Thursday, January 1, 2009

टूटता नजर आ रहा है नेहरू का सपना

अंबरीश कुमार
रिहंद बांध (रेनुकूट), । देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का सपना अब यहां टूटता नजर आ रहा है। रिहंद बांध का उद्घाटन करते हुए जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, ‘यह क्षेत्र भारत का स्विटजरलैंड बनेगा।’ विन्ध्य क्षेत्र में ऊज्रचल के नाम से मशहूर यह इलाका स्विटजरलैंड तो बना नहीं, बदहाली का शिकार अलग हो गया। इस क्षेत्र से लाखों लोग प्रदूषित हो रहे हवा और पानी का शिकार हो गए। करीब ७0 वर्ग मील में फैले गोविन्द बल्लभ पंत सागर का पानी इस कदर जहरीला हो रहा है कि अब यहां पर आंध्र प्रदेश से मंगा कर मछली खाई ज रही है। हवा में खतरनाक रसायनिक तत्वों की मात्रा बढ़ती ज रही है। नतीजतन जंगल से लाख के जरिए अपनी जीविका चलाने वाले आदिवासी बदहाल हो चुके हैं तो दूसरी तरफ फ्लोराइड की वजह से कुछ गांव में बच्चों से लेकर बूढ़े तक के हाथ-पांव टेढ़े हो चुके हैं। बिजली बनाने वाले बड़े कारखानों की फ्लाई ऐश आने वाले समय में परिस्थितिकी संतुलन बिगाड़ सकती हैं। पर यहां के कलेक्टर हीरामणि सिंह यादव इस सबसे अनजान हैं। यादव ने कहा-प्रदूषण के बारे में हमारे यहां एक विभाग है जो जनकारी रखता है। फिलहाल मेरी जनकारी में कुछ खास नहीं है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने करीब पांच दशक पहले इस क्षेत्र में आकर ऊज्र क्षेत्र के लिए बड़ा सपना देखा था। इसी के चलते रिहंद बांध का निर्माण हुआ और इस बांध के लिए सीमेंट की फैक्ट्री भी पास में स्थापित की गई। बांध से जो बिजली बनेगी, उसकी खपत के लिए नेहरू जी ने बिड़ला घराने को यहां आमंत्रित किया। बिड़ला समूह ने यहां हिन्डाल्को की स्थापना की जिसको बहुत ही कम दरों पर बिजली दी गई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने पौने दो पैसे प्रति यूनिट बिजली इस घराने को देने और सरकारी सीमेंट फैक्ट्री को बाजर दर पर बिजली मुहैया कराने के विरोध में आंदोलन भी किया था। पर अब डाला, चुर्क, चुनार जसी सरकारी सीमेन्ट फैक्ट्रियां निजी हाथों में ज चुकी हैं तो दूसरी तरफ निजी क्षेत्र मुनाफे की अंधी दौड़ में क्षेत्र के पर्यावरण के साथ बुरी तरह खिलवाड़ कर रहा है।
इस क्षेत्र में १९५४ में स्थापित वनवासी सेवा आश्रम शिक्षा, स्वास्थ्य, कुटीर उद्योग, पशुपालन के साथ पर्यावरण को लेकर भी काम कर रहा है। आश्रम की सर्वेसर्वा रागिनी बहन ने जनसत्ता से कहा, ‘कुछ वर्ष पहले ही हमने प्रदूषण की जंच पड़ताल के लिए एक प्रयोगशाला बनाई। इस प्रयोगशाला में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सौजन्य से एक अध्ययन भी हुआ जिससे पता भी चला कि गोविन्द बल्लभ पंत सागर का पानी बिजली कारखानों की फ्लाई ऐश के चलते बुरी तरह प्रदूषित हो चुका है। बड़ी-बड़ी कंपनियां फ्लाई ऐश को सीधे पानी में बहा रही हैं। इनके जो फ्लाई ऐश पौंड(गड्ढे) बनाए, वे बांध के जलाशय काफी करीब हैं। इससे पर्यावरण के प्रति लोगों की नियत भी साफ हो जती है। काफी समय से तो आसपास के जंगलों में फ्लाई ऐश फेंका जने लगा है।’
