओड़िसा से निरंजन विद्रोही और सिद्धार्थ के नेतृत्व में कार्यकर्त्ता आए । दिल्ली से पत्रकार मणिमाला भी समेलन में शरीक हुई । मणिमाला बोधगया आंदोलन की जुझारू कार्यकर्त्ता रही है । दूसरी तरफ ओड़िसा में नियमगिरि आंदोलन का नेतृत्व करने वाले सिद्धार्थ भी थे जिन्होंने वेदांता के खिलाफ कारगर मोर्चा खोला था । वाहिनी के इस सम्मलेन में बड़ी संख्या में नौजवान शामिल हुए जो नए मंच की रीढ़ बन सकते है । जनसत्ता से