Tuesday, June 5, 2012

हार का बदला लेने को तैयार समाजवादी बहू

सविता वर्मा लखनऊ,जून ।फिरोजाबाद की हार का बदला कन्नौज में लेने को तैयार है डिंपल यादव । कन्नौज संसदीय क्षेत्र के लोगों के बढते दबाव के बाद को वह से चुनाव लडाने का फैसला पार्टी ने किया क्योकि लगातार नौजवानों का प्रतिनिधिमंडल पार्टी मुख्यालय पहुँच रहा था । वर्ना अखिलेश यादव खुद इस पक्ष में नही थे । खैर ,सर्वदलीय हो चुके परिवारवाद का ठीकरा सिर्फ डिंपल यादव पर जो फोडना चाहते है उनकी चिंता छोड़ दे तो यह सीट समाजवादी पार्टी की सबसे मजबूत सीट है जिसे वह किसी कीमत पर जाने नही देना चाहती है । दूसरे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सत्ता में सौ दिन की राजनैतिक समीक्षा भी डिंपल यादव की इस जीत से भी कुछ हद तक होगी ।अखिलेश यादव का राजनैतिक एजंडा अभी पूरी तरह साफ़ नही हो पाया है पर अबतक के फैसलों से उनपर उंगली भी नही उठी है । सौ दिन पूरे होने के साथ ही सरकार की भी समीक्षा शुरू हो जाएगी । फिलहाल डिंपल यादव के चुनाव पर । कन्नौज संसदीय सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए डिंपल यादव ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। फिरोजाबाद में डिंपल यादव को राजबब्बर से शिकस्त देने वाली कांग्रेस मैदान छोड़ चुकी है ।इसलिए नही कि वह कोई त्याग कर रही है बल्कि इसलिए कि इस चुनाव में उसका जितना असंभव है चाहे जिसे वह ले आए । राहुल गांधी का राजनैतिक करिश्मा तोड़ने वाले अखिलेश यादव को उनके गढ़ में अब चुनौती देने का साहस किसी भी कांग्रेसी दिग्गज में नहीं है । रायबरेली और अमेठी का हाल कांग्रेसी देख चुके है । बाकि बची भाजपा तो न वह कोई जोखम लेने को तैयार है और न बसपा । इसलिए डिंपल यादव की जीत तय है सिर्फ मतगड़ना की औपचारिकता बाकी है । उत्तर प्रदेश की राजनीति में आधा अपने नेताओ के दर्जन भर पुत्र पुत्रियों को उतर चुकी भाजपा भी परिवारवाद का आरोप लगती है तो वंशवाद का प्रतीक बन चुकी कांग्रेस भी । अगर उत्तर प्रदेश कि राजनीति में जयाप्रदा से लेकर अनु टंडन आ सकती है ,महारानी अमिता सिंह आ सकती है तो डिंपल यादव से किसी को क्यों परहेज होगा । यह जान लेना जरूरी होगा कपिछले विधान सभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत के पीछे डिंपल यादव की हार थी । इस हार ने ही अखिलेश को नई ताकत दी और जब वे पिछले साल सितम्बर से गांव गांव घूम रहे थे तो न दिल्ली और न लखनऊ के मीडिया ने कोई तवज्जो दी थी सभी राहुल गांधी से लेकर मायावती को सत्ता का दावेदार मान रहे थे । पर जनवरी फरवरी आते आते दिल्ली मुंबई का मीडिया अखिलेश यादव कीं राजनैतिक बढ़त को लेकर आशंकित हो चुका था । सर्वे भी मायावती को अब पूर्ण बहुमत से नीचे उतार रहे थे । जनसत्ता ने विधान सभा चुनाव की शुरुआत से ही यह साफ़ कर दिया था कि मायावती सत्ता से जा रही है और अखिलेश यादव अगले मुख्यमंत्री होंगे । अब सत्ता में आने के बाद अखिलेश यादव कि पहली राजनैतिक परीक्षा लोहिया के संसदीय क्षेत्र कन्नौज में होने जा रही है जो खुद लगातार यहाँ से सांसद रहे है । पर यह सभी जानते है यहाँ लड़ाई एकतरफा है और डिंपल यादव की जीत सुनिश्चित है । पिछले कुछ समय में डिंपल यादव राजधानी के कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपनी मौजूदगी से लोगों का ध्यान आकर्षित कर चुकी है । पहाड से नाता रखने वाली डिंपल निजी व्यव्हार में काफी सौम्य है जो इस समाजवादी परिवार के पुराने तेवर से अलग हटकर है ।