इस क्षेत्र में जो बड़े कारखाने हैं, उनमें रेनु सागर पावर कंपनी, हिंडाल्को अल्यूमीनियम, एनटीपीसी की तीन इकाईयां, शक्तिनगर, रिहंद नगर और विंध्य नगर शामिल हैं। इसके अलावा कनौड़िया कैमिकल्स अपने उत्पादों के अलावा निजी उपयोग के लिए तापीय विद्युत का उत्पादन करता है। यह सब बड़े कारखाने इस क्षेत्र का पर्यावरण बिगाड़ने में पूरा योगदान दे रहे हैं। इनके अलावा तीन बड़ी कंपनियां एस्सार, रिलांयस और लैंको अपना योगदान देने का इंतजर कर रही हैं। एनटीपीसी के डिप्टी मैनेजर जनसंपर्क राहुल घोष ने कहा-हम लोग पर्यावरण का जितना ख्याल रखते हैं, वह निजी क्षेत्र नहीं रख सकता। हमने १३ लाख पेड़ इस क्षेत्र में लगाए हैं। अनपरा में पत्रकार शहरयार खान ने कहा-पूरे क्षेत्र के पर्यावरण को बिगाड़ने में कोई पीछे नहीं है। लैंको पावर प्रोजेक्ट के वाईस प्रेसिडेन्ट कन्स्ट्रक्शन वीके रस्तोगी तो साफ कहते हैं कि हमें बहनजी का आशीर्वाद प्राप्त है। सरकारी संरक्षण हो तो फिर किस चीज का डर। 
इस क्षेत्र में रिहंद बांध बनने के बाद से ही विस्थापन से लेकर स्वास्थ्य व प्रदूषण का मुद्दा उठता रहा है। पर खनन क्षेत्र से उगाही करने में हर वर्ग जुटा हुआ है। राजनीतिक पर्यावरण की कीमत पर वसूली कर रहे हैं तो पुलिस प्रशासन खनन से लेकर कोयले तक में अपना हाथ काला किए हुए हैं। मीडिया की भूमिका भी सवालों में है। जिले के पत्रकारों को छोड़ दीजिए, लखनऊ और दिल्ली के नामचीन खबरनवीसों के भी खनन के पट्टे हैं। इन पट्टों से हर महीने दो लाख से लेकर तीन लाख की आमदनी होती है। यही वजह है कि सोनभद्र में खनन विभाग के सामने खबरनवीसों की ज्यादा भीड़ होती है। 
सोनभद्र से जनसत्ता संवाददाता विजय शंकर चतुर्वेदी के मुताबिक बढ़ते प्रदूषण के चलते म्योरपुर और चोपन ब्लाक के दो दजर्न गांवों में महामारी की स्थिति है। रोहनिया डामर और पढ़नरवा गांव में बच्चे से लेकर बूढ़े तक फ्लोराइड के चलते विकलांग हो चुके हैं। किसी के हाथ-पैर टेढ़े हैं तो किसी की गर्दन। डाला, बिल्ली, चोपन और ओबरा के दो सौ क्रशर प्लांट के चलते लोग सांस की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। डाक्टर अरविन्द सिंह ने कहा-पिछले दस सालों में इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण की वजह से लोग सांस से लेकर पेट तक की बीमारियों के शिकार होते ज रहे हैं। गोविन्द बल्लभ पंत सागर का पानी पीने लायक नहीं है लेकिन लोगों के सामने उसके अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं है। जरूरत है कि इस बड़े जलाशय में बिजली कारखानों की फ्लाई ऐश और कैमिकल कारखाने के घातक रसायनों का उत्सजर्न फौरन रोका जए। जनसत्ता

1 comment:

Prakash Badal said...

सही कहा आपने। नव वर्ष की शुभकामनाएं