रीता तिवारी
ईटानगर, दिसंबर। पूर्वोत्तर में चीन की सीमा से लगे सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण अरुणाचल प्रदेश में वह सब कुछ है जो देश के किसी भी राज्य में हो सकता है। खूबसूरत पहाड़ियां, गुलमर्ग को मात करता जीरो, जहां साल के ज्यादातर महीनों के दौरान बर्फ जमी रहती है, तावांग की बौद्धगुफा और वहीं चीनी सीमा। इस राज्य को अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के चलते उगते सूरज का देश कहा जाता है। वैसे स्थानीय भाषा में अरुणाचल का मतलब भी उगते सूरज की धरती होता है. इसकी खूबसूरती की तुलना जम्मू-कश्मीर के साथ की जाती है।
लेकिन इन सबके बावजूद यहां एक ऐसी चीज नहीं है जो देश के तमाम राज्यों तो क्या हर जिले में मौजूद है। आखिर क्या? वह चीज है जेल। सुनकर हैरत हो सकती है। लेकिन यह सच है कि इस राज्य में कोई जेल नहीं है। तीन साल पहले राजधानी ईटानगर में बनी जेल की एक खूबसूरत इमारत अब तक अपने उद्घाटन की राह देख रही है।
मौजूदा दौर में किसी राज्य में जेल नहीं होने की बात नामुमकिन ही लगती है। लेकिन पूर्वोत्तर में नेफा यानी नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी कहा जाने वाला अरुणाचल प्रदेश इस मामले में देश का अकेला ऐसा राज्य है। लेकिन यहां जेल नहीं होने का मतलब यह भी नहीं है कि इस पर्वतीय राज्य में अपराध ही नहीं होते। जी हां, यहां अपराध होते हैं। लेकिन राज्य में कोई जेल नहीं होने की वजह से राज्य के अभियुक्तों को पड़ोसी राज्य असम की जेलों में रखा जाता है।असम की राजधानी गुवाहाटी स्थित हाईकोर्ट की अरुणाचल प्रदेश खंडपीठ ने अब तक विभिन्न अपराधों के सिलसिले में 26 लोगों को सजा सुनाई है. इन सबको असम की जेलों में रखा गया है।
फिलहाल राज्य में अपराधियों को चार्जशीट नहीं होने तक पुलिस लाकअप में ही लंबा समय बिताना पड़ता है। राज्य के गृह मंत्री जारोबाम गैमलिन मानते हैं कि यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है। लेकिन जेल का उद्घाटन जल्दी कर दिया जाएगा। बीते साल ही तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटील के हाथों इसका उद्घाटन होना था। लेकिन पोप जान पॉल दो के निधन के चलते यह समारोह रद्द हो गया था। इस जेल में 50 कैदियों को रखने की क्षमता है। फिलहाल सजायाफ्ता अपराधियों को पड़ोसी असम की विभिन्न जेलों में रखा जाता है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल अरुणाचल के ऐसे 26 अपराधी असम की विभिन्न जेलों में अपनी सजाएं काट रहे हैं।
अब राज्य में छोटी-बड़ी कई अन्य जेलों का निर्माण कार्य भी चल रहा है। यहां यह बता दें कि यहां कार्यपालिका और न्यायपालिका में कोई विभाजन रेखा नहीं है। किसी जिले के जिलाशासक को ही सत्र न्यायालय में न्यायाधीश की भूमिका निभाते हुए हत्या, बलात्कार और डकैती के मामलों की सुनवाई करनी पड़ती है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि नए कर्मचारियों की नियुक्ति के बाद कार्यपालिका और न्यापालिका का बंटवारा कर दिया जाएगा।
पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग कहते हैं कि हमारे राज्य में छोटे-बड़े सभी मामले ग्रामीण पंचायतें अपने पारंपरिक कानूनों की सहायता से निपटा लेती हैं। इस राज्य में इन परिषदों को काफी अधिकार मिले हैं। इसलिए यहां कभी जेल बनाने की जरूरत ही नहीं महसूस हुई. कुछ साल पहले जेल की एक इमारत बनी। लेकिन विभिन्न वजहों से उसका उद्ध्घाटन नहीं हो सका है। ध्यान रहे कि अपांग राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सबसे लंबे अरसे तक रह चुके हैं। पहली बार उन्होंने लगातार 19 वर्ष इस कुर्सी पर रहने का रिकार्ड बनाया था। अरुणाचल को वर्ष 1975 में केंद्रशासित क्षेत्र और 20 फरवरी, 1987 को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था।
दिलचस्प बात यह है कि इस राज्य के ज्यादातर हिस्सों में अब भी पारंपरिक कानून ही लागू हैं। यह कानून भी हर जनजाति के लिए अलग-अलग हैं और इनके तहत फैसले का अधिकार ग्रामीण परिषदों को है। वर्ष 1945 में बने असम सीमांत अधिनियम एक के तहत इन कानूनों को मान्यता दी गई थी। इसी वजह से राज्य में किसी भी सरकार ने जेलों की स्थापना की जरूरत ही नहीं महसूस की। राज्य के वरिष्ठ पत्रकार मामंग दाई कहते हैं कि ‘राज्य में आतंकवादी गतिविधियों या संगठित अपराधों का कोई इतिहास नहीं है।’ यह जानना भी दिलचस्प है कि इस राज्य में भारतीय दंड संहिता लागू नहीं है। कोई छह साल पहले सरकार ने टाडा की तर्ज पर यहां संगठित अपराध नियंत्रण अध्यादेश जारी किया था। आम लोगों ने उस समय इसका जम कर विरोध किया था। इसके बावजूद मुकुट मिथी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे विधानसभा में पारित करा लिया।
अरुणाचल प्रदेश छात्र संघ (आप्सू) के पूर्व अध्यक्ष माजी मार्गिंग कहते हैं कि ‘राज्य सरकार ने इस अध्यादेश को कानूनी जामा पहनाने के पहले आम लोगों की भावनाओं को ध्यान में नहीं रखा।’ वे कहते हैं कि ‘पूर्वोत्तर के इस सबसे शांतिपूर्ण राज्य को ऐसे किसी कानून की जरूरत ही नहीं है. राजनीतिक पार्टियां समय-समय पर अपने फायदे के लिए इसका समर्थन करती रही हैं।’ वे दलील देते हैं कि ‘राज्य में किसी जेल का नहीं होना ही इस बात का सबूत है कि यहां ऐसे किसी खतरनाक कानून की जरूरत नहीं है.’