Wednesday, March 18, 2009

इंदिरा,संजय और वरुण

आलोक तोमर 
नई दिल्ली, मार्च- वरुण गांधी को राजनीति तो खैर नहीं ही आती, भाषा और संस्कार भी उनके पर्याप्त उलझे हुए हैं। जब तक बेडरूम में थे तब तक छिपे हुए थे वरना जैसे ही सड़क पर आए, उनका नंगापन नजर आ गया। 
उन्होंने पीलीभीत में अपनी पहली चुनाव सभा में जो भाषण किया उसमें तो वे प्रवीण तोगड़िया और साध्वी रितंभरा के भी उस्ताद नजर आए। मुसलमानों का गला काटने की अपनी पुण्य अभिलाषा का ऐलान उन्होंने मंच से किया। हिंदुओं की एकता का ऐलान किया। भारत के सारे मुसलमानों को ओसामा बिन लादेन बताया। ये भी कहा कि अगर हिंदू एक हो जाए तो सारे मुसलमान पाकिस्तान भाग जाएंगे। 
वरुण गांधी इतने पर ही रूक जाते तो भारतीय जनता पार्टी का होने के कारण उन पर सिर्फ सांप्रदायिक होने का ठप्पा लगता। लेकिन अपनी अम्मा की जीती जिताई सीट पीलीभीत पर जीत की उम्मीद पक्की माने बैठे वरुणगांधी ने मंच से महात्मा गांधी को बेवकूफ कह दिया। अपने देश में गांधीवाद भले ही कायम नहीं हुआ हो, नोटों पर गांधी जी की तस्वीर छपती हैं और देश के हर शहर में महात्मा गांधी मार्ग है। कुल मिला कर गांधी जी देश के समाज में पूज्य हैं। 
यहां आ कर वरुणगांधी फंस गए। देश ने सवाल पूछना शुरू कर दिया। भाजपा को वरुणने करुण हालत में ला कर खड़ा कर दिया। भाजपा ज्यादा परेशान वरुणके मुस्लिम विरोधी बयान से थी इसलिए अपनी दो मुस्लिम उत्सव मूर्तियों- मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन को बयान देने के लिए खड़ा किया कि वरुण गांधी ने जो कहा वह उनका निजी मामला है और पार्टी की आम राय ये नहीं हैं। इस बयान पर कौन भरोसा करता? इसके बाद वरुण गांधी का बयान आया। इस बयान के मुताबिक सारे टीवी चैनलों ने उनके भाषण की सीडी में किसी और की आवाज डाल दी है। इस बयान पर तो खुद उनकी अम्मा मेनका गांधी भरोसा नहीं करेंगी। दर्जनों टीवी चैनल एक साथ मिल कर एक जैसी गलती नहीं कर सकते। वरुण गांधी अभी इतने बड़े नेता नहीं हुए है कि उनको निपटाने के लिए स्टार न्यूज और एनडीटीवी से ले कर मेरा नवजात सीएनईबी भी पीछे पड़ जाए। 
वरुण गांधी के लिए सबसे आसान था कि वे माफी मांग लेते और उन्हें बच्चा मान कर लोग माफ भी कर देते। मगर जो सुधर जाए वो आदमी वरुण गांधी नहीं हैं। उन्हें इतना भी याद नहीं रहा कि वे फिरोज गांधी के पोते हैं जो महात्मा गांधी के भक्त थे। उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि जवाहर लाल नेहरू उनके परनाना थे और उन्हे गांधी जी ने ही देश का पहला प्रधानमंत्री बनवाया था। यह एक ऐसा तथ्य है जिसके लिए भाजपा और संघ परिवार जिसके दुर्भाग्य से वरुण नेता कहे जा सकते हैं, गांधी को कभी क्षमा नहीं किया। वरुण जिस पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं उसका मानना हैं कि नेहरू जी की जगह सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए था। भाजपा के जनसंघ अवतार पर उस समय गांधी जी की हत्या की साजिश करने का आरोप भी लगा था। ऐसे में भाजपा का कोई लोकसभा उम्मीदवार अगर गांधी जी को मंच से बेवकूफ कहेगा तो वह कम से कम यह प्रमाणित तो जरूर कर देगा कि वह संजय और मेनका गांधी का बेटा है। 
संजय गांधी कभी अपनी विनम्रता के लिए नहीं जाने गए। वे तो अपने शानदार दिनों में बड़ों बड़ों की छुट्टी कर दिया करते थे और मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक को अपने सामने बैठने तक नहीं देते थे। उनके द्वारा दी गई गालियों का इतिहास अब भी चल रहा है। लेकिन बहुत सारे ऐसे हमारे नेता हैं जो आम तौर पर सिर्फ इसलिए राजनीति में हैं क्योंकि उन्हें संजय गांधी से गालियां खाने में आपत्ति नहीं हुई थी। ये लोग बड़े बड़े पदों पर पहुंचे और राजनीति में स्थापित बने रहे। आज भी उनमें से कई स्थापित हैं। 
वरुण गांधी अपने नाम में जुड़े गांधी शब्द को भी भूल गए। उनकी अम्मा मेनका गांधी जो कुत्तों से ले कर गिध्दों तक का पर्याप्त ध्यान रखती हैं उन्हें अपने बेटे के मुंह से मुसलमानों की गर्दन काटने वाला बयान सुन कर कैसा लगा होगा? वैसे भी उन्होंने वरुण के बयान पर कुछ भी कहने से मना कर दिया है और कहा कि अगर कोई कुत्ता कहीं मारा जाए या किसी चूहे पर अत्याचार हो रहा हो तो मैं उस पर बोलूंगी। उन्हें शायद अपनी जवानी याद आई होगी जब वे बीसीएम की तौलियां पहन कर मॉडलिंग किया करती थी और सूर्या नामक पत्रिका निकाला करती थी जिसमें जनता सरकार के दौरान जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम और उनकी प्रेमिका सुषमा की अश्लील तस्वीरें उस पत्रिका की आमुख कथा के तौर पर उन्होंने प्रकाशित की थी। जगजीवन राम का प्रधानमंत्री बनना हमेशा के लिए स्थगित हो गया था। 
वरुण गांधी और राहुल गांधी के बीच अगर तुलना की जाए तो वह एक अक्षम्य अपराध होगा। सच तो यह है कि राहुल गांधी राजनीति के बाबा लोगों में गिने जाते हैं और यह भी सही है कि उन्होंने भी कई बार कुछ बचकाने बयान दिए हैं मगर सही यह भी है कि बचकाने होने के बावजूद राहुल गांधी ने कभी आपराधिक बयान नहीं दिए जो उनके चचेरे भाई वरुण ने दे डाला। वरुण और राहुल के बीच उतना ही अंतर है जितना राजीव गांधी और संजय गांधी में था। राहुल गांधी बड़े भाईयों की तरह विनम्र थे और संजय गांधी बिगड़े हुए छोटे भाईयों की तरह उदंड और हमलावर थे। 
यही सही है कि इंदिरा गांधी अपने छोटे बेटे संजय को ही अपना राजनैतिक उत्तराधिकार सौपना चाहती थी और अगर संजय गांधी की असमय एक दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई होती तो इतिहास कुछ और ही होता। राजीव गांधी बहुत बेमन से और श्रीमती सोनिया गांधी को लगभग नाराज कर के राजनीति में आने के लिए तैयार हुए थे और इंदिरा गांधी की निर्लज्ज हत्या नहीं होती तो राजीव गांधी इतनी जल्दी प्रधानमंत्री नहीं बनते। 
वरुण गांधी पिछला चुनाव इसलिए नहीं लड़ पाए थे क्योंकि वे 25 साल के नहीं थे। अब वे 29 साल के हैं। लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स में पढ़ चुके हैं जहां एक जमाने में मनमोहन सिंह भी पढ़े थे। इसके अलावा लंदन के एक विश्वविद्यालय से वरुण ने अफ्रीका संबंधी विषयों पर विशेषज्ञता हासिल की है। वे कविताएं भी लिखते हैं और उनका एक कविता संकलन अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुका हैं जिसके नाम का मोटा मोटा अनुवाद करें तो यही होगा कि अपने होने का बेगानापन। वरुण ने जो किया है उसके बाद भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी जिसके वे सदस्य हैं, को तय करना पड़ेगा कि उन्हें इस बूढ़े होते जा रहे बच्चे के साथ क्या करना है? 

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