Saturday, March 10, 2012

यह समाजवाद का नया चेहरा है


समूचे उत्तर भारत में समाजवाद का नया चेहरे बनकर उभरे अखिलेश यादव ने आज राजभवन जाकर समाजवादी पार्टी विधान मंडल दल की तरफ से सरकार बनाने का जैसे ही दावा पेश किया उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का माहौल बदल गया । दावा पेश करने के साथ ही अखिलेश यादव ने कहा -जो भी कहा है वह पूरा करूंगा । अखिलेश यादव मुख्यमंत्री पद की शपथ १५ मार्च को लखनऊ के लामार्टिनियर कालेज में ग्यारह बजे लेंगे । वे अखिलेश यादव जो इस बार हर किस्म की राजनीति पर भारी पड़े चाहे वह मंडल हो ,कमंडल हो या फिर दलित उभार की राजनीति हो । इस बार जब नतीजे आए तो लोग हैरान थे कि राहुल गाँधी से लेकर प्रियंका गाँधी के साथ समूची भगवा ब्रिगेड कैसे हाशिए पर चली गई और कैसे प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई मायावती सत्ता से बाहर हो गई । जो नहीं जानते है उनके लिए यह जानना जरुरी है कि इस जनादेश की कहानी उस संघर्ष में छुपी हुई है जो साढ़े चार साल तक अखिलेश यादव के नेतृत्त्व में चला और जिसे राष्ट्रीय मीडिया ने कभी गंभीरता से नहीं लिया । लाठी गोली खाने वाले समाजवादी पार्टी कार्यकर्त्ता समूचे प्रदेश में सरकारी दमन का शिकार हुए और बड़ी संख्या में जेल भेजे गए । इस जनादेश के नायक बन कर ऊभरे अखिलेश यादव ने न सिर्फ संघर्ष का नेतृत्त्व किया बल्कि प्रदेश के कोने कोने तक गए । दस हजार किलोमीटर की यात्रा पांच सौ से ज्यादा जन सभाए जिनमे तीन सौ जन सभाओं में वे समाजवादी क्रांति रथ के जरिए पहुंचे तो अंतिम दौर में हेलीकाप्टर में दो सौ घंटे गुजरे और इससे ज्यादा जन सभाओं तक पहुंचे । सड़क पर करीब ढाई सौ किलोमीटर तक की साईकिल यात्रा अलग थी । हर जगह भीड़ ,और नौजवानों का उत्साह दिखा जो किसी नेता के दौरे में था । इन सभाओ में अखिलेश यादव का अंतिम वाक्य होता था -सरकार नहीं बहुमत की सरकार चाहिए ,और लोगों ने छप्पर फाड़ बहुमत दिया ।
अखिलेश यादव से प्रभात खबर के लिए सविता वर्मा की बातचीत के अंश -
सवाल -आप पर परिवारवाद का आरोप लगता है । और नेताओं की तरह मुलायम सिंह ने आपको पुत्र होने की वजह से सामने किया ?
जवाब - यह याद्द रखना चाहिए कि कन्नौज के चुनाव में जब पत्रकारों ने छोटे लोहिया यानी जनेश्वर मिश्र से यह पूछा था तो उनका जवाब था , यह संघर्ष का परिवारवाद है ,सत्ता का परिवारवाद नहीं । पिछले साढ़े चार साल से हम लगातार संघर्ष कर रहे है ,उनमे से नहीं है जो चुनाव के समय मैदान में आ गए हों ।हमारे कार्यकर्ताओं को बुरी तरह मारा गया ,फर्जी मुकदमो में फंसाया गया और जेल भेज दिया गया । उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा जुल्म हम पर हुआ और हम ही लड़े ।
सवाल -इससे यह आशंका हो रही है कि सत्ता में आने साथ बदले की कार्यवाई होगी । करीब आधा दर्जन जिलों से समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं की अराजकता और हिंसा की खबरे आ रही है ?
जवाब -पहले तो यह साफ़ हो जाना चाहिए कि समाजवादी पार्टी सरकार बदले की भावना से कोई काम नहीं करने जा रही है । जिन दलित महापुरुषों की मुर्तिया लगी है उनकी हिफाजत की जाएगी । जो भी मुर्तिया लगाई गई वे वैसी ही रहेंगी । यह बात तो नेता जी ने पहले ही साफ़ कर दी है । जहाँ तक हिंसा की बात है तकनिकी टूर पर अभी हम सरकार में नही है फिर भी मुख्य सचिव और डीजीपी को बुलाकर ऎसी हिंसा से कड़ाई से निपटने का निर्देश दिया जा चूका है । हमने पार्टी कार्यकर्ताओं को साफ़ कर दिया है कि किसी तरह की भी गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं होगी और जो भी इसमे शामिल हुआ उसक खिलाफ कड़ी कार्यवाई होगी ।
सवाल - इस बार के चुनाव प्रचार में फिल्मी सितारें नहीं दिखे जबकि पिछली बार अमर सिंह ने कई अभिनेता और अभिनेत्रियों की लाइन लगा थी ।
जवाब अंकल की बात और थी ,पर हमें कोई जरुरत नहीं महसूस हुई । यह चुनाव संघर्ष की बुनियाद पर पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों के आधार पर लड़ा गया ।
सवाल - पार्टी में अभी भी कई दागी नेता है ?
जवाब-यह संदेश साफ़ तरीके से दिया जा चूका है कि बाहुबल और धनबल की राजनीति का दौर जा चुका है । किसी भी बड़े बाहुबली को पार्टी में जगह नहीं दी गई । आगे भी इसपर पूरा ध्यान रखा जाएगा ।
सवाल -इस चुनाव में किस बात ने आपको ज्यादा प्रभावित किया ?
जवाब -नौजवानों का उत्साह । मैंने लगातार यात्रा की और हर जगह हर जगह बड़ी संख्या में नौजवानआए । वे बदलाव की उम्मीद में आ रहे है । इसी से साफ़ हो गया कि हम सबसे आगे है ।
सवाल -आप बाहर पढ़े लिखे और पार्टी के कार्यक्रमों का भी बहुत ज्यादा अनुभव नहीं है ,ऐसे में दिक्कत नहीं आएगी ?
जवाब -मै जब बोर्डिंग में रहकर पढाई कर रहा था तो अवकाश में लखनऊ आया था ।तभी नेताजी ने मेरी मुलाकात जनेश्वर मिश्र से कराई तो मैंने उनके पैर छुए और उन्होंने मेरी पीठ पर जोर का हाथ मारकर कहा ,तुम भी राजनीति ही करोगे । फिर ३१ जुलाई २००१ को जो पहला क्रांति रथ निकला उसे जनेश्वर जी ही हरी झंडी दी थी ।
सवाल -राजनीति में किससे प्रेरणा लेते है ?
जवाब -आपको पता है मै जिस क्षेत्र से लोकसभा जाता हूँ वह लोहिया का क्षेत्र रहा है ।उससे बड़ी राजनैतिक वरासत क्या होगी । लोहिया को पढ़कर कर ही राजनीति का ककहरा सीखा है ।अब समय आ गया है उनके समाजवादी मूल्यों पर अमल करने का ।
साभार प्रभात खबर

