Friday, October 8, 2010

तो सड़क का रास्ता पकड़िए


सुप्रिया रॉय
संयुक्त राष्ट्र संघ को हिंदी या जो भाषा वे समझते हों, उसमें समझाना पड़ेगा कि वे भारत का पंच बनने की कोशिश न करे। उनके पंचायती राज में भारत शामिल नहीं है। अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर को विवादित और स्वतंत्र क्षेत्रों की सूची में शामिल कर के संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय डेरी फाउंडेशन ने अरुणाचल और कश्मीर को लगभग अलग देश बना दिया है। बैठा होगा कोई अनपढ़ अफसर जो चार पैग लगा कर रिपोर्ट लिख रहा होगा। भारत को ऐसी फालतू विवरणों से कोई फर्क नहीं मिलता और इसीलिए आज तो आप अरुणाचल प्रदेश के सफर का मजा लीजिए। सबसे पहला पड़ाव गुवाहाटी है। गुवाहाटी हवाई अड्डा बहुत मजेदार जगह है। कभी यहां से बांग्लादेश और भूटान को सीधी उड़ाने जाती है इसलिए अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा होने का जुगाड़ कर के यहां बार भी बनाया गया है और सिगरेट पीने का विशेष लाउंज भी। इसके अलावा उड़ाने आम तौर पर देरी से आती जाती है इसलिए श्रध्दालु कामाख्या देवी सिध्द तीर्थ के दर्शन कर के वापस लौट सकें, इसकी व्यवस्था भी प्राइवेट टेक्सी ऑपरेटरों के अलावा खुद हवाई अड्डे के प्रबंधकों ने की है। काफी धार्मिक आग्रह उनके भीतर जान पड़ता है। मगर आपकी मंजिल गुवाहाटी या दिसपुर या आसपास की नहीं हो तो इस हरे भरे, खूबसूरत, गोलियों की दहशत से भरे, खतरनाक सड़कों वाले रास्ते आपका इंतजार कर रहे हैं। आपकी आंखे जुड़ा जाएं, ऐसे दृश्य और आपका दिल बार बार बैठ जाने की धमकी दे, ऐसी खाइयां। मगर जिसने लेह, लद्दाख और कारगिल की खाइयां देखी हो जहां आपकी गाड़ी कई जगह सोलह हजार फीट की ऊंचाई पर अचानक बन गई खाई को लोहे के तख्तों पर से पार सकती है तो ज्यादा डर नहीं लगेगा। रही बात दूसरे साधनों की तो 25 सीटों वाला एक तीन इंजन एक साथ चलाने वाला हैलीकॉप्टर मौजूद है। यह हैलीकॉप्टर मध्य प्रदेश मूल की एक ऐसी विमान सेवा चलाती है जो तकनीकी रूप से कभी शुरू ही नहीं हो पाई। किराया भी ज्यादा नहीं हैं। तीन हजार रुपए में आप वह सफर आधे घंटे में कर लेते हैं जिसके लिए आपको सड़क पर आठ घंटे बिताने पड़ते हैं। फिर भी उत्तर पूर्व की खूबसूरती देखनी हो, वहां की ओंस को महसूस करना हो, बादलों के बीच से हो कर गुजरना हो तो सड़क का रास्ता ही बेहतर है। अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में हैलीकॉप्टर शहर से काफी बाहर बने हैलीपैड पर उतरता है। पायलटों में से एक तुरंत बाहर उतर कर हैलीकॉप्टर के ठीक सामने खड़े हो कर सिगरेट सुलगा लेते हैं। जाहिर है कि उन्हें उस कानून की कोई परवाह नहीं हैं जिसमें हवाई पट्टी पर धूम्रपान करने की सजा कम से कम चार साल है और यह अपराध गैर जमानती है। खैर कानून को छोड़िए और नजारे देखिए। काफी विकट पहरे में मौजूद ईटानगर हैलीपैड और छोटे जहाज उतारने लायक हवाई पट्टी से बाहर निकल कर ईटानगर के मुख्य मार्ग पर आते ही सबसे पहले पंजाब पर गर्व होगा। पंजाब से तीन हजार किलोमीटर दूर ईटानगर में पंजाब पर गर्व इसलिए होता है कि सबसे ज्यादा दुकानें अपने सिख भाईयों की है और उन्होंने सारी स्थानीय भाषाएं बोलना भी सीख लिया है। कुछ ढाबे हैं और सबसे ज्यादा शराब की दुकाने है। एक से एक बड़े विदेशी ब्रांड। चीन में बनने वाली शराब भी। अरुणाचल आपको याद होगा कि चीन सीमा पर बसा है और चीन तो इसे अपना हिस्सा मानता है। इसीलिए अरुणाचलवासियों को चीन भारतीय नागरिक के तौर पर वीजा भी नहीं देता। अंग्रेजों ने कभी तिब्बत के हिस्से रहे अरुण्ााचल को भी एक अलग देश बनाने के चक्कर में 1914 में यहां एक निजी सीमा बना दी थी और बनाने वाले के नाम पर ही इसका नाम मैकमोहन लाइन रखा गया था। कहा गया था कि यह समझौता ब्रिटिश और तिब्बत सरकार के बीच का है। भारत में तो 1950 में इसे लागू कर भी दिया मगर चीन ने इसे कभी नहीं माना और 1962 का भारत-चीन युद्व सबसे भयंकर रूप में यहीं लड़ा गया था और अगर इलाके की खाइयां और उस जमाने की दुर्गम सड़कों की कल्पना करें तो हम सोच सकते हैं कि चीनियों से इसे बचाने के लिए भारतीय सेना को कितना गर्म लोहा निगलना पड़ा होगा। ईटानगर राजधानी है लेकिन पहाड़ियों और घाटियों में बसा हुआ एक नन्हा नादान सा शहर है। राजकीय अतिथि गृह से देखे तो शहर आपके सामने थाली में दीपकों की तरह बिखरा हुआ नजर आता है। शहर का सबसे बड़ा बाजार अपनी दिल्ली की ठीक ठाक कॉलोनियों की मोहल्ला मार्केट से ज्यादा बड़ा नहीं हैं और वहां धड़ल्ले से हिंदी फिल्मों की और गानों की सीडी और डीवीडी बिकती हैं। यहां के मूल निवासियों के बारे में माना जाता है कि वे तिब्बत में बौद्व धर्म के जन्म के भी दो तीन हजार साल पहले वहां से आ कर बसे हैं। महाभारत में यहां के राजा भीष्मका को बहुत महिमा मंडित किया गया हैं मगर इसके ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। यह नाम अरुणाचल के किसी इलाके में किसी मंदिर या समाधि पर भी नहीं मिलता। जाहिर यह है कि तिब्बत और वर्मा यानी मंगोल मूल के लोग ही यहां के आदिवासी और मूलवासी है। अरुणाचल का असली इतिहास सोलहवीं शताब्दी में असम के आहोंम इतिहास के साथ ही लिखा गया था। इसमें मूनपा और शेरदुकपेन नाम के दो ताकतवर कवियों का जिक्र है और हाल ही खुदाई में चौदहवीं शताब्दी के वैष्णव हिंदू मंदिर सियांग इलाके की घाटियों से मिले हैं। वास्तु कला के हिसाब से सारे मंदिर दक्षिण की ओर खुलते हैं और असम की सीमा के पास है। यहां के तवांग बौद्व मठ को सीधे तिब्बती बौध्द इतिहास से जोड़ कर देखा जाता है और छठवें दलाई लामा भी यहीं पैदा हुए थे। वर्तमान और कायर दलाई लामा हाल में ही तवांग गए थे तो चीन ने ऐतराज जाहिर किया था। मगर चीन तो भारत के प्रधानमंत्री की अरुणाचल यात्रा पर भी ऐतराज करता है। चीन को बावली बीबियों की तरह अनसुना कर देना चाहिए मगर उनके बेलन से फिर भी बच कर रहना चाहिए। गए थे हैलीकॉप्टर से मगर लौटे अरुणाचल- असम सीमा पर बसे असम के शहर तेजपुर के पास बने हवाई अड्डे से। वहां एक डक्कन एयरवेज का एक चालीस सीटाें वाला लेकिन आरामदेह जहाज इंतजार कर रहा था जिसने 25 मिनट में गुवाहाटी पहुंचा दिया था। अब जहाज की यात्राएं तो जहाज की यात्राएं ही होती हैं, जहां खिड़कियाेंं से बादल और कभी कभी बहुत दूर की जमीन नजर आ जाती है इसलिए निवेदन है कि उत्तर पूर्व घूमना है तो सड़क का रास्ता पकड़िए। जीवन धन्य हो जाएगा।

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