जनादेश ब्यूरो
लखनऊ, मार्च। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बिहार के पर है। कांग्रेस के आधारहीन नेताओ के चलते पार्टी को यहाँ झटका लग सकता है। उत्तर प्रदेश की ८0 लोकसभा सीटों में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के रवैये से आजिज आकर अंतत: कुछ 5 सीटें ऐसी छोड़ी जिस पर वह उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी। किसी भी राष्ट्रीय दल की ऐसी दुर्गति पहले कभी नहीं हुई। इसका संदेश अब उत्तर प्रदेश में नीचे तक जा रहा है और माना जा रहा है कि कांग्रेस को इस बार कहीं और तगड़ा ङाटका न लग जए।
यह तब हुआ है जब केन्द्र में लगातार पांच साल तक उपलब्धियां गिनाने वाली उसकी सरकार रही है। कांग्रेस ने अगर गठबंधन धर्म का सबक नहीं लिया तो इस बार वह सत्ता से बाहर भी जा सकती है। कमोवेश सभी राज्यों में क्षेत्रीय दल इस राष्ट्रीय दल पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। गठबंधन न होने की दशा में पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में तगड़ा ङाटका लग सकता है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन की चर्चा से जो माहौल बना, उसका फायदा अब कांग्रेस के बजय समाजवादी पार्टी को ज्यादा हो सकता है। उत्तर प्रदेश से करीब तीन दजर्न सीटें जीतने वाली समाजवादी पार्टी के हौसले बुलंद हैं। राज्य की ज्यादातर सीटों पर बहुजन समाज पार्टी से वह सीधा मुकाबला करने जा रही है। पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने आज सपा मुख्यालय में जुटे उलेमा से कम से कम ५0 सीटें जिताने की अपील की।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के संभावित गठबंधन में कांग्रेस को १७ सीटें देने के लिए मुलायम सिंह तैयार हो चुके थे और इसमें भी बढ़ोत्तरी की गुंजइश का संकेत दिया था। पर इसी बीच कांग्रेस ने २४ उम्मीदवारों की सूची जरी कर सपा नेतृत्व को भड़का दिया। इस सूची में आधा दजर्न उम्मीदवार ऐसे हैं जिनकी हार सुनिश्चित है। बाकी बचे १८ जिसके लिए सपा कमोवेश तैयार थी। पर यह गठबंधन दोनों पार्टियों के नेताओं की मूंछ की लड़ाई के चलते लटकता नजर आ रहा है। बिहार में सहयोगी दलों से मिली न्यूनतम सीटों के बावजूद कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कोई सबक लेने को तैयार नहीं है। बिहार की तीन सीटों के मुकाबले उत्तर प्रदेश की १८ सीटों का हिस्सा सम्मानजनक माना जता। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जीत की संभावनाओं पर कांग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा-पार्टी ने जो २४ सीटें घोषित की हैं, उसमें दो-तिहाई पर हमारी जीत तय है।
दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा-एक तरफ बिहार कांग्रेस को उसके सहयोगी दल तीन सीट दे रहे हैं, वहीं हम उत्तर प्रदेश में १७ सीटें देने का पहले ही एलान कर चुके थे। बिहार में इन दोनों दलों के नेता लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान केन्द्र सरकार में प्रभावशाली मंत्री रहे। तब यह हिस्सा मिला है। दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव जिन्होंने सरकार बचाई, उसकी उदारता की तरफ किसी कांग्रेसी का ध्यान नहीं जता। सपा धर्म निरपेक्ष वोटों का बंटवारा रोकने के लिए गठबंधन पर जोर दे रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन न होने की दशा में इन दोनों पार्टियों का नुकसान भी तय है। आमतौर पर कांग्रेस की दो सीटें यहां पर पूरी तरह सुरक्षित मानी जती हैं। ये सीटें हैं सोनिया गांधी की रायबरेली और राहुल गांधी की अमेठी। इसके बाद खुद कांग्रेसी जीतने वाली सीटों के रूप में दस से ज्यादा संसदीय सीट का नाम नहीं बता पाते। कांग्रेस नेता फिलहाल जिन सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं, उनमें शामिल प्रतापगढ़ की सीट पिछली बार सपा के अक्षय प्रताप सिंह ने जीती थी। सुल्तानपुर की सीट भी सपा के ताहिर खान के खाते में गई थी। पडरौना की सीट नेलोपा के बालेश्वर यादव के खाते में गई थी। रामपुर की सीट से सपा की जयाप्रदा जीती थी। कांग्रेसी इन्हें अपनी मजबूत सीटों में गिन रहे हैं। इनके अलावा कांग्रेसी बाराबंकी, बरेली, फतेहपुर सीकरी, गोंडा, कानपुर और बांसगांव आदि की सीट पर पहले या दूसरे नंबर पर आने की बात कह रहे हैं। दूसरी तरफ वाराणसी, मथुरा और हापुड़ की जीती हुई सीटें कांग्रेस इस बार अलग-अलग वजहों से गंवा सकती है। कांग्रेस के आंकलन को मान लें तो करीब दजर्न भर सीटें वह जीत सकती है। ऐसे में यदि गठबंधन गया तो कांग्रेस की सीटों में तीन-चार सीट का और इजफा हो सकता है। यदि गठबंधन नहीं हुआ तो पार्टी को तीन-चार सीट का नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। ऐसे में यदि उत्तर प्रदेश में नौ-दस और बिहार में तीन सीटें मिल भी जएं तो आने वाले समय में इन दोनों प्रदेशों में पार्टी का जनाधार और गिर जएगा। पार्टी को जहां धीरे-धीरे अपनी सीटों की संख्या बढ़ानी चाहिए, वहीं वह उत्तर प्रदेश में ज्यादा संख्या के चक्कर में मात खा सकती है तो बिहार में मात खा चुकी है। अगली बार उत्तर प्रदेश में भी उसके सहयोगी दल बिहार वाली संख्या पर पहुंचा दें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।
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