Sunday, February 5, 2012

समर्थन की जरुरत तो राहुल को है -सपा


अनामिका शिमला
लखनऊ , फरवरी । समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को साफ़ चेतावनी दे दी है कि राहुल गाँधी सीमा में रहे नहीं तो संकट पैदा हो सकता है ।राहुल गाँधी ने किसी के समर्थन के मुद्देपर कहा था कि वे गुंडों बदमाशों का समर्थन नहीं लेंगे । इशारा साफ तौर पर समाजवादी पार्टी की ओर था । इस पर समाजवादी पार्टी ने राहुल गाँधी को आइना दिखाते हुए कहा -समर्थन तो उन्हें चाहिए वर्ना केंद्र की सरकार गिर जाएगी । रविवार को समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को चेतावनी दी है कि समर्थन की जरुरत कांग्रेस को केंद्र में है । अगर अन्य दलों का समर्थन वापस हुआ तो सरकार गिर जाएगी ।सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा कि कांग्रेस महासचिव व युवराज राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस की दुर्गति होने की आशंका से निराश और हताश होकर अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने लगे हैं। उन्हें यह भी पता नहीं कि वे किसके बारे में और किस संदर्भ में बड़बोलापन दिखा रहे हैं । चौधरी ने कहा कि उनका यह बयान कि कांग्रेस जीतें या हारें वह किसी पार्टी से उत्तर प्रदेश में गठबंधन नहीं करेगी ।यह एक तरह से बचकानापन से भरा बयान है क्योंकि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में इस हैसियत में है कहां कि उसके साथ गठबंधन की किसी को दरकार हो। गठबंधन तो सही में कांग्रेस की मजबूरी है जिसके बिना तो केंद्र में वह शासन में हीं नहीं रह सकेगी । चौधरी ने कहा कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को दूसरों पर आक्षेप करने से पहले अपने घर की सच्चाई जान लेना चाहिए। देश व प्रदेश पर सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस का राज रहा है । इसलिए देश व प्रदेश में जो समस्याएं है उनकी जिम्मेदारी भी उसी पर है। चौधरी ने आरोप लगाया कि उनकी पार्टी ने गरीबी हटाओं का नारा देकर जनता को भरमाया था। पर देश व प्रदेश को क्या मिला । गरीबी, भुखमरी व अपमान भरा जीवन। यह बात तो सरकारी रिपोर्टो से साबित है कि देश में अभी भी 80 फिसद लोग एक वक्त भूखे रहकर ही सोते हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य की दुहरी व्यवस्था,धनपतियों के स्वार्थ की योजनाएं, उदारीकरण के नाम पर लघु, मध्यम उद्योगों की बर्बादी यह सब तो कांग्रेस की ही देन है। उन्होंने कहा कि सपा यह भी जानना चाहेगी कि आखिर उनकी नजरों में चोर और गुंडा कौन है । आतंकवाद के नाम पर निर्दोष मुस्लिम नौजवानों का एन्काउंटर करनेवाले या किसानों को जमीन से जबरिया बेदखल करनेवाले । कांग्रेस पर तीखी टिपण्णी करते हुए चौधरी ने राहुल से पूछा कि कामनवेल्थ खेल घोटाला, टूजी स्पेक्ट्रम घेाटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला करनेवाले और जनता की गाढ़ी कमाई विलासिता में लुटानेवालों को पता नहीं वे चोर मानेगें या नहीं। साथ ही साथ राहुल गांधी से उन्होंने यह भी सवाल किया कि वे यह भी बताएं कि सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्टो में कहा गया है कि मुसलमानों की स्थिति दलितों से बदतर है। मुस्लिमो की इस दशा का जिम्मेदार कौन है । उन्होंने कहा कि अच्छा हो कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी यह भी स्पष्ट कर दें कि प्रदेश को बर्बादी के गर्त में ढकेलने वाली बसपा सरकार और इसकी मुख्यमंत्री को पांच सालों से कौन अभयदान देता रहा है। अपराध, भ्रष्टाचार बलात्कार और लूट की तमाम शिकायतों के बावजूद कांग्रेस हाथी पर हाथ धरे क्यों बैठी रही । हाथी को केन्द्रीय मदद का चारा खिलाकर किसने मोटा किया है । चौधरी ने कहा कि राहुल गांधी खुद ही तय कर लें कि प्रदेश के विकास को अवरूद्ध करनेवाली पत्थर प्रेमी बसपा सरकार ने जो तबाही मचाई है उसमें उनकी पार्टी कांग्रेस की कितने हिस्सेदारी है । चौधरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जहां कांग्रेस महासचिव को जगह जगह कम भीड़ और काले झण्डों से वास्ता पडा है ।तो वहीं अखिलेश यादव को जनता का हर जगह समर्थन मिला है। जनता के इस रूझान से सपा की बहुमत की सरकार प्रदेश में बनाना तयं है। उन्होंने कहा कि सपा प्रदेश में अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में है। उसको किसी के सहारे या गठबंधन की जरूरत नहीं है। कांग्रेस सोचे कि वह इन चुनावों के बाद कहां खड़ी होगी ।

