Monday, December 13, 2010

तीस साल बाद


अंबरीश कुमार
चार पांच दिन पहले की बात है दफ्तर में बैठा था तभी एक मोहतरमा की आवाज आई जो फाइनेंशियल एक्सप्रेस की पत्रकार दीपा से पूछ रही थी , अंबरीश जी कहा बैठते है । खबर बनाते हुए मेरा ध्यान उधर गया और फिर कोफ़्त हुई कि रिसेप्शन से बिना बात किए क्यों किसी को मेरे पास भेज दिया गया । खबर बनाने का समय अमूमन शाम छह बजे से सात बजे तक होता है और उस बीच न तो कोई फोन अटेंड करता हूँ और न ही किसी को मिलने के लिए भेजा जाता है क्योकि ध्यान टूटने पर खबर का तारतम्य बिगड़ जाता है ।इस बात को ज्यादातर परिचित लोग जानते है और वे इसका ध्यान भी रखते है । ऐसे में सिर्फ अनजान लोग ही कई बार आ जाते है । वे मोहतरमा आई और एक प्रेस रिलीज देते हुए बोली - मै अपर्णा गुप्ता हूँ । मैंने कहा , यह रिलीज नीचे ही दे देती । पर मैंने ध्यान दिया तो वह रिलीज किसी कवियित्री की याद में हुई सभा की थी जिसमे एक जगह मशहूर कवियित्री अपर्णा गुप्ता भी लिखा था । मैंने पूछा -क्या आप ही मशहूर कवयित्री अपर्णा गुप्ता है , इस पर वे कुछ झिझक कर बोली -मेरी कुछ पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है । साहित्य से अपना कोई ख़ास रिश्ता नही रहा है और जनसत्ता में अब साहित्य का मामला काफी संवेदनशील भी माना जाता है। सुना है काफी खेमेबाजी है पर न तो इस क्षेत्र में कोई ज्ञान है और न दखल । साहित्यकार के रूप में मेरा परिचय सिर्फ मंगलेश डबराल से रहा और वे भी काफी नाराज रहते थे । मंगलेश डबराल जब तक थे तब तक अपने साथी अजित अंजुम सवाल उठाते थे - आपके यहाँ जोशी , डबराल ,उनियाल ,डंगवाल और बडथ्वाल जैसे लोग ही क्यों छापते है । पर अब कोई सवाल नही उठाता । खैर अचानक मेरा ध्यान रिलीज के अंत में गया जिसमे उस सभा में शामिल होने वालों का नाम था और उसमे अजय मेहरोत्रा से लेकर जौहर तक का नाम नजर आया । अजय पचपन के मित्र और सहपाठी रहे है । एक ज़माने में केन्द्रीय संचार मंत्री वीर बहादुर सिंह के ओएसडी थे और बाद में गृह राज्य मंत्री के ओएसडी बने तो सरकारी हवाई जहाज से देश के कई सुदूर हिस्सों का मंत्री महोदय के साथ दौरा भी कराया । घर आते थे तो फ़तेह बहादुर सिंह को भी लाते थे जो अब उत्तर प्रदेश सरकार में काबीना मंत्री है और अपन उनकी खबर जनसत्ता में लेते रहते है । खैर अजय फिलहाल एक बड़े ओद्योगिक घराने में आला अफसर है । अजय का नाम और प्रेस रिलीज पर दिया पता देख कर सब ध्यान आ गया । सन १९८० के दौर में अपर्णा गुप्ता लखनऊ विश्विद्यालय में मेरी क्लास में थी और जब मै छात्रसंघ का चुनाव लड़ा तो जिन छात्राओं ने प्रचार किया उनमे वे भी शामिल थी । उस दौर में विश्विद्यालय के दूसरे विभागों के छात्रों की भीड़ उन्हें देखने के लिए मनोविज्ञान विभाग में जमा रहती थी और मेरी यादाश्त में अभी भी आधा दर्जन से ज्यादा घटनाएं है जब अपर्णा गुप्ता को लेकर झगडा फसाद हुआ । वे विश्विद्यालय की सबसे खुबसूरत छात्राओं में एक थी । पर आज देखकर झटका लगा । तीस साल का समय ज्यादा होता है पर उम्र का असर कुछ लोगों पर ज्यादा पड़ता है तो कुछ पर कम । रामगढ में प्रोफ़ेसर रस्तोगी करीब ८५ साल के है और उनकी पत्नी अस्सी के आसपास होंगी । उनके घर में जो फोटो लगी है उसे देखकर लगता है १९५० की वैजंतीमाला की फोटो है । पर अस्सी साल की उम्र में भी उनके चेहरे को आप उस फोटो से मिला सकते है । पर अपर्णा गुप्ता में काफी बदलाव नजर आ रहा था । अपर्णा से विश्विद्यालय के दौर में कोई घनिष्ठता नही रही और ज्यादा जानकारी भी नही थी । बाद में उनके भाई द्विजेन्द्र से जान पहचान हुई तो उनके घर भी जाना हुआ । वर्ष १९८६ में जो लखनऊ छूटा तो ज्यादातर लोगों का साथ भी छुट गया । अपर्णा करीब घंटे भर बैठी तो विश्विद्यालय के समय की चर्चा हुई । उन्होंने बताया कि सिर्फ कुमकुम का पता है पर मै उन्हें नही जानता था । उस दौर के सहपाठियों में सिर्फ अखिलेश दास यहाँ है जो पहले केंद्र में मंत्री थे अब बसपा के सांसद है । कुछ समय पहले अखिलेश दास ने फोन कर बताया था कि वे मेरी क्लास में थे । खैर अपर्णा गुप्ता से मिलकर काफी अच्छा लगा पर झटका भी कम नही लगा । जो चेहरा दिमाग में था वह १९८० का था और वे उसके बाद २०१० की अंतिम बेला में मिली । वे दिल्ली दूरदर्शन में अफसर है । फिर बताया - लखनऊ विश्विद्यालय के सामने से गुजरी तो द्विजेन्द्र से कहा कि गाड़ी से ही एक चक्कर लगवा दो । अपर्णा चली गई । जो प्रेस रिलीज दे गई वे दिल्ली के अखबार के लिहाज से महत्वपूर्ण भी नही थी इसलिए कम्पोज हो जाने के बाद भी नहीं भेजा ।अटपटा जरुर लगा तीस साल बाद कोई आए और उसका छोटा सा अनुरोध भी पूरा न किया जा सके पर मजबूरी थी ।
अपर्णा के जाने के बाद लगा एक बार मै भी लखनऊ विश्विद्यालय के मनोविज्ञान विभाग से लेकर सांख्यकी विभाग का चक्कर लगा लूँ । आखिर उसी शहर में सात साल से हूँ पर कभी अपने विभाग जाने का मौका नही मिला । उस मनोविज्ञान विभाग में तो कई शिक्षिकाए अभी भी है जिन्होंने मुझे पढाया था ।
फोटो -लखनऊ विश्विद्यालय

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