Friday, December 24, 2010

धसकने वाले है टिहरी के गाँव


आशुतोष सिंह
लखनऊ , दिसंबर । टिहरी बांध के आसपास के दर्जनों गाँव कभी भी धसक कर बांध की झील में समा सकते है । सितम्बर में हुई तेज बारिश के बाद टिहरी बांध के जलाशय में पानी का स्तर काफी ज्यादा बढ़ा और कई गाँव डूब क्षेत्र में आ गए । साथ ही कई गाँव में जबरजस्त भूस्खलन की चपेट में आए पर अब यह खतरा और बढ़ता जा रहा है । कई जगह पहाड़ धसक रहे है और जमीन फट रही है । बीते सत्रह दिसंबर को मलबा गिराने से टिहरी बांध में बिजली के उत्पादन पर भी असर पड़ चुका है । यह बात पूर्वांचल ग्रामीण विकास संस्थान की पत्रिका ' डिजास्टर मैनेजमेंट एंड डेवलपमेंट , की कवर स्टोरी से सामने आई है । यह पत्रिका प्राकृतिक और मानवीय आपदा के साथ जलवायु परिवर्तन , पर्यावरण ,जल ,जंगल और जमीन के सवाल पर फोकस करेगी । यह जानकारी पूर्वांचल ग्रामीण विकास संस्थान के सीईओ और प्रबंध संपादक एपी सिंह ने यहाँ दी । पत्रिका के प्रधान संपादक डाक्टर भानु है जो पिछले दो दशक से डिजास्टर यानी आपदा खासकर बाढ़ आपदा के क्षेत्र
में काम कर रहे है । पत्रिका के पहले अंक की कवर स्टोरी धसकते पहाड़ और फटती जमीन में नई टिहरी में भूस्खलन का जायजा लेते हुए लिखा गया है -उप्पू गाँव तक पहुँचते पहुँचते टिहरी बांध से बनी झील के किनारे लगे पहाड़ पर बसे गांवों में रहने वालों की त्रासदी समझ में आ जाती है । कई गाँव झील में समा चुके है तो कई गाँव झील में समाने वाले है । नाकोट गाँव में बड़ा पुल बन रहा है जो झील के उस पार बसे लोगों को इधर आने का रास्ता देगा । फिलहाल वे मोटर बोट से आते जाते है । नाकोट गाँव के गजेंद्र रावत ने उस पर बसे गांवों की व्यथा सुनाते हुए कहा - बांध बनाने से पहले ये लोग पुरानी टिहरी के पुल से पंद्रह बीस मिनट में नई टिहरी वाली सड़क पर आ जाते थे पर अब सड़क के जरिए आने जाने में कई घंटे लग जाते है । पर समस्या यही ख़त्म नही होती । खेत झील के पानी में समा चुका है और गाँव पर खतरा मंडरा रहा है । जब लगातार बरसात हुई तो लोगों की रातों की नींद हराम हो गई । कब कौन सा घर झील में गिर जाए यह पता नहीं था । सामने देखिए गाँव के जो घर है उनके ठीक नीचे से पहाड़ धसक कर झील में जा चुका है । ऐसे गाँव ७० से ज्यादा है जिनपर खतरा मंडरा रहा है ।
टिहरी बांध के विनास का यह नया आयाम है जिसपर किसी का ध्यान नही गया है । जिस तरह जमीन धसक रही है उससे देर सबेर दर्जनों गाँव झील में समा जाएंगे। बड़े बांधों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले माटू संगठन का मानना है कि इस क्षेत्र में ७५ गांवों पर खतरा मंडरा रहा है और इस सिलसिले में जल्द कोई पहल नही हुई तो अगली बारिश में हालत गंभीर होंगे । छाम गाँव के रहने वाले पूरण सिंह राणा बांध की वजह से भूस्खलन और विस्थापित हुए लोगों का सवाल उठाते है और अब खुद भी विस्थापितों के लिए हरिद्वार में बसाए गाँव में रहते है क्योकि उनका घर नही बचा । बाद में दूसरे भाइयों ने और ऊँचाई पर घर बनाया जहाँ वे जाते रहते है ।
रपट में टिहरी बांध के आसपास बसे गांवों पर भूस्खलन के बढ़ते खतरे को बताया गया है । टिहरी बांध को लेकर शुरू से ही विरोध होता रहा है और पर्यावरण का सवाल उठाने वाले इसे जोखम वाला बांध मानते रहे है । बीते सत्रह दिसंबर को जिस तरह मलबा गिरने के बाद बांध का कामकाज प्रभावित हुआ इससे बांध विरोधी आंदोलनकारियों की बात सही भी साबित होती है ।
पत्रिका की दूसरी विशेष रपट में गंगा , पद्मा और तिस्ता नदी से होने वाली तबाही के बारे में जानकारी दी गई है । पत्रिका के पहले अंक में बारिश और बाढ़ आदि पर पश्चिम बंगाल , तमिलनाडु ,उतराखंड और उत्तर प्रदेश की रपट दी गई है । जबकि अगला अंक हिमालय पर फोकस होगा जो कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक की जानकारी देगा ।

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