Saturday, January 28, 2012

संकट में है कोवलम के समुंद्र तट


अंबरीश कुमार
देवताओं के अपने देश यानी केरल का समूचे विश्व में मशहूर कोवलम समुंद्र तट खतरे में है। गोवा समेत यह देश के सबसे खूबसूरत समुंद्र तटों में से एक है जहां पर साल भर सैलानियों का जमावड़ा लगा रहता है । जैसा सभी समुंद्र तटों का इतिहास है यह भी मछुवारों का गांव रहा जो अब आलिशान रिसार्ट ,होटलों और रेस्तराओं की भीड़ में में बदल चुका है। बाजार इस समुंद्र तट को लील रहा है । प्रकृत के इस अनोखे समुंद्र तट पर अब समुंद्र की हदबंदी कर दी गई ।बगल के राज्य तमिलनाडु में समुंद्र तट के नियम कायदे काफी कड़े है और कोई भी निर्माण पांच सौ मीटर के भीतर नहीं हो सकता जिसका उदाहरण चेन्नई के मैरिना समुंद्र तट से लेकर महाबलीपुरम तक में देखा जा सकता है। पर केरल की ताकतवर होटल लाबी ने अपने राज्य में इन नियम कायदों को ताक पर रखकर निर्माण कर डाला है । केरल का पर्यटन विभाग का नारा है देवताओं का अपना देश । पर देवताओं के इस देश में सबसे मशहूर समुंद्र तट का समुंद्री पर्यावरण संकट में है और इसके चलते कभी भी कोई बड़ा हादसा भी हो सकता है ।
केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम में कई समुंद्री तट हैं जिनमें से एक कोवलम तट हैं। रेतीले तटों पर लहराते नारियल के पेड़ों को देखकर ऐसा लगता है मनो आप कोई पिक्चर पोस्ट कार्ड देख रहे हों । यहाँ लहराता समुंद्र है ,नारियल के घने जंगल है तो हरे भरे जंगलों के बीच बैक वाटर और ख़ूबसूरत लैगून भी हैं। कोवलम बीच के पास तीन और तट भी हैं जिनमें से दक्षिणतम छोर पर स्थित लाइट हाउस बीच सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इस समुंद्र तट पर अब समुंद्र की जगह कम होती जा रही है और होटल ,रेस्तरां बढ़ते जा रहे है । विदेशी सैलानी इस तट पर सबसे ज्यादा नजर आएंगे क्योकि यही पर सूरज की किरणों के बदलते कोणों के साथ ही पानी रंग बदलता नजर आता है ।समुंद्र तट पर आते ही बाई तरफ नारियल से घिरी पहाड़ियों पर पुराना लाइट हाउस है जिसकी रौशनी शाम ढलते ही घुमने लगती है। रात में अरब सागर की स्याह लहरों पर जब इस लाइट हाउस की रौशनी पड़ती है तो लगता है कोई जहाज दिशा पहचान कर इधर ही आ रहा है । शाम को सूर्यास्त का अद्भुत नजारा इन सुंदरा तटों पर दिखता है। और शाम के बाद तट पर फैलता बाजार आबाद हो जाता है। अरब सागर की ओर खुले इन रिसार्ट ,होटल और रेस्तरां में सीजन के समय शाम से ही सीटे भर जाती है जिनमे विदेशियों की भी बड़ी संख्या होती है। दिन में लाइन से लगी छतरियों के नीचे ये विदेशी बिकनी में धूप सेकते नजर आते है तो सत्तर -अस्सी दशक का गोवा का कलंगूट याद आ जाता है जो हिप्पियों के चलते इस कदर बदनाम हुआ कि वहां अपसंस्कृति से बचने के लिए नग्न होने पर रोक लगा दी गई और आज भी वहा इस तरह के बोर्ड नजर आते है। कोवलम के समुंद्र तटों पर भी कुछ हद तक विदेशियों का यह असर महसूस किया जा सकता है जो विदेशों में तो आम है पर दक्षिण भारत के इस अंचल में लोगों को अटपटा लगता है । पर्यटन को केरल सरकार काफी बढ़ावा देती है तो उसे इस दिशा में भी सोचना चाहिए ताकि परिवार के साथ जाने वालों को किसी अप्रिय स्थिति का सामना न करना पड़े ।
बंगाल से आए उज्जवल चटर्जी ने कहा - पर्यटन विभाग को यह सोचना चाहिए कि यह जगह गोवा से कुछ अलग है ,यहां तीर्थ यात्रा वाले पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते है जो कन्याकुमारी जाते है ,पद्मनाभम स्वामी के मंदिर में दर्शन करने आते है । जबकि गोवा का पर्यटक पूरी तरह मौज मस्ती के लिए जाता है इस वजह से इन समुन्द्र तटों पर लोग एक सीमा तक ही बेपर्दा हो यह जरुर ध्यान रखना चाहिए ।
दरअसल केरल के इन समुंद्री तटों पर देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले ज्यादातर पर्यटक धार्मिक रुझान वाले होते है क्योकि वे मदुरै ,रामेश्वरम,सबरीमाला ,कन्याकुमारी जैसी जगहों से यहाँ पहुँचते है जो तिरुअनंतपुरम से तीन चार सौ किलोमीटर के दायरेमें है । इन पर्यटकों में उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश ,बंगाल ,और गुजरात के ज्यादातर पर्यटक होते है। कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद की वजह से बंगाली पर्यटक बड़ी संख्या में आते है और कन्याकुमारी के बाद उन्हें सबसे करीब लगभग अस्सी किलोमीटर पर तिरुअनंतपुरम आना ज्यादा सुविधाजनक लगता है।
इस शहर का इतिहास भी काफी रोचक है । अनंतवरम तिरुअनंतपुरम का प्राचीन पौराणिक नाम है जिसका उल्लेख ब्रह्मांडपुराण और महाभारत में मिलता है। 18वीं शताब्दी में त्रावनकोर के महाराजा ने जब इसे अपनी राजधानी बनाया तभी से तिरुअनंतपुरम का महत्त्व बढ़ा। यहाँ के लोगों के मुताबिक 1994-95 के दौरान भारी मात्रा में स्वर्ण आयात होने के कारण तिरुअनंतपुरम 'स्वर्णिम द्वार' कहा गया है। इस शहर का नाम शेषनाग अनंत के नाम पर पड़ा जिनके ऊपर पद्मनाभस्वामी (भगवान विष्णु) विश्राम करते हैं। तिरुवनंतपुरम, एक प्राचीन नगर है जिसका इतिहास 1000 ईसा पूर्व से शुरू होता है। पद्मनाभस्वामी मंदिर की वजह से यहाँ भारी संख्या में तीर्थ यात्री पहुँचते है । इसके बाद कुछ अन्य पर्यटन स्थलों को छोड़कर ज्यादातर सैलानी कोवलम समुंद्र तट का रुख करते है जो शहर से सोलह किलोमीटर की दूरी पर है । उससे पहले करीब आठ किलोमीटर पर शंखमुघम समुंद्र तट पड़ता है जहाँ सैलानी इकठ्ठा होते है पर यहां अरब सागर की सीधी लहरें काफी खतरनाक नजर आती है और यह समुंद्र तट नहाने के लिहाज से सुरक्षित नहीं है । इसलिए सैलानियों को कोवलम का समुंद्र तट ज्यादा भाता है ।
कोवलम के रास्ते में परशुराम का मंदिर पड़ता है जो काफी प्राचीन है । कहा जाता है कि परशुराम के फरसे की वजह से ह केरल बना जो उन्होंने एक बार क्रोधित होकर फेंका था और समुंद्र पीछे हट गया तभी केरल का आकर फरसे की तरह माना जाता है ।पर यह सब धार्मिक किवदंतियां है । बहर्हार इस मंदिर के कुछ ही आगे बढ़ने पर नारियल के पेड़ों से घिरे बैक वाटर का भी नजारा दिख जाता है । बैक वाटर में नाव से घुमाने वाले बहुत से निजी आपरेटर है जो सौ रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से घंटे भर सैर कराते है । इस सैर में प्राकृतिक दृश्य देखते बनता है । हरियाली ऎसी की आंखे बंद होने का नाम न ले । नारियल के घने जंगलों में सुपारी के लंबे दरख्त और बीच बीच में केलों के बगीचे का हरापन काफी लुभाता है । शाम से कुछ पहले कोवलम के लाइट हाउस बीच पर पहुंचे तो दहकता हुआ सूरज नीचे आने की तैयारी कर रहा था । लाइट हाउस के पास ही तक वहां जाता है कि उसके आगे वहां का रास्ता नहीं है और कुली सामान लेकर रिसार्ट तक पहुंचाता है । इसी से पता चल जाता है कि इस तट पर बने रिसार्ट और होटल बाद के निर्माण है । इस समुंद्र तट पर पहले जो भी रेस्तरां झोपड़ी के रूप में थे वे अब पक्के निर्माण में बदल चुके है । केरल सरकार के एक वरिष्ठ अफसर ने नाम न देने की शर्त पर कहा -कोवलम के लाइट हाउस समुन्द्र तट पर जो पैदल पक्का रास्ता बनवाया गया है उसके चलते अतिक्रमण रुक गया है क्योकि कोई भी इस रास्ते को पर कर समुंद्र तट पर नहीं जा सकता वर्ना कई निर्माण तो लहरों के किनारे हो जाता । उन्होंने भी माना कि इस समुन्द्र तट पर बहुत ज्यादा अतिक्रमण कुछ सालों में हुआ है जो तटीय नियम कायदों का सीधा उलंघन है ।तमिलनाडु के सामाजिक कर्यकर्ता प्रदीप कुमार ने कहा - तमिलनाडु के मुकाबले केरल में तटीय नियम कानून का जमकर उलंघन किया जा रहा है जिसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण कोवलम के समुंद्र तट है जहाँ पचास मीटर की दूरी पर निर्माण मिल जाएगा । दूसरी तरफ तमिलनाडु में चाहे मैरिना बीच हो या कोई अन्य बीच सभी जगह पांच सौ मीटर तक किसी भी तरह का निर्माण न करने का नियम कड़ाई से लागू है । केरल में जो हो रहा है वह खतरनाक भी है सौ मीटर पर बने होटल और रिसार्ट खतरनाक है । कभी भी कोई सुनामी आई तो बड़े पैमाने पर जान माल का नुकसान हो सकता है ।
कोवलम में रात होते ही तट पर माहौल रंगीन हो जाता है । तट सी लगी हुई सड़क रौशनी में डूब जाती है तो समुन्द्र की तरफ खुले हुए रेस्तरां आबाद हो जाते है ।हर रेस्तरां के सामने समुंद्री जीवों का छोटा सा बाजार खुल जाता है जिसमे तरह तरह की मछलियाँ ,झींगे ,केकड़े ,लोबस्टर आदि होते है जिन्हें देखकर सैलानी अपना आर्डर देते है । यह विदेशों में तो लोकप्रिय है ही अब देश में भी शुरू हो गया है । हर रेस्तरां में अंग्रेजी संगीत के साथ मदिरा का दौर शुरू हो जाता है जिसके चलते कई पर्यटक ग्लास लेकर समुंद्री लहरों के सामने ही बैठ जातें है । नौजवानों का समूह ऐसे में रेत पर ही अपनी महफ़िल सजा लेता है। कोवलम क इस तट पर काफी देर तक सैलानी जमे रहते है ।
२९ जनवरी २०१२ को जनसत्ता में प्रकाशित लेख
फोटो -अंबर कुमार

Tuesday, November 1, 2011

सच्चर ब्रह्मास्त्र के चुनावी खेल में फच्चर की आशंका

अंबरीश कुमार
लखनऊ , नवंबर । मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने के लिए कांग्रेस जिस सच्चर कमेटी की सिफारिशों को चुनावी ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल करने की तैयारी में है उसमे फच्चर लग सकता है । सारा खेल मुसलमानों के वोट को लेकर है जिसकी बड़ी दावेदार उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी है । केंद्रीय कानून और अल्पसंख्यक मामलों के मानती सलमान खुर्शीद ने कल लखनऊ में सच्चर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर मुसलमानों को नौकरियों में छह फीसद आरक्षण की बात कह कर राजनीति में हलचल मचा दी थी । समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह ने आज साफ़ कहा -सच्चर कमेटी की सिफारिशें ज्यों की त्यों लागू की जाए।
कांग्रेस के इस खेल से धर्मनिरपेक्ष तकते सतर्क हो गई है। राजनैतिक दल इसे कांग्रेस का चुनावी हथकंडा मान रहे है । भाकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्र ने कहा -कांग्रेस अपनी फटी चादर में इस तरह के पैबंद लगा क़र चुनावी वैतरणी पर करना चाहती पर यह संभव नहीं है । सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने में जो देरी हो रही है उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है । जो हर काम चुनावी फायदे के लिहाज से करती है । सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशो को लेकर उत्तर प्रदेश के विभिन्न राजनैतिक दल लगातार मांग करते रहे है पर कोई पहल होती नजर नहीं आई । समाजवादी पार्टी से लेकर बसपा ,वाम दल ,पीस पार्टी और जन संघर्ष मोर्चा आदि इसे जल्द से जल्द लागू करने की बात कहते रहे है ।पर अब तक इसे लागू करने के आसार नजर नही आ रहे थे । पर सोमवार को सलमान खुर्शीद ने दो महीने के भीतर पिछड़े मुसलमानों को नौकरियों में आरक्षण का एलान कर उन सभी दलों को झटका दिया जिनका मुस्लिम जनाधार है ।
वैसे भी राजनैतिक विश्लेषक मान रहे है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश चुनाव में एक के बाद एक राजनैतिक हथियारों का इस्तेमाल कर माहौल अपने पक्ष में करने का प्रयास करेगी । जिसकी शुरुआत मुस्लिम आरक्षण से हो सकती है । बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती भी इसकी मांग कर चुकी है ।
उत्तर प्रदेश में विधान सभा की करीब बीस फीसद सीटें मुस्लिम बहुल है जिसकी वजह से वे एक बड़ी राजनैतिक ताकत भी है ।यह बात अलग है कि उनकी पहचान एक वोट बैंक के रूप में ज्यादा रही और उनके विकास के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई ।
इसी मुद्दे को राजनैतिक दल कांग्रेस के खिलाफ एक औजार की तरह इस्तेमाल करते रहे है। कांग्रेस अब सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू कर राजनैतिक लाभ लेना चाहती है पर विपक्षी दल इन सिफारिशों को ज्यों का त्यों लागू करने की मांग कर कांग्रेस की घेरेबंदी भी कर रहे है । समाजवादी पार्टी के मुस्लिम चेहरे के रूप में मशहूर आजम खान ने कहा -छह फीसद आरक्षण की बात कर कांग्रेस ने मुसलमानों को जलील किया है ,इसके लिए पार्टी को माफ़ी मांगनी चाहिए । आजम खान कके तेवर से साफ़ है कि मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा अब गरमा सकता है । कांग्रेस के लिए भी यह राजनैतिक चुनौती के रूपमे सामने आ सकता है क्योकि आरक्षण का सवाल काफी संवेदनशील मुद्दा माना जाता रहा है ।jansatta

Monday, October 31, 2011

गागा को तालियां,किसानो को गालियां



अंबरीश कुमार
लखनऊ । पिछले चौबीस घंटे में गोरखपुर में जापानी बुखार से तीन बच्चों की मौत के साथ ही इस वर्ष गोरखपुर में इस बीमारी से मरने वालों की संख्या पांच सौ तक पहुँच गई । पूर्वांचल में जापानी बुखार और जल जनित बीमारियों से हर साल की तरह इस बार भी मौत का सिलसिला जारी है । इसकी मुख्य वजह केंद्र और राज्य सरकार की बेरुखी और स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर पर्याप्त पैसा न दिया जाना है । दूसरी तरफ ग्रेटर नोयडा में फार्मूला -१ रेस के लिए अरबो रुपए फूंक दिए गए और दलितों की सबसे बड़ी नेता और देश के सबसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री मायावती भी इसमे शामिल हुई । बाद में लेडी गागा का कार्यक्रम हुआ । शैम्पेन ,शराब और शबाब का दौर चला और लोग भूल गए कि यह वाही राज्य है जहाँ कुछ घंटे पहले ही करछना में किसानो पर लाठी गोली चली और गालियों से नवाजा गया । यह वही राज्य है जिसके एक छोर पर बच्चों की मौत का सिलसिला इसलिए नहीं थम पा रहा है क्योकि उनके पास इलाज के लिए पर्याप्त पैसे नहीं है । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस विरोधाभास पर कहा -यह चिंतनहीन राजनीति की अय्यासी का अय्यासी का दौर है जो मध्यकाल के सुल्तानों को भी मात कर रहा है । समाजवादी पार्टी ने इसे दलितों के नाम पर क्रूर मजाक बताया और एलान किया कि सत्ता में आने पर इसकी जाँच करई जाएगी।
दरअसल इस खेल में जिस तरह सत्तारूढ़ दल ने दिलचस्पी दिखाई है उससे राजनैतिक हलकों में हैरानी जताई जा रही है । भाकपा नेता अशोक मिश्र ने कहा -यह वोट की राजनीति और भ्रष्टाचार की काली कमाई का नतीजा है । इस सरकार को समाज का यथार्थ नहीं दिखता,गरीबी और भुखमरी नहीं दिखती । यह बात कभी हदतक सही भी नजर नजर आती है । पूर्वांचल में जिस तरह स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में बच्चे मर रहे है उसे देखते हुए ग्रेटर नोयडा का कार्यक्रम किसी के गले के नीचे नहीं उतरपा रहा है । इस आभिजात्य वर्गीय खेल को लेकर प्रदेश का जेपी समूह भी फिर विपक्ष के निशाने पर आ गया है। विपक्ष का आरोप है कि एक तरफ यह समूह किसान की जमीन छीनकर सरकार के जरिए निहत्थे किसानो पर लाठी गोली चलवाता है तो दूसरी तरफ गरीबों का मजाक उड़ाते हुए पैसे का भौंडा प्रदर्शन इस तरह के खेल के नाम पर करता है ।फार्मूलावन रेस की तैयारी के साथ शनिवार को करछना (इलाहाबाद) में प्रस्तावित पावर प्लांट के लिए जमीन लिए जाने का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस ने जमकर लाठियां चलाई और फायरिंग भी की। महिलाओं और बच्चों पर भी जुल्म ढाये गए। क्षेत्र के आठ गांव इस योजना से प्रभावित होने जा रहे है।
समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा - कल फार्मूला-1 सत्र की 17वीं और भारत की पहली रेस सिनेसितारों और पाप सिंगर लेडी गागा की उपस्थिति में सम्पन्न हुई और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती भी रेस की दर्शकों में रहीं। उनके द्वारा पुरस्कार भी बांटे गए। इस रेस के आयोजन पर 20 अरब रूपए से ज्यादा खर्च हुए हैं। रेस खत्म होने पर शराब और शबाब का खुलकर प्रदर्शन हुआ। भारत में, जहां 80 प्रतिशत आबादी आज भी 20 रूपए रोज पर गुजर-बसर करती है, दो जून पेट भरने लायक जिसकी कमाई नहीं, उस देश-प्रदेश मे राजसी खेल का आयोजन शमशान में शाही दावत के इंतजाम जैसा है।
उन्होंने आगे कहा कि प्रदेश की मुख्यमंत्री की दौलतमंदों के खेल में दिलचस्पी दलितों के साथ क्रूर मजाक है। झुग्गी-झोपड़ी में बीमारी, तंगहाली और कर्ज के शिकार दलितों को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेंमाल करनेवाली मुख्यमंत्री ने बड़े पूंजीघरानों से दोस्ती के लिए ही इस खेल में सक्रिय दिलचस्पी ली है। इसमें उनकी ओर से भी लम्बी रकम का पूंजीनिवेश किया गया है। उनके इस खेल प्रेम की बलि चढ़े है ग्रेटर नोएडा के वे किसान जिनकी 875 एकड़ जमीन जबरन छीनकर फार्मूला वन रेस की सर्किट तैयार की गई है। इन गांवों के बुजुर्ग हतप्रभ थे कि ये क्या हो रहा है, यह कोई खेल है या अमीरो की चोंचलेबाजी। उनसे जबरन छीनी जमीन पर विदेशी कारों का फर्राटा और साथ में नशे में झूमती युवतियां। jansatta

सौ चिठ्ठियों के जवाब में एक ख़त

अंबरीश कुमार
लखनऊ । उतर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की प्रधानमंत्री के नाम लिखे सौ से ज्यादा पत्रों के जवाब में कांग्रेस के एक पत्र ने सत्तारूढ़ दल को सांसत में डाल दिया है । यह सौ सुनार की बनाम एक लुहार की वाली कहावत को चरितार्थ भी करता है । इस पत्र के साथ ही विधान सभा चुनाव की तैयारी में जोर शोर से जुटी कांग्रेस मायावती को बचाव की मुद्रा में लाती दिख रही है ।सत्ता में आने के बाद मायावती ने अबतक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को करीब सौ पत्र लिख चुकी है पर केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश के पत्र ने मायावती की राजनैतिक घेरेबंदी कर दी है। जयराम रमेश का यह पत्र राजनैतिक मकसद में कामयाब होता नजर आ रहा है। किसी भी प्रदेश में किसी घोटाले की सीबीआई जांच सत्तारूढ़ दल के लिए परेशानी का सबब बन जाती फिर जब मामला उत्तर प्रदेश का हो जहां सभी दल चुनावी तैयारी में जुटे हों तो उसके राजनीति मायने भी होते है।उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के विधायकों ,सांसदों और मंत्रियों से जुड़े कई मामले जांच के घेरे में है जिनमे राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन यानी एनआरएचएम का बड़ा घोटाला भी है जिसमे एक हिस्ट्रीशीटर सांसद,दो दागी मंत्री के साथ कई और नेता भी घेरे में है। पर मनरेगा का घोटाला विधान सभा चुनाव के मद्देनजर ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योकि इसका दायरा काफी बड़ा है और इसका राजनैतिक असर भी ज्यादा पड़ेगा ।
इस समय करीब दर्जन भर जिलों से मनरेगा को लेकर गंभीर शिकायते सामने आई है और चुनाव प्रचार के दौरान सरकारी लूट का मुद्दा कांग्रेस जोर शोर से उठाएगी । यही सवाल सत्तारूढ़ दल को सांसत में डाले हुए है जिसका जनाधार राजनीति के अपराधीकरण के साथ राजनैतिक लूट और वसूली के चलते खिसक रहा है । मायावती वर्ष २००७ में जब २०६ सीटों के साथ सत्ता में आई थी तो बसपा को ३०.४३ फिसद वोट मिला था पर उसके बाद कांग्रेस ने बढ़त ली और २००९ के लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट बैंक तीन फीसद गिरकर २७.४२ फीसद पर पहुँच गया था। विधान सभा की सीटों में इसे तब्दील करने पर लोकसभा चुनाव में बसपा अपनी आधी क्षमता पर पहुँच चुकी थी । ऐसे में बसपा का संकट बढ़ सकता है। अन्ना हजारे के आंदोलन के चलते जो कांग्रेस पहले पशोपेश में थी अब आगे बढ़ कर सत्तारूढ़ दल पर हमला कर रही है। यह कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा भी है । कांग्रेस की मीडिया कमेटी के प्रभारी राजबब्बर ने कहा -पहले की तुलना में कांग्रेस की स्थिति में काफी बदलाव आया है ,अब कांग्रेस चुनावी संघर्ष में आ चुकी है । लोकसभा चुनाव के नतीजों ने जिस तरह लोगों को चौकाया था वैसे ही नतीजे विधान सभा चुनाव के होंगे। सरकारी लूट खसोट और राजनैतिक गुंडागर्दी के खिलाफ कांग्रेस गांव गांव तक लोगों को लामबंद करेगी । यह सवाल उठाएगी कि गैर कांग्रेसी दलों ने इस प्रदेश को किस जगह पहुंचा दिया है ।
फिलहाल मुद्दा मायावती और केंद्र के बीच चिठ्ठी पटरी को लेकर शुरू हुए विवाद का है। मायावती अबतक अपने राजनैतिक एजंडा को लेकर पत्र भेजती रही है। चाहे उत्तर प्रदेश के बंटवारे का मामला हो या फिर बुंदेलखंड पॅकेज का मामला या फिर विभिन्न समुदायों के आरक्षण का मुद्दा हो इनका मकसद कांग्रेस की राजनैतिक घेरेबंदी ज्यादा रहा है। आज मायावती मीडिया को लेकर जो आरोप जयराम रमेश पर लगा रही है वे खुद यह करती रही है। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी राजबब्बर ने कहा - मीडिया को तो मायावती पहले पत्र देती है फिर प्रधानमंत्री को भेजती है । मायावती ने जब भी प्रधानमंत्री को ख़त लिखा मीडिया को जानकारी दी गई और आमतौर पर प्रेस कांफ्रेंस कर यह जानकारी दी जाती रही है । आज वे इस तरह का आरोप लगा रही यह उन्हें शोभा नहीं देता ।
जाहिर है अब कांग्रेस मायावती के राजनैतिक हथियारों से ही मुकाबला कर रही है। जयराम रमेश के पत्र के बाद जिस तरह उत्तर प्रदेश सरकार में बैठको का सिलसिला चला और मनरेगा को लेकर विभिन्न जिलों से जानकारिय जुटाई गई वह सरकार की बेचैनी को दर्शाता है । सरकार यह भी नहीं चाहती कि इस घोटाले को लेकर सीबीआई जांच तक मामला पहुंचे वर्ना सत्तारूढ़ दल की मुश्किलें बढ़ सकती है इसलिए मायावती जयराम रमेश के पत्र के बावजूद केंद्र से कोई टकराव लेने के मूड में नहीं है । जिसका राजनैतिक फायदा कांग्रेस को मिलता नजर आ रहा है । जनसत्ता